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बाल मजदूर रहे राहुल भी जेएनयू अध्यक्ष पद की दौड़ में

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में इस बार बाल मजदूर के तौर पर काम करके अपने परिवार को सहयोग देने वाला एक छात्र भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 06 Sep 2016 02:37 AM (IST)Updated: Tue, 06 Sep 2016 03:50 AM (IST)

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। छात्र संघ चुनाव की निराली प्रक्रिया के लिए हमेशा से सुर्खियों में रहने वाले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में इस बार बाल मजदूर के तौर पर काम करके अपने परिवार को सहयोग देने वाला एक छात्र भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल है।

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जी हां, जेएनयू के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज में सोशोलॉजी विषय में एमफिल के छात्र राहुल सोनपिंपले ऐसा ही उम्मीदवार है। वह अपने स्कूली जीवन में रिक्शा चालक पिता की असमय मृत्यु के कारण सातवीं कक्षा में ही चाय की दुकान पर आठ रुपये दैनिक दिहाड़ी पर काम करने लगा था।

नागपुर, महाराष्ट्र में धमद्वीप की झोपड़ पट्टी का रहने वाला यह युवा जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में बिरसा अम्बेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (बापसा) का अध्यक्ष पद का उम्मीदवार है। राहुल ने दैनिक जागरण को बताया कि न सिर्फ वो बल्कि उनके अन्य साथी भी ऐसे ही परिवारों से आते हैं। फिर चाहे उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार बंसीधर दीप हो, महासचिव पद के उम्मीदवार पल्लीकोंडा मनीकांटा हो या फिर संयुक्त सचिव पद की उम्मीदवार आरती रानी प्रजापति।

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राहुल कहते है कि उन्हांेने 12 वीं कक्षा में ही अम्बेडकर के विचारों और उनसे जुडे़ लोगों के साथ रहना और दलितों के लिए काम करना शुरू कर दिया था। राहुल जेएनयू परिसर में भी दलित छात्रों के बीच खासे पॉपुलर हैं और अक्सर वो जाति व लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को लेकर विभिन्न मंचों से अपनी व संगठन की आवाज बुलंद करते रहे हैं।

जहां तक जेएनयू छात्रसंघ चुनाव की बात है तो कैंपस में रोहित वेमुला का मुद्दा बेहद गर्म है। कैंपस में सक्रिय वामपंथी छात्र संगठन जोर शोर से इस विषय को छात्रसंघ चुनाव में उछाल रहे है लेकिन मेरा ऐसे सभी संगठनों से सिर्फ एक सवाल है कि वो छात्रों को क्यों नहीं बताते हैं कि आखिर क्या कारण थे जो रोहित वेमुला ने एक प्रमुख वामपंथी छात्र संगठन का साथ छोड़ दिया था।

इतना ही नहीं राहुल आगे कहते हैं कि दलित हमेशा से ही विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा इस्तेमाल किए जाते रहे हैं और इसमें वामपंथी भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इनके दलित पे्रम की पोल तो इस बात से ही खुल जाती है कि उनके पोलित ब्यूरो में आज तक किसी दलित को शीर्ष पद नसीब नहीं हुआ है।

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