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कहां जाएगी ये लड़ाई, डीआइजी डी रूपा को DGP राव ने भेजा कानूनी नोटिस

एआइएडीएमके नेता शशिकला को जेल में मिलने वाली सुविधा के मामले में कर्नाटक सरकार ने डीजीपी जेल और डीआइजी जेल का तबादला कर दिया है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 17 Jul 2017 02:56 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jul 2017 03:59 PM (IST)
कहां जाएगी ये लड़ाई, डीआइजी डी रूपा को DGP राव ने भेजा कानूनी नोटिस
कहां जाएगी ये लड़ाई, डीआइजी डी रूपा को DGP राव ने भेजा कानूनी नोटिस

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । यूपी में तैनात डीएसपी श्रेष्ठा ठाकुर, मध्यप्रदेश में तैनात तहसीलदार अमिता सिंह तोमर और कर्नाटक में तैनात डीआइजी जेल डी रूपा, इन तीनों लोगों में समानता क्या है। इस सवाल का जवाब बेहद सीधा सा है, तीनों महिलाएं और प्रशासनिक अधिकारी हैं। लेकिन एक ऐसा शब्द भी है जो इन तीनों लोगों से जुड़ा हुआ है और वो है तबादला। कर्नाटक सरकार ने डी रूपा का तबादला यातायात विभाग में महज इसलिए कर दिया क्योंकि उन्होंने बेंगलुरु सेंट्रल जेल में एआइएडीएमके नेता शशिकला को मिलने वाली सुविधा का खुलासा किया था। अपने तबादले के बारे में उन्होंने कहा कि अभी तक नोटिस नहीं मिली है। नोटिस मिलने पर वो अपनी प्रतिक्रिया देंगी। डीआइजी डी रूपा के तबादले पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। महिला आयोग की सदस्य निर्मला सावंत ने कहा कि सिद्धरमैया सरकार के इस फैसले से गलत संदेश गया है। वहीं कर्नाटक सरकार ने इसे रूटीन तबादला बताया था। लेकिन अब डीजीपी जेल रहे सत्यनारायण राव ने इस संबंध में डी रूपा को कानूनी नोटिस भेजा है। राव द्वारा भेजी गई नोटिस में कहा गया है कि आपको 3 दिनों के अंदर सभी बड़े अखबारों में एक माफीनामा देने होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो मैं आपके खिलाफ दीवानी और आपराधिक दोनों कानूनी मामले शुरू करूंगा। इस घटना से मुझे जो क्षति पहुंची है उसकी अनुमानित राशि 50 करोड़ है।

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अलग-अलग प्रदेशों की एक जैसी कहानी

तबादले की कहानी की शुरुआत यूपी में तैनात डीएसपी श्रेष्ठा ठाकुर से हुई जो मध्यप्रदेश में तैनात तहसीलदार अमिता सिंह से होते हुए कर्नाटक में डीआइजी जेल पद पर तैनात डी रूपा पर टिक गई है। आइए आप को बताते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि डीआइजी साहिबा का ट्रांस्फर हो गया। दरअसर उनके तबादले की कहानी में तीन किरदार हैं। पहला बेंगलुरु का पप्पनहार अग्रहारा सेंट्रल जेल, दूसरा एआइएडीएमके की कद्दावर नेता शशिकला और तीसरे डीजीपी जेल सत्यनारायण राव।

एआइएडीएमके नेता शशिकला का जिक्र आते ही जेहन में भ्रष्टाचार के वो संगीन मामले आने लगते हैं जिसकी वजह से उन्हें और उनकी सहेली जे जयललिता को हवालात तक का सामना करना पड़ा। भ्रष्टाचार के मामलों में जब शशिकला को सुप्रीम कोर्ट ने सजा सुनाई तो उनका ठिकाना चेन्नई के पोयज गार्डेन से बदलकर बेंगलुरु का सेंट्रल जेल हो गया। लेकिन जेल में जब उनके मौज की रिपोर्ट डी रूपा ने बनाई तो उन्हें उनकी कर्तव्यनिष्ठा का इनाम तबादले के रूप में मिला।

एक मौके पर बोलते हुए डीआइजी जेल डी रूपा ने कहा था कि सर एक बार आपने कहा था कि मिस्टर मधुकर शेट्टी ने कर्नाटक को इसलिए छोड़ दिया कि उन्हें अच्छी पोस्टिंग नहीं मिली। लेकिन ये आपका ख्याल है। सच तो ये है कि नियमों या विधाई कार्यों में कोई भी पद अच्छा या खराब नहीं होता है। ये वो अधिकारी हैं जो अपने काम के जरिए किसी भी पद को अच्छा या खराब बनाते हैं। आप सबसे शानदार उदाहरण किरन बेदी का ले सकते हैं, उन्होंने कैसे आमतौर पर महत्वहीन समझे वाले  डीजी तिहाड़ जेल होते हुए शानदार काम किया था। 

क्या है मामला ? 

बेंगलुरु की सेंट्रल जेल में बंद एआईएडीएमके प्रमुख शशिकला को वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा है। खबरों के मुताबिक शशिकला के लिए जेल में 2 करोड़ की लागत से एक अलग किचन की व्यवस्था की गई है। किचन बनाने में आने वाले खर्च का भुगतान शशिकला ने किया था। डीआईजी रूपा ने डीजीपी जेल को रिपोर्ट में कहा था कि शशिकला को खास सुविधाएं मिल रही हैं, इसमें खाना बनाने के लिए स्पेशल किचन भी शामिल है।


डीआईजी रूपा ने डीजीपी जेल एचएसएन राव को पत्र लिखा, जिसमें शशिकला द्वारा अधिकारियों को रिश्वत के तौर पर दो करोड़ रुपए देने की बात है। यहां तक कि डीआईजी ने डीजीपी को भी इसमें शामिल बताया। डीजीपी जेल ने कहा कि अगर डीआईजी ने जेल के अंदर ऐसा कुछ देखा था तो इसकी चर्चा उनसे करनी चाहिए थी। यदि उन्हें लगता है कि मैंने कुछ किया तो मैं किसी भी जांच के लिए तैयार हूं। सत्यनारायण राव ने बताया था कि कर्नाटक प्रिजन मैनुएल के रूल 584 के तहत ही शशिकला को छूट दी गई थी।

विवाद तब उठ खड़ा हुआ था जब एक आरटीआई कार्यकर्ता ने आरोप लगाया था कि एक महीने में शशिकला से 14 मौक़ों पर 28 लोगों ने बेंगलुरु सेंट्रल जेल में मुलाक़ात की। आरटीआई कार्यकर्ता नरसिम्हा मूर्ति ने इस पर आपत्ति जताते हुए इसे जेल मैनुएल का उल्लंघन बताया था। आरटीआई कर्यकर्ता के विरोध के बाद परपनाग्रहारा यानी बेंगलुरु सेंट्रल जेल प्रशासन ने सफाई दी।
 

जब तहसीलदार अमिता सिंह का हुआ तबादला

मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में तैनात रहीं तहसीलदार अमिता सिंह का मामला भी कुछ ऐसा ही। उन्होंने पीएम को ट्वीट कर अपने तबादले के खिलाफ आवाज उठाई और उनसे मदद की गुहार लगाई। अमिता सिंह ने कहा कि शायद वो पहली ऐसी अधिकारी हैं जिनका 13 साल में 25 बार तबादला किया गया। उन्होंने लिखा कि यही नहीं बहुत से ऐसे तहसीलदार हैं जिनका पूरे सेवाकाल में महज दो या तीन जिलों में तबादला हुआ। लेकिन वो तो तबादले का दंश झेल रही हैं। 

 

जब डीएसपी श्रेष्ठा ठाकुर का हुआ तबादला

राजकाज को सुचारू ढंग से चलाने के लिए अधिकारियों के तबादले आमतौर पर होते ही रहते हैं। लेकिन कुछ तबादलों पर चर्चा शुरू हो जाती है। बुलंदशहर के स्याना में तैनात रहीं डीएसपी श्रेष्ठा ठाकुर का तबादला उनमें से एक है। बिना हेलमेट भाजपा नेता का चालान काटने का मुद्दा इतना तूल पकड़ा कि बुलंदशहर में कचहरी के सामने भाजपा नेताओं और श्रेष्ठा ठाकुर के बीच झड़प हो गई। भाजपा के नेता बार-बार ये कहते रहे कि डीएसपी साहिबा आपका व्यवहार अनुचित है, तो डीएसपी साहिबा भी कहती रहीं कि कानून के दायरे में ही कार्रवाई की गई थी। अगर किसी को आपत्ति है तो वो सीएम साहब से लिखवा कर लाए कि चेकिंग बंद कर दो।

बुलंदशहर में डीएसपी और भाजपा नेताओं के बीच बयानों की आग की लपट प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक जा पहुंची। इस बीच प्रदेश में कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए जिन 224 डीएसपी के तबादले किये गए उनमें एक नाम श्रेष्ठा ठाकुर का नाम भी था। स्याना की डीएसपी बदली जा चुकीं थी। उनका तबादला बहराइच जिले में कर दिया गया। फेसबुक के जरिए श्रेष्ठा ठाकुर ने अपने तबादले की खबर को शायरी के जरिए अपने शुभचिंतकों तक पहुंचाया था।

कैसे सुर्खियों में आयीं श्रेष्ठा ठाकुर

दरअसल, 23 जून को पुलिस की चेकिंग के दौरान जब जिला पंचायत सदस्य प्रवेश देवी के पति प्रमोद लोधी को पुलिस ने बिना हेलमेट और डॉक्यूमेंट्स के पकड़ा और चालान किया तो वह स्याना के सीओ श्रेष्ठा ठाकुर से ही भीड़ गए। वायरल वीडियो में डीएसपी श्रेष्ठा ठाकुर भाजपा नेता को यह भी बताती दिखीं थीं कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। नियम-कानून तोड़ने पर वह सबके खिलाफ बिना भेदभाव के कार्रवाई करेंगी।

भाजपा नेता के पति को किया था गिरफ्तार

चालान काटने के बाद जिस तरह से प्रमोद लोधी ने सीओ श्रेष्ठा ठाकुर के साथ बहस की, उसके बाद उनके खिलाफ सरकारी कामों में बाधा पहुंचाने को लेकर एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया। जब प्रमोद को कोर्ट में पेश करने के लिए ले जाया गया तो वहां पर बड़ी संख्या में भाजपा नेता के समर्थक पहुंच गए और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनसे चालान के नाम पर दो हजार रुपये मांगे थे।

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