सपा सरकार के खिलाफ सांसद-विधायक सड़क पर
रणनीतिक परिवर्तन है अथवा किसी तरह की विवशता, लेकिन सपा सरकार को घेरने के लिए भाजपा और कांग्रेस अब संगठन के बजाय विधायिका पर ज्यादा आश्रित होते दिख रही हैं। इस मुद्दे पर भाजपा ज्यादा सक्रिय है जिसने सांसदों के सामूहिक धरने के बाद अब विधायकों के दो दिवसीय धरने का ऐलान किया है।
लखनऊ (राज्य ब्यूरो)। रणनीतिक परिवर्तन है अथवा किसी तरह की विवशता, लेकिन सपा सरकार को घेरने के लिए भाजपा और कांग्रेस अब संगठन के बजाय विधायिका पर ज्यादा आश्रित होते दिख रही हैं। इस मुद्दे पर भाजपा ज्यादा सक्रिय है जिसने सांसदों के सामूहिक धरने के बाद अब विधायकों के दो दिवसीय धरने का ऐलान किया है। सदन ही नहीं अब सड़क पर भी विधायकों की भूमिका का विस्तार हो रहा है। शुक्रवार को विधान मंडल दल की बैठक के बाद भाजपा ने पार्टी विधायकों द्वारा 29 व 30 सितंबर को विभिन्न समस्याओं को लेकर सपा सरकार के खिलाफ राजधानी में दो दिवसीय धरना देने की घोषणा की। एक सितंबर को भाजपा के सांसदों ने राजधानी में कानून व्यवस्था व बिजली की किल्लत को लेकर धरना दिया था। प्राय: विरोध प्रदर्शन संगठन करता है और निर्वाचित जन प्रतिनिधि अपने क्षेत्रों में स्थानीय समस्याओं को लेकर सड़कों पर आते हैं।
लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व संख्या में सांसदों के जीतने और प्रदेश के अगले विधान सभा चुनाव को देखते हुए पार्टी अब सांसदों व विधायकों को आगे कर सपा सरकार के विरोध की रणनीति पर काम कर रही है। रणनीति के साथ-साथ ऐसा करना मजबूरी भी है। संगठन के स्तर पर प्रदर्शन किए जाने पर इसकी सफलता का सबसे बड़ा और निर्णायक पैमाना भीड़ बनती है। भीड़ न जुटने पर कार्यक्रम को लेकर प्रतिकूल प्रचार होता है। विधायक व सांसदों के सामूहिक धरना देने से उनकी मौजूदगी ही सुर्खियां बनती हैं। संगठन के विरोध प्रदर्शन के लिए व्यापक तैयारियां करनी पड़ती हैं और फिर भी कोई गारंटी नहीं होती कि कामयाबी मिलेगी ही। भाजपा की तरह ही कांग्रेस भी ऐसी ही रणनीति पर चल रही है।
कांग्रेस ने भी शनिवार को 27 सितंबर को पार्टी के पूर्व विधायक जंग बहादुर सिंह के पुत्र के हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई न होने को मुद्दा बनाते हुए धरना देने की घोषणा की है। संगठनात्मक कमजोरियों से जूझ रही कांग्रेस को भी विधायकों के जरिए विरोध प्रदर्शन सुहा रहा है। प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि विधायकों व सांसदों द्वारा विरोध प्रदर्शन करना न कोई रणनीति है और न ही मजबूरी। ऐसा करना जनता से जुड़ाव रखने और उसकी समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है। लोगों ने सांसद-विधायक को चुना है तो उनसे अपेक्षाएं भी तो हैं।
प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता द्विजेन्द्र त्रिपाठी कहते हैं कि विधायक पार्टी के ही अंग हैं और उनके द्वारा विरोध प्रदर्शन का आशय यह कतई नहीं होता कि संगठन गौण है। विधायिका भी पार्टी संगठन की महत्वपूर्ण शाखा है और निर्वाचित प्रतिनिधि होने के कारण उनकी आवाज सदन के भीतर-बाहर सुनी जाती है।