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संयुक्त परिवार और संस्कार से मिल कर बनता है सुखी संसार

देश के व्यावसायिक परिवारों पर शोध कर चुकीं इक्वेशन्स मैनेजमेंट कन्सलटिंग की संस्थापक डॉ.मीता दीक्षित कहती हैं कि संयुक्त परिवार व्यवस्था हमारे समाज की रीढ़ की हड्डी है। हम भले ही अपने शरीर और संपत्ति के लिए कितना भी बड़ा बीमा करवा लें,

By anand rajEdited By: Published: Thu, 14 May 2015 02:06 PM (IST)Updated: Thu, 14 May 2015 02:47 PM (IST)

मुंबई (ओमप्रकाश तिवारी)। ‘जहां सुमति तहं संपत्ति नाना’ – बाबा तुलसीदास की यह पंक्ति मुंबई के बिपिन भाई शाह परिवार पर बिल्कुल सटीक बैठती है, जिनके परिवार के 110 सदस्य महानगरीय मजबूरीवश अलग-अलग घरों में रहते हुए भी अपनी चौथी पीढ़ी में भी संयुक्त परिवार के मूल्यों का निर्वाह करते आ रहे हैं।

करीब 83 साल पहले उत्तर गुजरात के पाटन से खेमचंद छोटालाल शाह ने मुंबई आकर अपना व्यवसाय शुरू किया था। खेमचंद के चार पुत्र थे। इन चारों पुत्रों से सात पुत्र हुए, जिनमें सबसे बड़े जयंतीलाल शाह फिलहाल 86 वर्ष के और सबसे छोटे बिपिन भाई शाह 66 वर्ष के हैं। एस.के.फार्मा नामक विख्यात दवा कंपनी का इनका व्यवसाय अब इस परिवार की चौथी पीढ़ी संभाल रही है। इतना बड़ा परिवार आपस में इस तरह घुलामिला है कि अंग्रेजी शब्द ‘कजिन’ के लिए इसमें कोई जगह दिखाई नहीं देती। मुंबई जैसे महानगर में पूरा परिवार एक साथ भले न रह पाता हो, लेकिन हर महीने किसी एक भाई के घर सातों भाइयों का परिवार इकट्ठा होता है। पहले डेढ़ घंटे व्यवसाय पर चर्चा होती है। फिर पूरे परिवार के सभी स्त्री-पुरुष साथ बैठकर शादी-विवाह, बीमारी-अजारी जैसे पारिवारिक मसलों पर चर्चा कर बुजुर्गों की सहमति से निर्णय करते हैं। पिछले 35 वर्ष से दीवाली के अवसर पर चार दिन के लिए कोई रिसॉर्ट बुक किया जाता है, और पूरा परिवार एक साथ वहीं रहकर साथ समय गुजारता है। इस अवसर पर नई पीढ़ी फैशन शो और खेलकूद जैसे कई तरह के आयोजन भी करती है।

शाह परिवार के इस ढांचे को इक्कीसवीं सदी के संयुक्त परिवार का सफल उदाहरण माना जा सकता है। जहां रोज का चूल्हा भले साथ न जल रहा हो, लेकिन व्यवसाय से लेकर पारिवारिक आयोजन तक में पूरा परिवार न सिर्फ एक साथ है, बल्कि अंतिम निर्णय आज भी 86 वर्षीय जयंतीलाल शाह का ही होता है। परिवार की एकता का रहस्य बताते हुए बिपिन भाई कहते हैं कि आज भी हमारे यहां सबसे बड़े भाई परिवार के बच्चों को हर शनिवार को अपने पास बुलाकर उनसे विभिन्न मसलों पर बातचीत कर उन्हें संस्कारित करने का प्रयास करते हैं। परिवार में तय है कि कोई अपने बेटे-बेटी की शादी में एक निश्चित रकम से ज्यादा खर्च नहीं करेगा, न ही एक निश्चित मात्रा से ज्यादा सोना-चांदी देगा। व्यक्तिगत धन कितना भी हो, लेकिन 20 लाख से ज्यादा की गाड़ी में कोई नहीं चलेगा। घर की मरम्मत कराने के लिए पैसा भले ही अपना खर्च हो रहा हो, लेकिन खर्च की सीमा बड़े भाई जयंतीलाल ही निर्धारित करेंगे। एक बात और, परिवार में दो नंबर के पैसे का प्रवेश किसी कीमत पर नहीं होगा और कंपनी के कुल लाभ का सात फीसद परिवार द्वारा चलाए जा रहे सेवंतीलाल-कांतिलाल ट्रस्ट में जाएगा, जिसका उपयोग गरीबों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। बिपिन भाई के अनुसार परिवार में ये नियम इसलिए बनाए गए हैं ताकि परिवार को पैसे के अत्यधिक मोह, दिखावे और आपसी प्रतियोगिता से दूर रखा जा सके। क्योंकि यही तत्व परिवार में फूट का कारण बनते हैं।

समाज की रीढ़ है संयुक्त परिवार व्यवस्था

देश के व्यावसायिक परिवारों पर शोध कर चुकीं इक्वेशन्स मैनेजमेंट कन्सलटिंग की संस्थापक डॉ.मीता दीक्षित कहती हैं कि संयुक्त परिवार व्यवस्था हमारे समाज की रीढ़ की हड्डी है। हम भले ही अपने शरीर और संपत्ति के लिए कितना भी बड़ा बीमा करवा लें, लेकिन संयुक्त परिवार व्यवस्था से बड़ा सोशल इंश्योरेंस (सामाजिक बीमा) दूसरा नहीं हो सकता। इसका असर पारिवारिक व्यवसाय पर भी पड़ता है। देश में किसी एक व्यक्ति द्वारा चलाए जानेवाले 56 फीसद व्यवसाय पहली पीढ़ी में ही दम तोड़ देते हैं, क्योंकि वह उत्तराधिकार की योजना बनाकर नहीं चल रहे होते । 20 फीसद व्यवसाय दूसरी पीढ़ी में पहुंच पाते हैं। और सिर्फ चार फीसद व्यवसाय चौथी पीढ़ी तक पहुंचते हैं। लेकिन ऐसे व्यवसाय ही परिवार के साथ-साथ समाज में आर्थिक समृद्धि ला पाते हैं। यही कारण है कि भारत सहित ज्यादातर लोकतांत्रिक देशों में परिवारों द्वारा चलाए जा रहे व्यवसाय ही सफलतापूर्वक चल पा रहे हैं।

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