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राजनीति में दलबदलू नेताओं की दास्तान, पीछे छोड़ आते हैं अपनी विचारधारा

दलबदलू नेताओं की आज किसी भी दल में कोई कमी नहीं है और ये चुनावी मौसम में मेढ़क की तरह एक दल से दूसरे दल में कूद जाते हैं।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Fri, 04 Aug 2017 04:07 PM (IST)Updated: Sat, 05 Aug 2017 05:45 AM (IST)
राजनीति में दलबदलू नेताओं की दास्तान, पीछे छोड़ आते हैं अपनी विचारधारा

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। भारतीय राजनीतिक में दलबदलुओं की कोई कमी नहीं है और इसका असली नज़ारा चुनावी मौसम में देखने को मिलता है। उस वक्त ये मेंढ़क की तरह एक पार्टी से दूसरी पार्टी में कूदकर चले जाते हैं और पीछे रह जाती है इनकी विचारधाराएं। इनके लिए कुर्सी का मोह इतना सर्वोपरि हो जाता है कि कल तक जिन्हें भला-बुरा कहते रहते हैं, वे अचानक उनके लिए सबसे अच्छे बन जाते हैं और उनका गुणगान करने लग जाते हैं। इसका सबसे ताज़ा उदाहरण हैं कांग्रेस का हाथ छोड़ने वाले उनके दो वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वाघेला और पूर्व केन्द्रीय मंत्री एस.एम.कृष्णा।

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वाघेला ने दिया कांग्रेस को झटका
दलबदलुओं की बात करें तो सबसे पहला नाम इस वक्त है गुजरात कांग्रेस छोड़ने वाले शंकर सिंह वाघेला का। वाघेला को कांग्रेस सरकार में दो बार केन्द्रीय मंत्री बनाया गया और गुजरात कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी दी गई। लेकिन, वाघेला के रहते पार्टी कुछ खास करिश्मा नहीं कर पायी और कांग्रेस की गुजरात में भद्द पिट गई। कांग्रेस का सारा मुस्लिम समर्थन ख़त्म हो गया। शंकर सिंह वाघेला की 40 साल की राजनीति में वे देश की दोनों बड़ी पार्टियों से जुड़े रहे हैं। करीब 6 बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके वाघेला 1977 में पहली बार सांसद बने थे।

साल 1995 के गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में वाघेला ने अहम रोल निभाया, पर उन्हें सीएम नहीं बनाया गया। इस बात से नाराज वाघेला ने बीजेपी छोड़कर 1995 में अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय जनता पार्टी बना ली थी और कांग्रेस के समर्थन से गुजरात के मुख्यमंत्री बने। पर कुछ समय बाद ही उन्हें पद से हटना पड़ा और उन्होंने साल 1997 में राष्ट्रीय जनता पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया। खुद को गुजरात कांग्रेस के प्रमुख चेहरे के तौर पर स्थापित कर लिया। मौजूदा समय तक वो गुजरात विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे।



एस.एम. कृष्णा ने छोड़ा 46 वर्ष पुराना कांग्रेस का साथ
जबकि, पूर्व विदेश मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे एसएम कृष्णा ने इसी साल 22 मार्च को भारतीय जनता पार्टी  का दामन थाम लिया। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में कृष्णा ने बीजेपी ज्वाइन की। पूर्व कांग्रेस नेता के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें उस समय से लगाई जा रही थीं, जब उन्होंने कांग्रेस में सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। 84 साल के कृष्णा 1968 में पहली बार संसद सदस्य बने थे। 1999 में उन्हें कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया गया था। 84 वर्षीय एसएम कृष्णा ने 29 जनवरी को कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। वह कांग्रेस में 46 साल रहे।

कृष्णा तीरथ ने दिया कांग्रेस को बड़ा झटका
पन्द्रहवीं लोकसभा की सदस्य रहीं कृष्णा तीरथ दिल्ली के साथ ही केन्द्र की मनमोहन सरकार में महिला एवं बाल कल्याण मंत्री रह चुकी हैं। उन्होंने कांग्रेस को झटका देते हुए 19 जनवरी 2015 को भाजपा के रथ पर सवार होने का फैसला किया। वह दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार में भी समाज कल्याण मंत्री रह चुकी हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वे कांग्रेस छोड़ बड़ी उम्मीद के साथ भाजपा में आयी। लेकिन, उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि भाजपा इतनी बुरी तरीके से हार जाएगी। वे खुद भी अपनी पटेल नगर की सीट नहीं बचा पायीं।

सिद्धू ने भाजपा छोड़ थामा कांग्रेस का हाथ
पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्य में अपनी अहम भूमिका की उम्मीद लिए कांग्रेस का हाथ थामा। पहले उनके आम आदमी पार्टी में जाने की चर्चा थी लेकिन बाद में कांग्रेस में शामिल हुए और अमृतसर विधानसभा सीट से शानदार जीत दर्ज की। नवजोत सिंह सिद्धू इस वक्त अमरिंदर सिंह कैबिनेट में मंत्री हैं।


रीता बहुगुणा जोशी का कांग्रेस को झटका
रीता बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की एक कद्दावर ब्राह्मण नेता मानी जाती थीं। विधानसभा चुनाव 2017 से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था। रीता बहुगुणा जोशी ने मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को लखनऊ कैंट से हराया है और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।


इस तरह अगर देखें तो आज सभी दलों में ऐसे दलबदलुओं की भरमार है जो चुनाव के मौसम में फौरन पाला बदलने में कोई संकोच नहीं करते हैं। हालांकि, कुछ को तो इससे फायदा हासिल होता है ,लेकिन सभी इतने खुशकिस्मत नहीं होते। 


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