व्यवस्था के खिलाफ अधिकारों की जंग है नक्सलवाद
भारत नेपाल सीमा पर दार्जिलिंग जिले के झंडूजोत व बेंगाई जोत में 24 व 25 मई 1967 में व्यवस्था के खिलाफ अधिकारों की जंग में हिंसा का रास्ता चुना गया।
सिलीगुड़ी [अशोक झा]। पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव में व्यवस्था के खिलाफ अधिकारों की जंग शुरू हुई। जो अाज हिंसा का रास्ता अख्तियार करते हुए पूरे देश में नक्सल अांदोलन के नाम से पैर पसार चुका है।
भारत नेपाल सीमा पर दार्जिलिंग जिले के झंडूजोत व बेंगाई जोत में 24 व 25 मई 1967 में व्यवस्था के खिलाफ अधिकारों की जंग में हिंसा का रास्ता चुना गया। इसका नाम दिया गया नक्सलबाड़ी आंदोलन, जो 50 वर्षो में नक्सलवाद और माओवाद के रूप में पूरे देश में विकसित हो गया।
कानू सान्याल, चारू मजुमदार, जंगल संथाल, सोरेन बोस, खोखन मजुमदार, केशव सरकार, शांति मुंडा द्वारा प्रारंभ सशस्त्र आंदोलन की चिंगारी आज ज्वाला बनकर देश की सरकार और प्रशासन को चुनौती बन गई है।
आंदोलन की शुरुआत सिलीगुड़ी में पैदा हुए चारू मजुमदार आंध्र प्रदेश के तेलंगाना आंदोलन व्यवस्था से बागी हुए। इसके चलने 1962 में उन्हें जेल में रहना पड़ा, जहां उनकी मुलाकात कानू सान्याल से हुई। जेल से बाहर अाने के बाद दोनों ने व्यवस्था के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का रास्ता चुना। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय को काला झंडा दिखाने के क्रम में कानू सान्याल जेल भेजे गये। इसी बीच जोतदारों पर पूंजीपतियों व जमींदारों का अत्याचार नक्सलबाड़ी क्षेत्र में बढ़ने लगा था।
इसके खिलाफ जोतदारों को एकजुट किया जाने लगा। 24 मई 1967 को झंडूजोत में गर्भवती आदिवासी महिला को पुलिस सब इंस्पेक्टर सोनम बाग्दी ने लाठी मारकर घायल कर दिया। आदिवासी महिला के पेट में ही बच्ची की मौत हो गई। उसके बाद हिंसक भीड़ ने सोनम बाग्दी को भी मार दिया। आदिवासी महिला की भी बाद में मौत हो गई। इसके बाद 25 मई 1967 दोपहर बेंगाइजोत नक्सलबाड़ी में जब महिलाओं का जत्था सभा के लिए जा रहा था। उस समय सभी निहथ्थे थे। अचानक इस्र्टन फोर्स की पुलिस का आक्रोश उन पर कहर बनकर टूट पड़ा। पुलिस गोलीबारी में एक पुरुष, आठ महिलाएं और दो बच्चे मारे गये। उसके बाद यह आंदोलन पूरे राज्य में नक्सलबाड़ी आंदोलन के रुप में प्रारंभ हो गया।
गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से आंदोलन जारी रहा। सशस्त्र आंदोलन के खिलाफ पहली बार आर्मी को उतारा गया। 16 जुलाई 1972 को कलकत्ता से चारू मजुमदार को गिरफ्तार कर लिया गया। ह्दय रोग से पीडि़त चारू मजुमदार को न तो वहां दवाएं मुहैया करायी गयीं और न अन्य सुविधाएं। 28 जुलाई 1972 को उनकी मौत जेल में ही हो गई। इसके बाद यह आंदोलन ने देश के कई हिस्सों में फैल गया। हालांकि चारू मजुमदार के परिवार वालों का आरोप है कि पुलिस और सरकार ने उन्हें एक साजिश के तहत जेल में ही मारने का काम किया। उसके बाद नेताओं के अलग-थलग पड़ने के बाद संगठन में बिखराव आ गया।
नक्सलबाड़ी क्षेत्र में बंटा संगठन
वर्तमान में आंदोलन की जननी कहे जाने वाले नक्सलबाड़ी क्षेत्र में भी संगठन चार भाग में विभाजित हो गया है। यहां भाकपा माले, भाकपा माले न्यू डेमोक्रेसी, भाकपा माले लिबरेशन तथा भाकपा माले महादेव गुट के नाम पर अपने विचारों को आगे बढ़ा रही है। नक्सलबाड़ी आंदोलन नक्सलवाद के नाम पर आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़,
उड़ीसा, झारखंड और बिहार में फैलता गया। जिन वंचितों, दमितों, शोषितों के अधिकारों की लड़ाई के लिए आंदोलन शुरू हुआ, ना तो उनके कुछ हाथ आया, न ही नक्सलवादियों के। ङ्क्षहसा की बुनियाद पर रखी इस आंदोलन की भटकाव ही परिणिति थी। इससे दुखी: कानू सान्याल ने आंदोलन के गांव सेवतोल्ला जोत नक्सलबाड़ी में 23 मार्च 2010 को फांसी लगाकर अपनी जान दे दी।
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स्वर्ण जयंती पर होंगे कई कार्यक्रम
सिलीगुड़ी : नक्सलबाड़ी आंदोलन की स्वर्ण जयंती वर्षगांठ पर सिलीगुड़ी में कई कार्यक्रम आयोजित होंगे। इसकी जानकारी भाकपा माले लिबरेशन के सेंट्रल कमेटी सदस्य व नक्सली नेता चारू मजुमदार के पुत्र अभिजीत मजुमदार ने दी। अभिजीत मजुमदार के मुताबिक स्वर्ण वर्षगांठ के अवसर पर पूरे देश के बड़े नक्सली नेता सिलीगुड़ी में होंगे। सेंट्रल कमेटी के नेताओं के साथ 25 मई की सुबह बेंगाइजोत स्थित 24 व 25 मई के शहीदों को उनके बेदी पर लाल सलाम करेंगे। सिलीगुड़ी बाघाजतिन पार्क में जनसभा का आयोजन होगा। इसें दिपांकर भट्टाचार्य, सदेश भट्टाचार्य व कविता कृष्णन अपनी बातें रखेंगे। उसी शाम आंध्र प्रदेश, कलकत्ता, पूर्वोत्तर भारत के असम त्रिपुरा से आए जनवादी जत्थे संस्कृति की अलख जगाएंगे।
तीन दिनों तक होगी केंद्रीय कमेटी की बैठक
सिलीगुड़ी: 26 से 28 मई तक देश के कोने कोने से आए नक्सली प्रतिनिधियों के साथ सेंट्रल कमेटी की बैठक होगी। इसमें आरएसएस और भाजपा के उन्माद ङ्क्षहदुत्व के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया जाएगा। नक्सलबाडी आंदोलन को मानने वालों को कहना है कि 1925 में प्रारंभ संघ और कम्युनिस्ट का जन्म हुआ। आज सरकार की नीतियों के कारण लगातार समाज में विद्रोह की स्थित है।
उसी नक्सलबाड़ी से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बदलाव के नाम पर नक्सलवाड़ी आंदोलन के खिलाफ एक मुहिम छेडऩे की बात की है। नक्सल नेताओं का मानना है कि उन्हें सत्ता नहीं समाज को बदलना है। जब समाज बदलेगा तो सशस्त्र आंदोलन स्वयं ही होगा।
माओवादी नक्सलियों द्वारा सुकमा समेत अन्य स्थानों पर हिंसा की जा रही है। उसके पीछे भी राज्य सत्ता व केंद्र सत्ता की कमियां हैं। बंदूक से राष्ट्र से जंग लेने के पीछे भी व्यवस्था के खिलाफ अधिकारों की जंग ही है।
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