इस जानवर के संरक्षण से होने वाली कमाई, मंगलयान के खर्च से भी ज्यादा
दो बाघों के संरक्षण से 520 करोड़ रुपये का फायदा होता है, जबकि एक मंगलयान भेजने की लागत 450 करोड़ रुपये है। प्रत्येक बाघ अभयारण्य पर आने वाला सालाना खर्च 23 करोड़ रुपये है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। एक समय ऐसा भी आ गया था जब बाघों को बचाने के लिए सरकारों और स्वयं सेवी संस्थाओं को 'सेव द टाइगर' मुहिम चलानी पड़ी थी। उस समय देशभर के जंगलों में बाघों की संख्या लगातार गिरती जा रही थी। यह संख्या खतरनाक तरीके से गिर रही थी और देशभर के जंगलों में 1400 के करीब बाघ ही रह गए थे। यह हालत तब थी जब देश में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, पन्ना टाइगर रिजर्व, पेरियार टाइगर रिजर्व, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, कान्हा नेशनल पार्क, सरिस्का टाइगर रिजर्व, केवल टाइगर रिजर्व, दुधवा टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व जैसे राष्ट्रीय पार्क खासतौर पर बाघों को प्राकृतिक माहौल और उन्हें बढ़ने देने का मौका देने के लिए बनाए गए ।
बाघों की घटती संख्या से वन्यजीव विशेषज्ञ, जानकार और आम लोग चिंतित थे। लेकिन देशभर में दर्जनों की संख्या में मौजूद राष्ट्रीय उद्यानों और सरकार ने कमर कसी। कुछ गैर सरकारी संस्थाओं ने भी योगदान दिया और बाघों की घटती संख्या पर न सिर्फ रोक लगाई गई, बल्कि इनकी संख्या तेजी से बढ़ने भी लगी। आज देश में बाघों की संख्या 2200 से ऊपर पहुंच गई है। अब बाघों की संख्या न सिर्फ बढ़ रही है, बल्कि इनके संरक्षण से सैंकड़ों करोड़ का फायदा भी हो रहा है।
बाघों के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान को लेकर आया यह अध्ययन भले ही अजीब लगे, लेकिन भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के इस निष्कर्ष के कई नए आयाम सामने आए हैं। भोपाल के इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट की प्रोफेसर मधु वर्मा की अगुआई में हुआ अध्ययन बाघों से होने वाले आर्थिक फायदों पर आधारित है। इसके मुताबिक दो बाघों को संरक्षित करने से हमें मंगलयान की लागत से अधिक पूंजीगत लाभ मिलता है। यदि देश की सारी बाघ आबादी मिला ली जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था को इससे 5.7 लाख करोड़ रुपये का फायदा है।
प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा
ग्यारह वैज्ञानिकों के दल ने देश के छह बाघ अभयारण्य का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि बाघ संरक्षण के बहाने 230 अरब डॉलर के संसाधनों को सुरक्षित रखा जा रहा है।
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लोगों के लिए फायदेमंद
रिपोर्ट के मुताबिक देश का 2.3 फीसद भौगोलिक क्षेत्र बाघ अभयारण्य के अंतर्गत आता है। इन संरक्षित जंगलों से 300 बड़ी-छोटी नदियां निकलती हैं, जिनसे बड़ी आबादी को फायदा पहुंचता है। इनकी बदौलत सरकार को निवेश में 356 गुना फायदा हो रहा है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट की मधु वर्मा के अनुसार भारत के बाघ अभयारण्य न सिर्फ 50 फीसद से अधिक बाघों का आशियाना हैं, बल्कि ये जैवविविधता, आर्थिक और सामाजिक संपदा को भी संरक्षित कर रहे हैं।
अन्य प्रजातियों की सुरक्षा
पिछली सदी के छठे दशक में भारतीय वैज्ञानिकों ने चावल की आइआर-8 प्रजाति को तैयार कर लोगों को अकाल से बचाया। आइआर-8 और अभयारण्य में मिली चावल की एक किस्म के साथ वैज्ञानिकों ने क्रॉस ब्रीडिंग कराई।। इसे छत्तीसगढ़ में इस्तेमाल किया जा रहा है। पेड़-पौधों व जंतुओं की ढेरों प्रजातियां इन संरक्षित जंगलों में पल रही हैं।
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