Move to Jagran APP

...और यूं मिसाइल मैन बने कलाम

रामेश्वरम की गलियों में पले बढ़े कलाम के बचपन में इच्छा तो पायलट बनने की थी लेकिन नियति ने उन्हें मिसाइल मैन बना दिया। कलाम एयरफोर्स में भर्ती होना चाहते थे। लेकिन वहां से उन्हें जो निराशा हाथ लगी वह देश के अंतरिक्ष विज्ञान के लिए वरदान साबित हुई।

By Sanjay BhardwajEdited By: Published: Tue, 28 Jul 2015 09:48 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2015 10:39 AM (IST)

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। रामेश्वरम की गलियों में पले बढ़े कलाम के बचपन में इच्छा तो पायलट बनने की थी लेकिन नियति ने उन्हें मिसाइल मैन बना दिया। कलाम एयरफोर्स में भर्ती होना चाहते थे। लेकिन वहां से उन्हें जो निराशा हाथ लगी वह देश के अंतरिक्ष विज्ञान के लिए वरदान साबित हुई।

loksabha election banner

डीआरडीओ में अपने वैज्ञानिक कैरियर की शुरुआत कलाम ने एक छोटे हेलीकॉप्टर बनाने की कोशिश से की थी। वैसे बाद में उन्होंने माना कि वह खुद भी इस हेलीकॉप्टर की डिजाइन से संतुष्ट नहीं थे। साथ ही डीआरडीओ में काम का सरकारी माहौल ने उनके वैज्ञानिक उत्साह पर पानी डाल दिया था। लेकिन इसरो में आने के बाद सब कुछ बदल गया।

इसरो में एक युवा वैज्ञानिक के तौर पर उन्हें प्रख्यात वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की अध्यक्षता में गठित एक समिति का सदस्य बनाया गया। कलाम ने बाद में लिखा भी कि जब उनकी इसरो में नियुक्ति हुई और उन्होंने काम करना शुरू किया तो उन्हें अपनी काबिलियत पर भरोसा हुआ। इसरो को ज्वाइन करने को वह अपने जीवन की सबसे अहम उपलब्धियों में से एक मानते रहे।

पढ़ें : पटना की पगडंडी से नालंदा में आयुध निर्माण तक डॉ. कलाम

पढ़ें : कलाम को सलाम...बेचते थे अखबार, पढ़ते थे गीता-कुरान

वर्ष 1970 से वर्ष 1990 के बीच कलाम ने देश की महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष योजनाओंं को दिशा में सबसे अहम भूमिका निभाई। इस दौरान ही पोलर सेटेलाइट लांच व्हिकल (पीएसएलवी) और सेटेलाइट लांच व्हिकल (एसएलवी) कार्यक्रम को परवान चढ़ाया गया। भारत से अंतरिक्ष में स्थापित किए गए पहले सेटेलाइट लांच व्हिकल (एसएलवी-तीन) के प्रोजेक्ट निदेशक कलाम ही थे।

इस दौरान न सिर्फ अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत की पहचान बनी बल्कि इस तकनीकी का इस्तेमाल देश की सुरक्षा के लिए करने का रास्ता भी खुल गया। भारत को मिसाइल तकनीकी से लैस करने के लिए कलाम ने प्रोजेक्ट डेविल और प्रोजेक्ट वैलियंट की शुरुआत की। कहा जाता है कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार तब मिसाइल प्रोजेक्ट को बड़ा फंड देने के लिए बहुत उत्साहित नहीं थी लेकिन कलाम ने गांधी के सामने जब प्रेजेंटेशन रखा तो वह इसके लिए तैयार हो गई।

मिसाइल प्रोजेक्ट के लिए गांधी ने एक गोपनीय फंड बनाया और इसके कर्ता-धर्ता पूरी तरह से कलाम थे। इस फंड की भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में आत्मनिर्भर बनाने में काफी अहम भूमिका रही। बाद में जब इंटग्र्रेटेड गाइडेड मिसाइल कार्यक्रम (आइजीएमपीडी) बनाया गया तो कलाम को इसका चीफ एक्जीक्यूटिव बनाया गया। अग्नि और पृथ्वी जैसे मिसाइल को तैयार करने में भी उनका अहम योगदान रहा। बाद में भारत ने जब पोखरन में दोबारा परमाणु विस्फोट किया तो कलाम और आर चिदंबरम संयुक्त तौर पर इस प्रोजेक्ट के इंचार्ज थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.