महिलाओं की ड्रेस व मोबाइल पर खाप का आदेश गैरकानूनी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं के लिए ड्रेस कोड और मोबाइल फोन लेकर नहीं चलने का खाप पंचायतों का आदेश गैरकानूनी है। कोर्ट ने खाप पंचायतों को इस मुद्दे पर 25 फरवरी तक अपना जवाब देने को कहा है। कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ खाप पंचायतों की कार्रवाई की शीर्ष अदालत ने सराहना भी की है। अब इस
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं के लिए ड्रेस कोड और मोबाइल फोन लेकर नहीं चलने का खाप पंचायतों का आदेश गैरकानूनी है। कोर्ट ने खाप पंचायतों को इस मुद्दे पर 25 फरवरी तक अपना जवाब देने को कहा है। कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ खाप पंचायतों की कार्रवाई की शीर्ष अदालत ने सराहना भी की है। अब इस मामले पर अंतिम सुनवाई पांच मार्च को होगी।
न्यायमूर्ति आफताब आलम व रंजना प्रकाश देसाई की पीठ ने सोमवार को कहा कि ऐसे आदेश जीने के मौलिक अधिकारों के खिलाफ हैं। केंद्र सरकार ने जब पीठ से कहा कि खाप पंचायतों (जातीय पंचायतों) से महिलाओं के खिलाफ ऐसे आदेश पारित किए जा रहे हैं तो पीठ ने कहा कि ऐसे आदेश जीने के अधिकार के हनन के साथ कानून का भी उल्लंघन करते हैं। कोई व्यक्ति किसी और को मोबाइल लेकर नहीं चलने के लिए कैसे कह सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के आमंत्रण पर उत्तर प्रदेश व हरियाणा की विभिन्न खाप पंचायतों के नेता सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई की तारीख को इन्हें अपना विचार रखने का और समय दिया था। उन्होंने अदालत में कहा कि उनके बारे में अदालत में तथ्यों को बहुत तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। उत्तर प्रदेश व हरियाणा के शीर्ष पुलिस अधिकारी भी कोर्ट में पेश हुए और कहा कि खापें सामाजिक नजरिए से कुछ उल्टे विचार जारी करती हैं, लेकिन वे सीधे तौर पर कभी भी 'ऑनर किलिंग्स' में शामिल नहीं होतीं।
दोनों राज्यों की विधि व्यवस्था देखने वाले अपर पुलिस महानिदेशकों ने कहा कि खापें भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने जैसे सकारात्मक कार्य भी करती हैं। अदालत शक्ति वाहिनी नामक एक स्वयंसेवी संस्था की याचिका की सुनवाई कर रही थी।
उसमें अदालत से सरकार को प्रेमी युगलों को परेशान करने और उनकी हत्या करने को लेकर खापों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश देने की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि खासकर अंतरजातीय या अपने ही गोत्र में शादी करने पर खापें परिवार के सम्मान के नाम पर हत्या कर देती हैं।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जय सिंह ने खाप पंचायतों के काम करने का जोरदार विरोध किया और कहा कि वे समानांतर अदालतें चला रही हैं और पारिवारिक मामलों में फैसले सुना रही हैं। उन्होंने कहा कि खाप पंचायतों को रोकने में पुलिस नाकाम है। ये पंचायतें खुद दावे कर रही हैं कि वे फैसले करने वाली संस्थाएं हैं।
इस मामले में अदालत मित्र (एमाइकस क्यूरे) ने भी कहा कि खापें प्रत्यक्ष तौर पर ऑनर किलिंग में शामिल नहीं होतीं, लेकिन वे एक माहौल जरूर पैदा करती हैं। विभिन्न खापों की ओर से पेश वकीलों ने कहा कि याचिकाकर्ता उन्हें 'तालिबानी' के रूप में पेश करने की कोशिश की है। वे ऑनर किलिंग में संलिप्त नहीं हैं।
चार जनवरी को सुनवाई के दौरान पीठ ने लगाए गए आरोपों पर खाप पंचायतों के विचार सुनने के लिए कोर्ट में आने का निमंत्रित किया था। स्वयंसेवी संस्था ने शिकायत की थी कि पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल व हरियाणा में ऑनर किलिंग के मामले तेजी से बढ़े हैं, लेकिन वोट बैंक की राजनीति के कारण न तो केंद्र सरकार और न राज्य सरकारें इस सामाजिक बुराई को रोकने के लिए कदम उठा रही हैं।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर