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    सत्ता में वापसी के लिए बुद्ध की राह पर राहुल

    By manoj yadavEdited By:
    Updated: Sun, 16 Nov 2014 08:32 PM (IST)

    राजनीति में नाकामी से पार पाने की जुगत में लगे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब गौतम बुद्ध की शरण में जाने की तैयारी में है। यह अलग बात है कि राजपाट छोड़ कर बुद्ध हुए सिद्धार्थ की राह पर चल राहुल सत्ता में वापसी करना चाह रहे हैं। लोकसभा चुनावों

    नई दिल्ली [सीतेश द्विवेदी]। राजनीति में नाकामी से पार पाने की जुगत में लगे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब गौतम बुद्ध की शरण में जाने की तैयारी में है। यह अलग बात है कि राजपाट छोड़ कर बुद्ध हुए सिद्धार्थ की राह पर चल राहुल सत्ता में वापसी करना चाह रहे हैं। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी के भीतर व बाहर आलोचना के केंद्र में आए राहुल झारखंड व जम्मू-कश्मीर के चुनावों के बाद भारत भ्रमण पर निकलने की तैयारी में है। कांग्रेस उपाध्यक्ष की यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के 'सारनाथ' से शुरू हो सकती है।

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    भारत यात्रा का खाका तैयार

    इससे पहले भी भारत भ्रमण कर चुके राहुल की यह यात्रा बेहद रणनीतिक है। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस नेता की कोर टीम ने इस यात्रा का पूरा खाका तैयार किया है। यात्रा के प्रचार-प्रसार से लेकर वेब दुनिया में राहुल का दबदबा कायम करने के लिए प्रोफेशनल लोगों की पूरी टीम तैयार है।

    विपक्ष के नेता के तौर पर स्थापित करने की मंशा

    कोर टीम की मंशा ग्रामीण क्षेत्रों में मोदी सरकार के वादों के मुताबिक अब तक काम न होने के कारण पनप रहे असंतोष को हवा देने की है। इसके साथ ही अब तक भविष्य की बातें करते, गरीब को हवाई जहाज के सफर का सपना दिखाते राहुल विपक्ष के नेता के तौर पर सरकार को इन गांवों से मौलिक सुविधाओं की कमी पर घेरते दिखेंगे।

    चाहते हैं कुछ उपलब्धियां हासिल करना

    'टीम राहुल' की कोशिश अगले साल जुलाई के अंत में होने वाले संगठन चुनावों से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष के लिए कुछ उपलब्धियां हासिल करने की है। यह उपलब्धि चुनावी जीत के बजाय कार्यकर्ताओं में उनकी संघर्षशील नेता की छवि व जुझारू विपक्ष के नेता के रूप में बनी पहचान भी हो सकती है।

    अध्यक्ष के स्वाभाविक पंसद के तौर पर उभारने की मंशा

    दरअसल टीम राहुल की मंशा अगले वर्ष संगठन चुनावों तक अपने नेता को अध्यक्ष पद के स्वाभाविक पसंद के रूप में प्रस्तुत करने की है। वहीं अब तक छापामार शैली में राजनीति करने के आदी व इन आरोपों से घिरे राहुल गांधी भी अब राजनीति में लक्ष्य लेकर काम करने वाले नेता के रूप में अपनी पहचान चाह रहे हैं।

    करीबी हैं सशंकित

    हालांकि कांग्रेस उपाध्यक्ष के इस प्रयास को लेकर खुद राहुल के करीबी ही सशंकित हैं। सात साल पहले पार्टी में महासचिव के पद पर आए राहुल इससे पहले भी भारत भ्रमण कर चुके हैं। लेकिन भारत व राजनीति की उनकी अब तक की शैली से उनकी पार्टी के नेता ही सहमत नही हैं।

    उप्र पर है नजर

    राहुल की सारनाथ से यात्रा महज मोदी को चुनौती देने के राष्ट्रीय राजनीति से जुड़ी नही है। राज्य में पिछले विधानसभा चुनावों में जीत या हार की परवाह के बिना उत्तर प्रदेश में जमे रहने की बात कहने वाले राहुल को गलती का अहसास हो गया है। राज्य में भाजपा के चुनावी चमत्कार से हतप्रभ राहुल गांधी को अब कांग्रेस की वापसी का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही निकलता दिख रहा है। ऐसे में अपने करीबी मधुसूदन मिस्त्री को राज्य में खुला हाथ देकर राहुल संघर्ष में उतरने से पहले संगठन मजबूत करना चाह रहे हैं। राज्य में संगठन चुनावों पर निगाह रखे राहुल राज्य में मृतप्राय बनी पार्टी को खड़ा करने के लिए हर कोशिश कर रहे हैं। राज्य से अपने एक और भरोसे के आदमी पीएल पुनिया को राज्य सभा में लाना भी राहुल की उसी दूरगामी रणनीति का हिस्सा है।

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