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साहूकारों के नहीं बल्‍कि बैंक के कर्ज ने ली 80 फीसद किसानों की जान: NCRB

यह पहली बार है जब एनसीआरबी ने किसानों की आत्‍महत्‍या की अलग कैटेगरी बनार्इ है क्‍योंकि बैंकों की कर्ज ने बड़ी संख्‍या में किसानों को आत्‍महत्‍या के लिए मजबूर किया।

By Monika minalEdited By: Published: Sat, 07 Jan 2017 09:31 AM (IST)Updated: Sat, 07 Jan 2017 10:18 AM (IST)

नई दिल्ली (जेएनएन)। भारत के किसानों की आत्महत्या के लिए आमतौर पर स्थानीय साहूकारों को जिम्मेवार माना जाता है लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2015 में पंजीकृत सूक्ष्म वित्त संस्थानों व बैंकों से लिए गए कर्ज को न चुका पाने के कारण 80 फीसद किसानों ने अपनी जान दे दी।

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नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, किसानों की आत्महत्या के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि 2015 में देश में 3000 से अधिक किसानों ने आत्म हत्या कर ली।

19 अगस्त 2016 में एक अंग्रेजी अखबार के रिपोर्ट के अनुसार, किसानों की आत्महत्या के आंकड़े बताते हैं कि 2014 की तुलना में 2015 में 41.7 फीसद की बढ़ोतरी हुई थी। एनसीआरबी डाटा के अनुसार, 2015 में 8,007 आत्महत्या की घटनाएं हुई जो 2014 में 5,650 थी। अन्य राज्यों की सूची में महाराष्ट्र(3,030), तेलंगाना (1,358), कर्नाटक (1,197), छत्तीसगढ़ (854) व मध्यप्रदेश (516) आगे है।

योजना आयोग के पूर्व सदस्य अभिजीत सेन ने बताया, ‘नवीनतम आंकड़े इसलिए रोचक हैं क्योंकि सबका मानना है कि किसानों की आत्महत्या के पीछे साहूकारों का हाथ होता है। आज भी आधे से अधिक किसान साहूकारों से कर्ज लेते हैं। हालांकि बैंकों की तुलना में साहूकारों से कर्ज लेना कहीं अधिक राहत का काम है क्योंकि वे मामले को देखते हुए कुछ संवेदनशील हो जाते हैं। चूंकि बैंकों में सख्त कानून होते हैं इसलिए वे ऐसा नहीं कर सकते। पंजीकृत सूक्ष्म वित्त संस्थानों की स्थिति तो इस मामले में और भी बदतर है। वे समय पर कर्ज चुकाने के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप पर दबाव बनाते रहते हैं कि यदि कर्ज का भुगतान समय पर नहीं हुआ तो उनके शेयर काट लिए जाएंगे।‘

कृषि संबंधित मामले जैसे फसलों की उपज में कमी से भी महाराष्ट्र में 769, तेलंगाना में 363, आंध्र प्रदेश में 153, कर्नाटक में 122 किसानों ने आत्महत्या कर ली। इसके अलावा एनसीआरबी के अनुसार किसानों की आत्महत्या के लिए पारिवारिक मुश्किलें (933), बीमारी (842) भी आत्महत्या के कारण बने।

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