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पर्यावरण मंजूरी में पीएसयू को मिलेगी प्राथमिकता

सरकार बदलते ही पर्यावरण व वन मंत्रालय हरकत में आने लगा है। औद्योगिक मंजूरियों के लिए जो फाइलें पिछले कई वर्षो से मंत्रालय में अटकी हुई थी उन पर विचार का सिलसिला शुरू हो गया है। पर्यावरण व वन मंत्री प्रकाश जावडे़कर ने निर्देश दिया है कि पहले सरकारी क्षेत्र की कंपनियों के प्रस्तावों को हरी झंडी दिखाई जाए।

By Edited By: Published: Sat, 31 May 2014 09:12 AM (IST)Updated: Sat, 31 May 2014 09:34 AM (IST)

नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। सरकार बदलते ही पर्यावरण व वन मंत्रालय हरकत में आने लगा है। औद्योगिक मंजूरियों के लिए जो फाइलें पिछले कई वर्षो से मंत्रालय में अटकी हुई थी उन पर विचार का सिलसिला शुरू हो गया है। पर्यावरण व वन मंत्री प्रकाश जावडे़कर ने निर्देश दिया है कि पहले सरकारी क्षेत्र की कंपनियों के प्रस्तावों को हरी झंडी दिखाई जाए। पोस्को सहित तमाम निजी कंपनियों के प्रस्तावों पर सरकार दो-तीन महीने बाद विचार करेगी।

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इसी सोच के साथ शुक्रवार को जावड़ेकर ने बिजली व कोयला मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की। सरकारी क्षेत्र के जो प्रस्ताव अभी पर्यावरण मंजूरी नहीं मिलने की वजह से लटके हुए हैं उनमें से अधिकांश कोयला खनन और बिजली क्षेत्र से संबंधित हैं। अगर पर्यावरण व वन मंत्रालय अपनी मंशा के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के प्रस्तावों को मंजूरी देना शुरू करता है तो इससे बिजली क्षेत्र को काफी फायदा होगा। साथ ही सेल, एनटीपीसी, कोल इंडिया सहित तमाम सरकारी कंपनियों की परियोजनाओं पर काम शुरू हो सकेगा। इससे निवेश की रफ्तार भी बढ़ेगी जिसका असर अर्थव्यवस्था पर दिखाई देगा।

सूत्रों के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के प्रस्तावों को मंजूरी देने में बहुत ज्यादा परेशानी नहीं है क्योंकि इनमें से कई परियोजनाओं को अधिकांश मंजूरियां मिल चुकी हैं। पिछली सरकार की नीतिगत जड़ता की वजह से इन्हें मंजूरी नहीं मिल पा रही थी। जावड़ेकर और गोयल के बीच हुई बैठक को कई महीने बाद पर्यावरण व वन मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के बीच बैठक के तौर पर देखा जाना चाहिए। यूपीए के कार्यकाल में इन दोनों मंत्रालयों के बीच 36 का आंकड़ा था। 'गो' और 'नो-गो' की परिभाषा की वजह से कोयला मंत्रालय की तमाम परियोजनाओं पर रोक लगा दी गई। पीएमओ के हस्तक्षेप के बावजूद इन परियोनजाओं की रफ्तार नहीं बढ़ सकी। माना जाता है कि अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने में इस फैसले का बड़ा हाथ था।

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