'तलाक के वक्त भी गवाह और वकील हों जरूरी, महिलाओं ने काफी बर्दाश्त किया'
सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के मामले में छह माह तक रोक लगा दी है। इसको लेकर कोर्ट ने सरकार को कानून बनाने को भी कहा है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक कहने पर रोक लगा दी है। देश की सर्वोच्च अदालत में पांच जजों की बेंच ने महिलाओं के पक्ष में तीन-दो से फैसला सुनाते हुए तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार से 6 महीने के अंदर इस पर कानून बनाने को कहा है। इस फैसले के साथ ही तीन तलाक पर तुरंत प्रभाव से छह माह तक के लिए रोक लग गई है। कहा यह भी जा रही है कि यदि तय समय में सरकार इस संबंध में कानून बनाने में नाकाम रहती है तो यह रोक बढ़ाई भी जा सकती है। आज के इस फैसले का कई मुस्लिम महिलाओं ने स्वागत भी किया है। हालांकि इसको लेकर अब गेंद केंद्र के पाले में है। गौरतलब है कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने तीन तलाक पर छह दिन तक मैराथन सुनवाई करके गत 18 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म बेहद जरूरी
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारत के चीफ इमाम और अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष डॉक्टर उमेर अहमद इलियासी ने माना कि इस संबंध में मुस्लिम तंजिमों ने जो काम करना चाहिए था वह नहीं कर सकीं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस पूरे मामले में एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म बेहद जरूरी है। Jagran.Com से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह आस्था का मामला है। हालांकि शरियत में भी तीन तलाक से मना किया गया है। यह फैसला इस पूरे मसले पर विचार करने को बाध्य जरूर करता है। उन्होंने माना कि तीन तलाक की वजह से मुस्लिम महिलाओं को काफी कुछ बर्दाश्त करना पड़ता था। यह औरतों के साथ होने वाली नाइंसाफी की एक बड़ी वजह बन रहा था। उन्होंने इस बाबत उन लोगों की कड़ी निंदा की जो विदेशों में बैठकर फोन, मैसेज, व्हाट्सएप, पत्र आदि से अपनी बीवी को तलाक दे देते हैं।
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तलाक के समय भी गवाह और वकील हों जरूरी
डॉक्टर इलियासी का कहना था जिस तरह से निकाह के दौरान गवाह और वकील की मौजूदगी जरूरी होती है उसी तरह से तलाक के वक्त भी इस तरह की गवाह और वकील की मौजूदगी जरूर होनी चाहिए। इसके अलावा उन्होंने एक नया मॉडल निकाहनामा बनाने पर भी जाेर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि निकाहनामे में यह जरूरी है कि इसमें आरबीट्रेशन का भी एक क्लॉज दिया जाना चाहिए, जिससे मुस्लिम महिलाओं के साथ नाइंसाफी न हो सके।
बातचीत के दौरान उन्होंने शरीयत में बदलाव से साफ इंकार किया है। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि इस्लाम में मुस्लिम महिलाओं को भी अपने शौहर को तलाक देने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद उन्होंने दिल्ली में सभी इमामों की एक बैठक भी बुलाई है, जिसमें इस बाबत चर्चा होगी।
संविधान पीठ में हर धर्म के मानने वाले जरूरी
इस पीठ में हर धर्म के मानने वाले जज शामिल थे। इनमें मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल थे। कोर्ट ने शुरुआत में ही साफ कर दिया था कि वह फिलहाल एक बार में तीन तलाक पर ही विचार करेगा। बहुविवाह और निकाह हलाला पर बाद में विचार किया जाएगा।
शायरा बानो मामले से हुई थी शुरुआत
इस मामले की शुरुआत तब हुई थी जब उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर तीन तलाक और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। कोर्ट के फैसले से पहले तीन तलाक की पीड़िता और याचिकाकर्ता शायरा बानो ने कहा कि मुझे लगता है कि फैसला मेरे पक्ष में आएगा। समय बदल गया है और एक कानून जरूर बनाया जाएगा।