चीन की दबंगई पर 26 जून को होगी मोदी-ट्रंप की बात
ट्रंप के प्रेस सचिव की तरफ से दिए गए इस बयान का सीधा सा मतलब यह कि मोदी और ट्रंप के बीच 'साउथ चाईना सी' का मुद्दा उठेगा।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। लगभग छह महीने तक चुप्पी साधने के बाद ट्रंप प्रशासन ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि अमेरिका के लिए भारत के रणनीतिक महत्व को लेकर जो नीति पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में तय की गई थी वह आगे भी जारी रहेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय ने पीएम नरेंद्र मोदी की 25 जून से शुरु हो रही तीन दिवसीय वार्ता के एजेंडा का ऐलान करते हुए भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के भविष्य को लेकर उठाई जा रही आशंकाओं को एक झटके में खत्म कर दिया है। राष्ट्रपति ट्रंप के प्रेस सचिव सीन स्पाइसर ने इस एजेंडे में जो तीन अहम बातें गिनाई हैं उनमें हिंद प्रशांत महासागर में दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा देना भी शामिल है। अन्य दो अहम मुद्दे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना है।ओबामा सरकार के कई फैसलों को पलटने की वजह से कई तरह के विवादों में घिरे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार की तरफ से इस तरह का संकेत मिलना मोदी सरकार के लिए भी एक तरह से राहत की बात है। क्योंकि अभी तक ट्रंप प्रशासन की तरफ से भारत व अमेरिका के रणनीतिक साझेदारी के भविष्य को लेकर खुल कर कुछ नहीं कहा गया था।
राष्ट्रपति ट्रंप और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच 26 जून, 2017 को द्विपक्षीय वार्ता होगी। 'दैनिक जागरण' ने सबसे पहले इसकी सूचना दी थी। ट्रंप के प्रेस सचिव की तरफ से दिए गए इस बयान का सीधा सा मतलब यह कि मोदी और ट्रंप के बीच 'साउथ चाईना सी' का मुद्दा उठेगा। साउथ चाईना सी का मुद्दा हाल के वर्षो में चीन की वहां बढ़ रही गतिविधियों की वजह से अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में रहा है। इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व से यहां के देशों के अलावा अमेरिका, जापान समेत अन्य देश भी चिंतित है।वर्ष २०१५ में मोदी और ओबामा के बीच बातचीत के बाद दोनों देशों की तरफ से जारी एशिया प्रशांत व हिंद महासागर क्षेत्र के लिए एक संयुक्त रणनीतिक दृष्टिपत्र जारी किया गया था। भारत व अमेरिका ने कहा था कि आने वाले दिनों में पूरे महासागरीय क्षेत्र में किस तरह से द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाना है यह इसका रोडमैप है। दोनों देशों के बीच सहमति बनी थी कि उक्त दोनों महासागरीय क्षेत्र में वे एक दूसरे के सबसे अहम सहयोगी होंगे। इसमें बाद में जापान को भी जोड़ा गया और तीनों देशों की सेनाओं के बीच संयुक्त अभियान का कार्यक्रम शुरु किया गया। इस सहयोग पर चीन ने परोक्ष तौर पर कई बार टिप्पणी की है कि यह उसके खिलाफ लामबंदी है।
मोदी व ओबामा की मुलाकात के बाद जारी हर बयान में दोनों देश समुद्री मार्ग के मामले में संयुक्त राष्ट्र के नियमों के पालन करने की मांग की है जिसे भी चीन को संदेश देने के तौर पर माना जाता रहा है। राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद ट्रंप ने जिस तरह से चीन को लेकर अपने स्वर बदले थे उससे यह लगा था कि शायद चीन को लेकर अमेरिका की नीतियों में बदलाव आ रहा है। ऐसे में अब दोनों देशों के कूटनीतिक में रुचि लेने के अलावा दुनिया के अन्य देशों की नजर भी मोदी और ट्रंप के बीच होने वाली मुलाकात पर रहेगी।
कितना मिलेगा मोदी को महत्व
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अमेरिका ने पीएम नरेंद्र मोदी के स्वागत की घोषणा की है लेकिन अभी भी यह तय नहीं है कि मोदी का स्वागत किस तरह से किया जाएगा। अभी तक की सूचना के मुताबिक मोदी व ट्रंप की मुलाकात वाशिंगटन स्थित व्हाइट हाउस में ही होगी। सनद रहे कि ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और जापान के पीएम शिंजो अबे का स्वागत फ्लोरिडा स्थित अपने व्यक्तिगत निवास पर किया था। वैसे यह मोदी की पांचवी अमेरिकी यात्रा होगी। पिछली यात्रा उन्होंने जून, 2016 में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के आमंत्रण पर किया था। मोदी व ट्रंप के बीच अभी तक व्यक्तिगत मुलाकात नहीं हुई है।