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    नई सरकार को मिलेगी उपलब्धियों व असफलता की विरासत

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    Updated: Thu, 15 May 2014 07:01 PM (IST)

    1990 के दशक में आíथक सुधारों में मुख्य भूमिका निभा चुके अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह 10 साल के कार्यकाल के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने जा रहे हैं। वे नई सरकार के लिए उपलब्धियों व असफलताओं की मिलीजुली विरासत छोड़कर जा रहे हैं। मनमोहन सिंह को लगातार दो कार्यकाल में सरकार का नेतृत्व करने का सम्मान मिला, लेकिन

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    नई दिल्ली। 1990 के दशक में आíथक सुधारों में मुख्य भूमिका निभा चुके अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह 10 साल के कार्यकाल के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने जा रहे हैं। वे नई सरकार के लिए उपलब्धियों व असफलताओं की मिलीजुली विरासत छोड़कर जा रहे हैं।

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    मनमोहन सिंह को लगातार दो कार्यकाल में सरकार का नेतृत्व करने का सम्मान मिला, लेकिन संप्रग 2 के दौरान सामने आए घोटालों की वजह से 81 वर्षीय इस नेता के अच्छे कार्यो को भी पर्याप्त प्रशंसा नहीं मिल सकी। एग्जिट पोल के नतीजों के मुताबिक लोकसभा चुनाव में संप्रग की हार की भविष्यवाणी की गई है। अगर यह सच होती है, तो मनमोहन सिंह शनिवार को अपने पद से त्यागपत्र देंगे।

    ऐसे रखा राजनीति में कदम अर्थशास्त्री के रूप में ख्याति पाने के बाद मनमोहन सिंह ने वर्ष 1991 के आíथक संकट के समय राजनीति में कदम रखा, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें वित्त मंत्री का दायित्व सौंपा। दोनों ने मिलकर अर्थव्यवस्था को भुगतान संतुलन के संकट से बाहर निकाला और आíथक सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया, जिसके बाद किसी सरकार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। रिजर्व बैंक के गवर्नर, साउथ--साउथ कमीशन के महासचिव जैसे पदों पर रहते हुए मनमोहन ने जो नाम कमाया, उसी ने प्रधानमंत्री पद के लिए उन्हें सोनिया गांधी का पसंदीदा व्यक्ति बना दिया।

    ऐसा रहा प्रधानमंत्री का सफर

    वर्ष 2002 के गुजरात दंगों की छाया व सरगर्म सांप्रदायिक माहौल में राजग से प्रधानमंत्री पद की कमान अपने हाथों में लेने वाले मनमोहन सिंह ने प्रशासन में संतुलन स्थापित किया। गठबंधन के सहयोगी दलों, खास कर वाम दलों की खींचतान व दबाव के बावजूद भारत--अमेरिका परमाणु संधि समेत देश पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की दिशा में आगे बढ़ते रहने का हौसला दिखाया।

    यही नहीं, उनकी सरकार ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन, कॉमनवेल्थ खेल, कोयला ब्लॉक आवंटन जैसे घोटालों और नीतिगत जुड़ता के बावजूद अपने अधिकांश कार्यकाल में देश की आíथक विकास दर 8.5 प्रतिशत पर बनाए रखने में सफलता पाई।

    हालांकि संप्रग 2 सरकार कभी भी लीक से हटकर नहीं चल पाई। यही वह मुद्दा था, जिसे पहले कॉर्पोरेट जगत ने और बाद में नरेन्द्र मोदी ने सरकार पर हमले के लिए इस्तेमाल किया।

    निजी ईमानदारी के बाद भी आलोचना

    यह विडंबना ही है कि ऐसा व्यक्ति, निजी तौर पर जिसकी ईमानदारी पर कभी किसी ने अंगुली नहीं उठाई, उसे ऐसी सरकार का नेतृत्व करना प़़डा, जो एक के बाद एक घोटालों में फंसी रही। कांग्रेस में शक्ति के कथित दूसरे केन्द्र सोनिया गांधी के दबाव में रहे मनमोहन सिंह के आलोचक उन्हें अभी तक का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री कहते हैं। प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू और अन्य नौकरशाहों द्वारा लिखी गई पुस्तकों में भी इस आरोप की पुष्टि ही की गई।

    हालांकि मनमोहन सिंह ने इतिहास को अपने प्रति सख्त रख अपनाने से रोकने में सफलता पा ली। इससे यह भी साबित होता है कि विनम्र स्वभाव भारतीय लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को शीर्ष पद तक पहुंचने में सफलता दिला सकता है। वे प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचने वाले पहले सिख हैं। यह जानना भी रोचक होगा कि इतालवी ईसाई सोनिया गांधी ने सिख मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त किया और उन्हें पद की शपथ मुस्लिम राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने दिलाई।

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