युवती जासूसी कांड की जांच के लिए नहीं मिल रहे जज
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को घेरने के उद्देश्य से गुजरात में एक युवती की कथित जासूसी की जांच के लिए न्यायिक आयोग के गठन का फैसला केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन गया है। सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का कोई पूर्व न्यायाधीश नरेंद्र मोदी के खिलाफ जांच के लिए तैयार नहीं है। यहां तक कि
नई दिल्ली [नीलू रंजन]। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को घेरने के उद्देश्य से गुजरात में एक युवती की कथित जासूसी की जांच के लिए न्यायिक आयोग के गठन का फैसला केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन गया है। सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का कोई पूर्व न्यायाधीश नरेंद्र मोदी के खिलाफ जांच के लिए तैयार नहीं है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने एक बार हामी भरने के बाद इससे इन्कार कर दिया है। यही कारण है कि कैबिनेट के फैसले के 10 दिन बाद भी न्यायिक आयोग के गठन की अधिसूचना जारी नहीं हो सकी है।
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गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि न्यायिक आयोग के गठन की अधिसूचना का प्रारूप एक हफ्ते से बनकर तैयार है और उसमें केवल न्यायाधीश का नाम लिखना बाकी है। उन्होंने कहा कि कानून मंत्रलय को न्यायाधीश का नाम बताना है, लेकिन पिछले 10 दिनों से वह इसे टाल रहा है। तीन दिन पहले कानून मंत्रलय ने जस्टिस अल्तमस कबीर को जांच के लिए राजी होने और जल्द ही इसके लिए औपचारिक सूचना देने का भरोसा भी दिया था। लेकिन बाद में जस्टिस कबीर के इन्कार के बाद कानून मंत्रलय चुप्पी साध गया।
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न्यायिक आयोग का गठन खटाई में
पिछले 10 दिनों में कानून मंत्रलय सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के एक दर्जन से अधिक पूर्व न्यायाधीशों के साथ संपर्क कर चुका है। लेकिन सभी ने आम चुनाव के ठीक पहले नरेंद्र मोदी के खिलाफ जांच में शामिल होने से इन्कार कर दिया है। वैसे कानून मंत्रलय के अधिकारी अब भी गृह मंत्रलय को भरोसा दे रहे हैं कि तीन अन्य न्यायाधीशों से बात चल रही है और उनमें कोई न कोई तैयार हो जाएंगे।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यदि इन तीनों ने भी इन्कार कर दिया तो न्यायिक आयोग का गठन खटाई में पड़ सकता है। प्रधानमंत्री मनमोहन की अध्यक्षता में कैबिनेट ने 26 दिसंबर को युवती की जासूसी मामले की जांच के लिए न्यायिक आयोग के गठन का फैसला किया था। न्यायिक आयोग को कानूनी वैधता देने के लिए उसके जांच के दायरे में युवती की जासूसी के साथ-साथ दिल्ली में भाजपा नेता अरुण जेटली के फोन कॉल रिकार्ड गैरकानूनी तरीके से निकालने और हिमाचल प्रदेश में भाजपा की प्रेम कुमार धूमल सरकार द्वारा कांग्रेसी नेताओं की फोन टैपिंग को शामिल कर दिया गया था। वैसे भाजपा ने शुरू में ही फैसले को राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित करार देते हुए इसे अदालत में चुनौती देने का एलान कर दिया था।
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