गुमनामी बाबा दोहराया करते थे, 'देश के रजिस्टर से मेरा नाम काट दिया गया'
गुमनामी बाबा का हर प्रसंग उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस की ओर ले जाता है। मुखर्जी आयोग को 21वीं सदी में ताइवान सरकार से ज्ञात हुआ कि 18 अगस्त 1945 को जिस ताईहोकू विमान दुर्घटना में नेताजी के निधन का दावा किया गया, वह दुर्घटना हुई ही नहीं। जबकि गुमनामी बाबा
फैजाबाद, जागरण संवाददाता। गुमनामी बाबा का हर प्रसंग उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस की ओर ले जाता है। मुखर्जी आयोग को 21वीं सदी में ताइवान सरकार से ज्ञात हुआ कि 18 अगस्त 1945 को जिस ताईहोकू विमान दुर्घटना में नेताजी के निधन का दावा किया गया, वह दुर्घटना हुई ही नहीं। जबकि गुमनामी बाबा 1975 से 80 के बीच संपर्क में आए भक्तों को यह जानकारी बरबस दिया करते थे। बाबा के अनुसार दुर्घटना की बाद दूर, उस तारीख को ताईहोकू से कोई विमान उड़ा ही नहीं। बाबा शरीर को बहुत सहेजने की सलाह पर कहते थे, यह शरीर साइबेरिया में भी रह चुका है। 1990 के प्रारंभिक वर्षों में गुमनामी बाबा के मामले में गंभीर रिपोर्टिंग की छाप छोड़ने वाले साकेत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. वीएन अरोड़ा यह जानकारी साझा करने के साथ आज स्वयं को चमत्कृत अनुभव करते हैं।
डॉ. अरोड़ा उन लोगों से मिल चुके हैं और उनके बयान रिकार्ड कर चुके हैं, जो इटावा, नैमिषारण्य, लखनऊ, बस्ती, अयोध्या एवं फैजाबाद प्रवास के दौरान बाबा के संपर्क में थे और बाबा इशारों में ही कभी-कभी बहुत अहम बातें करते थे। बस्ती के अधिवक्ता दुर्गाप्रसाद पांडेय के बयान को दुहराते हुए डॉ. अरोड़ा की आंखें सजल हो उठती हैं। बाबा पांडेय से कहा करते थे- इस देश के रजिस्टर से मेरा नाम काट दिया गया है और इस शरीर की कोई पहचान नहीं है। अयोध्या के गोलाघाट स्थित एक पुरानी कोठी में प्रवास के दौरान आजाद हिंद फौज की महिला विंग से जुड़ी रहीं लीला राय उनसे मिलने आई थीं। डॉ. अरोड़ा इस जानकारी की पुष्टि करते हैं। हालांकि सर्वाधिक चमत्कृत बाबा के पास से बरामद पवित्र मोहन राय के ढाई तीन सौ टेलीग्राम एवं इतने ही अंतर्देशीय आदि पत्र करते हैं। पवित्र मोहन आजाद हिंद फौज की इंटेलीजेंस शाखा के प्रमुख थे और ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। बाद में वे आजाद हुए।