सबरीमाला में महिलाओं के निषेध पर केरल सरकार सहमत
केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य के ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के माहवारी काल में प्रवेष निषेध को उचित ठहराया है।
नई दिल्ली। केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य के ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के माहवारी काल में प्रवेश निषेध को उचित ठहराया है। राज्य सरकार की दलील है कि यह धर्म का मामला है और यह सबका दायित्व है कि इस धर्म के मानने वालों के इसकी रीति-नीति अपनाने के अधिकारों को संरक्षण दें।
राज्य सरकार ने शनिवार को सर्वोच्च अदालत में अपना पक्ष रखते हुए हलफनामा दायर किया। इसमें कहा गया कि मंदिर प्रशासन त्रावणकोर देवस्थानम बोर्ड के अधीन है। यह बोर्ड त्रावणकोर-कोचिन हिंदू धार्मिक संगठन अधिनियम 1950 के तहत काम करता है। पूजा-पाठ के मामले में पुजारी का निर्णय ही अंतिम होता है।
राज्य के मुख्य सचिव जिजि थामसन ने दायर हलफनामे में कहा कि इस अधिनियम के तहत बोर्ड वैधानिक दायित्वों का निर्वाह करता है।
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जस्टिस दीपक मिश्रा और एनवी रमन्ना की खंडपीठ इस मामले को अब 8 फरवरी को देखेगी। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने पिछली एलडीएफ सरकार का वह हलफनामा वापस ले लिया है जो उसने सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2007 के नवंबर महीने में दाखिल किया था।
पिछले हलफनामे में इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सहमति जताई गई थी। अब नए हलफनामे में कहा गया है कि 10 वर्ष से 50 वर्ष की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश वर्जित होना मंदिर की अनूठी प्रतिष्ठा संकल्प है। हलफनामे में दलील दी गई कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक मान्यताओं, समारोहों और पूजा के तरीकों का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
यह सभी विधाएं धर्म का ही हिस्सा हैं। हलफनामे में यंग इंडिया लार्यस एसोसिएशन की दायर याचिका को खारिज करने की अपील की गई है जिसमें करोड़ों लोगों की भावनाओं और रीतियों के विरुद्ध जाने को कहा गया है। वहीं दूसरी तरफ इलाहाबाद में आयोजित हुए धर्म संसद में आचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने महिलाओं का शनिमंदिर में जाने देने को गलत करार दिया है। उन्होंने कहा, 'महिलाओं को शनिमंदिर में नहीं जाने दिया जाना चाहिए।'