किन्नरों को मजबूत पहचान देनेवाला निजी बिल पास
किन्नरों के अधिकारों की रक्षा से संबंधित एक निजी विधेयक को राज्यसभा ने सर्वसम्मति से पास कर दिया। इसी के साथ राज्यसभा ने 36 साल के बाद इतिहास रच दिया है। इससे पहले 1979 में कोई निजी विधेयक सदन से पारित हुआ था।
नई दिल्ली । किन्नरों के अधिकारों की रक्षा से संबंधित एक निजी विधेयक को राज्यसभा ने सर्वसम्मति से पास कर दिया। इसी के साथ राज्यसभा ने 36 साल के बाद इतिहास रच दिया है। इससे पहले 1979 में कोई निजी विधेयक सदन से पारित हुआ था।
'किन्नरों के अधिकार विधेयक 2014' को द्रमुक के तिरुची शिवा ने पेश किया था। उन्हें लैंगिक समानता के अधिकार के साथ ही शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के प्रावधानों पर भी तरजीह मिलेगी। हालांकि बिल की रूपरेखा अभी स्पष्ट होनी बाकी है। उन्होंने कहा अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, इटली व सिंगापुर समेत विश्व के 29 प्रमुख लोकतांत्रिक देशों ने किन्नरों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बना दिए हैं। लिहाजा सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत को भी इसमें विलंब नहीं करना चाहिए। इससे पहले जेटली ने यह कहते हुए विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किए जाने की अपील की कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो इस विषय पर सदन के विभाजित होने का संदेश जाएगा।
इसके बाद सत्तापक्ष व विपक्ष दोनों तरफ के सदस्यों ने विधेयक का खुलकर समर्थन किया। सत्ता पक्ष की ओर से 19 केंद्रीय मंत्रियों समेत लगभग सभी सदस्य उपस्थित थे। जबकि विपक्ष की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह मौजूद थे।
जेटली ने की सर्वसम्मति से पारित करने की अपील
जेटली को विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किए जाने की अपील इसलिए करनी पड़ी क्योंकि शिवा ने सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावरचंद्र गहलोत की अपील को खारिज करते हुए मत विभाजन की अपील की थी। गहलोत ने शिवा से अनुरोध किया था कि किन्नरों के अधिकारों के मसले पर सरकार एक समग्र विधेयक पेश करेगी। फिलहाल इस पर विभिन्न मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श की प्रक्रिया चल रही है और कई मसलों का समाधान बाकी हैं।
36 साल पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट हुआ था पारित
पिछले 36 सालों में कोई भी निजी विधेयक राज्यसभा से पारित नहीं हुआ था। इससे पहले 1979 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट, 1977 राज्यसभा से पारित हुआ था। लेकिन बाद में यह कालातीत (लैप्स) हो गया था। जबकि 9 अगस्त, 1970 को पारित निजी विधेयक (आपराधिक अपीली न्यायाधिकार का विस्तार विधेयक, 1969) संसद के दोनों सदनों से पारित हुआ था और इसने कानून का रूप लिया था।
साढ़े चार लाख किन्नरों को फायदा
शिवा ने कहा, हमें बिना किसी भेदभाव के मानवाधिकार हासिल हैं। परंतु मानवाधिकारों की रक्षा के बगैर लोकतंत्र निरर्थक है। लैंगिक असहिष्णुता अभी भी बरकरार है। हमें इसका त्याग करना होगा। देश में साढ़े चार लाख किन्नर हैं। कुछ रिपोर्टों में इनकी संख्या 20-25 लाख तक बताई गई है। इन सभी के साथ भेदभाव होता है। दुनिया हमें देख रही है।
एक और बिल
मजे की बात यह है कि किन्नरों पर ऐसा ही एक निजी विधेयक आज ही लोकसभा में भाजपा सांसद महेश गिरि की ओर से भी पेश होना था। परंतु उससे पहले राज्यसभा में शिवा का विधेयक पारित हो गया। बहरहाल, गिरि ने इसे किन्नरों के लिए ऐतिहासिक दिन बताया है।
क्या है निजी विधेयक?
प्रत्येक सांसद जो मंत्री नहीं है वह एक निजी सदस्य कहलाता है। लोकसभा में ऐसे सदस्यों की ओर से पेश किए गए विधेयक को निजी विधेयक कहते हैं। प्रत्येक शुक्रवार को संसदीय कार्यवाही के आखिरी दो या ढाई घंटों का समय निजी बिल के लिए तय रहता है।