टीपू सुल्तान पर बवाल कई लेकिन आज की यह तकनीक उनकी ही देन
हाल ही में कर्नाटक विधानसभा के समारोह में शिरकत करने पहुंचे राष्ट्रपति ने विधानसभा के संयुक्त अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए टीपू सुल्तान और मैसूर के रॉकेट का उल्लेख किया था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल] - कर्नाटक सरकार 10 नवम्बर को टीपू सुल्तान की जयंती मना रही है। इसको लेकर विवाद पैदा है। एक वर्ग उन्हें क्रूर शासक और कन्नड़ लोगों का विरोधी मानता है, जबकि दूसरा धड़ा उन्हें अंग्रेजों की खिलाफत करने वाला बहादुर योद्धा कहता है। टीपू सुल्तान 'मैसूर टाइगर' के नाम से भी विख्यात है। हालांकि इस विवाद से अलग एक सच्चाई यह भी है कि टीपू सुल्तान एक प्रयोगवादी राजा था, जिसने अपने शासनकाल में तरह-तरह के प्रयोग किए। टीपू सुल्तान ने प्रसाशनिक बदलाव करके नई राजस्व नीति को अपनाया, जिससे काफी फायदा हुआ। इसके साथ ही टीपू सुल्तान ने अपनी सेना की युद्ध क्षमता में बेहतरीन इजाफा किया गया था। टीपू सुल्तान को ही रॉकेट का अविष्कारक भी माना जाता है।
मैसूर रॉकेट
इतिहास के पन्नों को अगर पलटें तो हमें यह जानकारी मिलती है कि टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली के पास 50 से अधिक रॉकेटमैन थे। टीपू सुल्तान ने अपनी सेना में इन रॉकेटमैन का बखूबी इस्तेमाल किया था। टीपू सुल्तान के शासनकाल में ही मैसूर में पहली लोहे के केस वाली मिसाइल रॉकेट को विकसित किया गया। मिसाइल रॉकेट का वैसे तो टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली के आदेश पर इसका निर्माण किया गया। लेकिन टीपू सुल्तान ने इस रॉकेट में समय के साथ कई बदलाव करके इसकी मारक क्षमता में जबरदस्त इजाफा किया।
टीपू सुल्तान के समय में मिसाइल रॉकेट का सबसे ज्यादा प्रयोग किया किया, जो अंग्रेजों की डर की एक वजह बना था। इसी मिसाइल रॉकेट के जरिए टीपू सुल्तान ने युद्ध में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में मिसाइल रॉकेट का उचित ढंग से उपयोग किया था। टीपू सुल्तान अपनी सेना में मिसाइल रॉकेट की उपयोगिता को समझता था। इसी के चलते उसने सेना में मिसाइल रॉकेट के विकास और रखरखाव को लेकर एक अलग यूनिट स्थापित की थी।
Jagran.Com से बातचीत करते हुए टीपू सुल्तान के वंशज साहबज़ादा मंसूर अली टीपू ने बताया कि टीपू सुल्तान ने सबसे पहले जिन रॉकेट का आविष्कार किया था, वो बांस से बने हुए थे। इस वजह से उनके जलने का खतरा बहुत ज़्यादा था। ये करीब 200 मीटर तक हवा में दूरी तय कर सकते थे। इन रॉकेट को उड़ाने के लिए 250 ग्राम तक बारूद का इस्तेमाल किया जाता था। टीपू सुल्तान ने बाद में बांस की जगह लोहे का इस्तेमाल किया। ये रॉकेट पहले के मुक़ाबले ज़्यादा दूरी तय कर सकते थे। इनमें ज़्यादा बारूद का इस्तेमाल किया गया था। जिससे ये बड़े इलाके को नुक्सान पहुंचा सकते थे। मॉडर्न रॉकेटरी के जनक रोबर्ट गोडार्ड ने भी टीपू सुल्तान को रॉकेट का जनक माना है। टीपू सुल्तान द्वारा इज़ाद की गई मिसाइल का नाम 'तकरक' रखा गया था। 'तकरक ' फारसी भाषा का शब्द है।
राष्ट्रपति के सम्बोधन में मैसूर राकेट और टीपू सुल्तान का ज़िक्र
हाल ही में कर्नाटक विधानसभा के समारोह में शिरकत करने पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विधानसभा के संयुक्त अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए टीपू सुल्तान और मैसूर के रॉकेट का उल्लेख किया था। अपने भाषण में राष्ट्रपति ने कहा कि 'टीपू सुल्तान अंग्रेज़ों के साथ लड़ाई में एक साहसिक मृत्यु को प्राप्त हुए थे। टीपू सुल्तान की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि टीपू सुल्तान ने मैसूर रॉकेट का निर्माण किया और युद्ध क्षेत्र में इसका भरपूर इस्तेमाल भी किया।
टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान द्वारा निर्मित की गई बहुत सी मिसाइलों को इंग्लैंड भेज दिया। रॉयल वूलविच आर्सेनल में इन रॉकेट में अनुसंधान करके नए और उन्नत किस्म के रॉकेट का निर्माण किया। आगे चलकर अंग्रेज़ों के इन रॉकेटों का युद्ध में बखूबी इस्तेमाल करते हुए अपने दुश्मनों को हराने में कामयाबी हासिल की।