रुढ़ियों की बेड़ियां तोड़ीं और हिम्मत व जिद ने दिखा दी तरक्की की राह
सम्भल में सवा लाख की आबादी वाले सरायतरीन में पहली बेटी ने नौकरी की ओर बढ़ाया कदम, आर्थिक तंगी से जूझी तबस्सुम ने दुनियावी तालीम से जुड़कर पाई कामयाबी
सम्भल, [राघवेंद्र शुक्ल]। यह रूढ़ियां-बेड़ियां तोड़कर कामयाबी हासिल करने और लोगों के सामने उदाहरण प्रस्तुत करने की वह कहानी है जिसमें आपको मुख्य किरदार का चित्र शब्दों के जरिये तो समझाया जा सकता है, लेकिन उसे दिखाया नहीं जा सकता। सिर्फ इसलिए नहीं दिखाया जा सकता, क्योंकि इस सफलता ने भी उन बंधनों को अभी पूरी तरह खोला नहीं है, जिनसे निकलकर सरायतरीन की तबस्सुम ने एक मिसाल कायम की। ऐसा ही एक बंधन है कि लड़कियों की फोटो अखबार में नहीं छपनी चाहिए। तबस्सुम को यहां तक पहुंचाने में उनके पूरे परिवार ने प्रगतिशील सोच दिखाई, लेकिन तस्वीर के सवाल पर सदियों पुरानी सामाजिक सोच की हिचक बरकरार रही।
हड्डी और सींग के कारोबार की उपनगरी सरायतरीन एक मुस्लिम बहुल आबादी वाला ठिकाना है। सवा लाख की आबादी वाली इस जगह में 95 प्रतिशत मुस्लिम हैं। सरायतरीन में होने वाले कारोबार की ख्याति पूरे एशिया में है, लेकिन एक सच्चाई उसकी साख पर बट्टा भी लगाती है। यह सच्चाई है यहां की पूरी मुस्लिम आबादी में लड़कियों का शिक्षा से दूर होना। तबस्सुम ने इस कलंक को मिटाया है।
आर्थिक तंगी के चलते मैं चिकित्सक तो नहीं बन पाई, लेकिन संतोष इस बात का है कि मैंने पढ़ाई कर एक मुकाम हासिल किया। अब मेरी कोशिश अपनी बहन और भाइयों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाना है। - तबस्सुम, शिक्षिका
वह रूढ़ियों को तोड़ते हुए विज्ञान स्नातक बनीं और फिर तालीम यानी शिक्षा को ही अपना पेशा बनाया है। अब वह प्राथमिक शिक्षक के रूप में बच्चों और उनके अभिभावकों को शिक्षा का महत्व समझा रही हैं और अपने समाज को भी प्रेरित कर रही हैं कि लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई से बढ़कर कुछ और नहीं। आखिर इसी पढ़ाई-लिखाई ने तबस्सुम को अपने पिता की मौत के बाद मां और बहन-भाइयों की जिम्मेदारियों को अपने कंधों पर लेने की ताकत दी।
हैंडीक्राफ्ट कारोबार से जुड़े शुएब की वर्ष 2000 में मौत हो गई थी। इससे पूरा परिवार बिखर सा गया। शुएब की पत्नी रतजहां ने बेटी तबस्सुम और बेटे मुहम्मद निसार व जीशान के साथ मिलकर घर की जिम्मेदारियों को उठाना शुरू किया। तबस्सुम ने घर की स्थिति को बेहतर करने की मन में ठानी और शिक्षा से खुद का नाता जोड़ लिया। 1992 में जन्मीं तबस्सुम ने मां व भाई की मदद से अपनी पढ़ाई जारी रखी।
मुझे शिक्षा की अहमियत का पता है। इसीलिए पति की मौत के बाद संघर्ष के दिनों में भी मैंने बेटी को शिक्षा हासिल करने से मना नहीं किया। बेटी ने भी जी-तोड़ मेहनत की मुझे उस पर बहुत नाज है। - रतजहां, मां
गरीबी के चलते उसने स्ट्रीट लाइट से लेकर दिया जलाकर पूरी तन्मयता के साथ पढ़ाई की। हाई स्कूल और इंटर फर्स्ट डिवीजन में पास किया। मां के सामने आगे पढ़ाई की जिद की तो वह राजी हो गईं। फिर बीएससी में भी 63 फीसद अंक हासिल किए। इसके बाद तबस्सुम ने बीटीसी के लिए आवेदन किया। यहां पर भी उन्होंने मेरिट में अपना स्थान बनाया और सरकारी कॉलेज से बीटीसी कर लिया। पिछले साल उन्हें पहली नियुक्ति मिली और अब वह पवांसा ब्लॉक के एक प्राथमिक विद्यालय में तैनात हैं। आज तबस्सुम मां रतजहां, भाई जीशान को संभालने के साथ ही अपनी छोटी बहन उजमा को भी बेहतर शिक्षा दिलवा रही हैं।