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आतंकवाद फैलाने वाला पाकिस्तान अब इस काम के लिए भारत से चाहता है मदद

भारत के खिलाफ आतंक फैलाने वाला पाकिस्तान अब भारत और अफगानिस्तान के साथ मिलकर वाटरशेड मैनेजमेंट चाहता है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Thu, 04 May 2017 08:20 AM (IST)Updated: Thu, 04 May 2017 01:57 PM (IST)
आतंकवाद फैलाने वाला पाकिस्तान अब इस काम के लिए भारत से चाहता है मदद

 इस्लामाबाद (एजेंसी)।  आतंकी संगठनों को मदद देकर और सीमा पर उकसावे की कार्रवाई कर पडोसी देशों को अशांत करने वाला पाकिस्तान जल संकट की आहट से सहम गया है। विकास परियोजनाओं पर नकारात्मक असर कम करने और जल प्रबंधन के लिए वह भारत व अफगानिस्तान से मदद चाहता है।

पडोसियों के साथ मिलकर वाटरशेड मैनेजमेंट (जल-थल प्रबंधन) और सीमा पार एक्वीफायर (जलभर) को साझा रखने की संयुक्त प्रणाली चाहता है। वाटरशेड मैनेजमेंट का संबंध जल प्रबंधन और थल प्रबंधन प्रणालियों से है। ये प्रणालियां जल की गुणवत्ता की सुरक्षा और सुधार में मदद करती है। वहीं, एक्वीफायर का अर्थ जमीन के नीचे चट्टान या खनिजों की उस परत से है जो पानी को रोककर रखती है।

पाकिस्तानी अखबार डॉन के अनुसार, यह पाकिस्तान की राष्ट्रीय जल नीति का हिस्सा है जो पीने और सफाई समेत शहरी पानी के सौ फीसदी मापन की बात कहती है। अखबार ने कहा है कि संघीय और प्रांतीय सरकारों ने इस संबंध में एक नीति को अंतिम रूप दिया है। लेकिन, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की राजनीतिक व्यस्तताओं के चलते मंगलवार को काउंसिल ऑफ कॉमन इंटरेस्ट्स की बैठक में इस पर चर्चा नहीं हो पाई।

अखबार के मुताबिक इस नीति में कहा गया है कि सिंधु जल संधि ने भारत के साथ जल बंटवारे पर एक पूरी प्रणाली उपलब्ध करवाई, लेकिन नियंत्रण रेखा के पास पनबिजली विकास से जुड़ी परियोजनाएं कम प्रवाह वाली अवधियों में पाकिस्तान के लिए जल उपलब्धता का संकट पैदा कर सकते हैं। यह संधि अंतरराष्ट्रीय सीमा से नीचे की ओर पूर्वी नदियों के लिए जिनका जल भारत के पास रहता है, न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह उपलब्ध नहीं करवाती। इससे निचले इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए गंभीर संकट पैदा हो जाते हैं।

जल नीति में कहा गया है, दो से अधिक प़़डोसियों से जुड़ी क्षेत्रीय प्रणालियों की तलाश की जानी चाहिए ताकि सीमा पार से सर्दी के समय पानी छोड़े जाने पर या मानसून और रबी एवं खरीफ की फसल बोने के समय पानी रोके जाने की स्थिति में पाकिस्तान की बढती कमजोरी का उपयुक्त समाधान निकाला जा सके। पश्चिमी नदियों पर विकास के चलते पैदा होने वाली चुनौतियों के असर के विश्लेषण के लिए अध्ययन, इस असर को न्यूनतम करने के लिए सिंधु जल संधि और अंतरराष्ट्रीय जल नियमों के तहत उठाए गए कदमों की पडताल की भी वकालत इस नीति में की गई है।

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