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इस 'देवदूत' की सूचना से जागी सरकार

केदारनाथ आपदा में पीड़ितों को बचाने में पायलट जी-जान से जुटे हुए हैं। उनके इस जज्बे को सलाम करते हुए लोग उन्हें 'देवदूत' मान रहे हैं। इनमें एक ऐसे हैं जिन्होंने सबसे पहले केदारनाथ में तबाही की सूचना सरकार को दी। अगर उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर उस दिन केदारनाथ का रुख न किया होता तो शायद सरकार

By Edited By: Published: Tue, 25 Jun 2013 08:45 AM (IST)Updated: Tue, 25 Jun 2013 05:17 PM (IST)

देहरादून [राजू पुशोला]। केदारनाथ आपदा में पीड़ितों को बचाने में पायलट जी-जान से जुटे हुए हैं। उनके इस जज्बे को सलाम करते हुए लोग उन्हें 'देवदूत' मान रहे हैं। इनमें एक ऐसे हैं जिन्होंने सबसे पहले केदारनाथ में तबाही की सूचना सरकार को दी। अगर उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर उस दिन केदारनाथ का रुख न किया होता तो शायद सरकार को इस भयंकर तबाही की जानकारी वक्त पर न मिली होती और स्थिति और विकट होती।

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तस्वीरों में देखिए सेना की सेवा

16 जून को जब प्रकृति का कहर केदार घाटी को तबाह कर रहा था तो एक निजी एविएशन कंपनी के पायलट गुड़गांव निवासी भूपेंद्र सिंह फाटा हेलीपैड पर मौसम संबंधी सूचनाएं ले रहे थे, तभी सूचनाएं आनी बंद हो गई और मोबाइल से सिग्नल भी गायब हो गए। मन सशंकित हो उठा कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है। लगातार खराब होते मौसम और परिस्थितियों की हकीकत जानने को उन्होंने एक साथी के साथ केदारनाथ की उड़ान भरी।

तबाही के बाद राहत

रामबाड़ा के ऊपर पहुंचकर नीचे झांका तो रोंगटे खड़े हो गए, रामबाड़ा की जिस घनी बस्ती को वह अकसर देखा करते थे, वह गायब था। पूरा इलाका मलबे के ढेर में दबा था। मौसम तेजी से बिगड़ रहा था, लिहाजा हेलीकॉप्टर को गरुड़ चट्टी से ही लौट आए। लौटते ही उन्होंने घटना की जानकारी प्रमुख सचिव नागरिक उड्डयन राकेश शर्मा को दी।

तस्वीरों में देखें दुआओं के लिए सबके उठे हाथ

17 जून को उन्होंने अपने तीन तकनीकी कर्मचारी रुद्रप्रयाग निवासी बृजमोहन बिष्ट, योगेंद्र राणा व दिल्ली निवासी विजीत झावर को लेकर केदारनाथ की उड़ान भरी। लेकिन गरुड़चट्टी का हेलीपैड तबाह हो चुका था। साथियों की मदद से भूपेंद्र ने जैसे-तैसे हेलीकॉप्टर को टूटी-फूटी सड़क पर लैंड कराया और बाद में एक अस्थाई हेलीपैड तैयार किया। बकौल भूपेंद्र, केदारनाथ तबाही का मंजर देखकर एक पल के लिए सांस ही अटक गई।

यहां लाशों के ढेर और सिर्फ बर्बादी के ही निशां बचे थे। एक साथी ने इस पूरी तबाही की तस्वीरें लीं, जिससे बाद पूरे देश को इस प्रलय का अंदाजा हो पाया। स्थिति की गंभीरता से वाकिफ होने पर मशीनरी हरकत में आई। तब तक भूपेंद्र अपनी टीम के साथ राहत के मोर्चे पर उतर चुके थे। इसके लिए उन्होंने दूसरी एविएशन कंपनी के पायलट से भी मदद मांगी और दो स्थानों पर हेलीपैड बनाए।

इसके बाद उन्होंने फंसे लोगों को निकालने का काम शुरू किया। इस टीम ने 17 जून को ही एक हजार से अधिक पीड़ितों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। बकौल भूपेंद्र पूरे ऑपरेशन के दौरान उन्होंने कई बार खुद को असहाय महसूस किया, जब पहाड़ी इलाके में फंसे लोग हाथ हिलाकर मदद मांग रहे थे, पर अधिकांश इलाकों में हेलीकॉप्टर उतारना संभव नहीं था। 18 जून को भी किसी मदद के बिना भूपेंद्र व उनके साथी पायलट आपदा पीड़ितों की मदद में जुटे रहे।

19 जून से सेना, वायुसेना, आइटीबीपी व एनडीआरएफ हेलीकॉप्टरों व जवानों के साथ मदद को पहुंचे। इसके बाद भी भूपेंद्र थमे नहीं और आम दिनों में तीन से चार घंटे की अधिकतम उड़ान भरने वाले पायलट विपरीत परिस्थितियों में रोजाना छह से सात घंटे की उड़ान भरकर पीड़ितों को देहरादून, गुप्तकाशी व गौचर सहित अन्य हेलीपैडों पर सुरक्षित पहुंचाते रहे। अब तक भूपेंद्र 50 घंटे से अधिक की उड़ान में 1200 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा चुके हैं। इसी तरह के कई जांबाज पायलटों की मदद से हजारों लोग आज अपनों के साथ हैं।

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