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दो पार्टियां, उनके दो हमउम्र शीर्ष नेता और दो बहुत अलग दास्तानें

जाहिर तौर पर अमित शाह और राहुल गांधी के काम करने के अपने तरीके है। आक्रामक अंदाज, चुनावी रैलियों में भीड़ को खींचने की क्षमता।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Thu, 10 Aug 2017 02:55 PM (IST)Updated: Fri, 11 Aug 2017 01:31 PM (IST)
दो पार्टियां, उनके दो हमउम्र शीर्ष नेता और दो बहुत अलग दास्तानें

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। यह सुनने में भले ही आपको अटपटा लगे के कैसे भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की तुलना कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से हो सकती है तो उसका खास कारण है। दोनों ही सार्वजनिक जीवन में हैं और अपनी पार्टी की कमान संभाल रहे है। अमित शाह के हाथों में इस वक्त भारतीय जनता पार्टी की बागडोर है तो वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है। राहुल लगातार कांग्रेस पार्टी में बड़ा फैसला खुद करते हैं और पिछले करीब दो वर्षों से उनके हाथों में पार्टी की कमान देने की मांग उठ रही है।

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दोनों हैं पार्टी के युवा चेहरे 

इसके अलावा, दोनों में जो सबसे बड़ी समानता है वो ये कि दोनों ही देश के युवा नेता हैं। जी हां, राहुल गांधी की उम्र 47 साल है तो वहीं अमित शाह राहुल से आयु में सिर्फ पांच साल बड़े यानि 52 साल के हैं। आइये बताते हैं कि दोनों राजनीति में कितने कामयाब रहे?

अमित शाह-राहुल गांधी दोनों संसद सदस्य
राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के अमेठी संसदीय सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस में वह सबसे ताकतवर शख्स है। सोनिया के स्वास्थ्य कारणों के चलते राहुल की पिछले कुछ वर्षों से राजनीति में काफी सक्रियता बढ़ी है और उन्हे पार्टी के बड़े नेताओं की तरफ से जल्द पार्टी की कमान देने की चर्चा की हो रही है।

जबकि, दूसरी तरफ अगर अमित शाह की बात करें तो वह अब तक विधानसभा सदस्य ही थे। लेकिन, पहली बार 9 अगस्त को वे संसद से उच्च सदन (राज्यसभा) में गुजरात से ही पहुंचे हैं। ये महज अमित शाह के लिए एक संयोग है कि उन्हें पार्टी की कमान को 9 जुलाई को दी गई थी। यानि, राहुल गांधी और अमित शाह दोनों आज संसद के सदस्य है।

अमित शाह की बड़ी उलब्धियां
भारतीय राजनीति में इस वक्त अमित शाह को उनकी काबिलियत और पार्टी को लगातार उनकी अध्यक्षता में मिल रही सफलता के चलते 'चाणक्य' तक कहा जाने लगा है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के महज डेढ़ महीने बाद 9 जुलाई 2014 को भाजपा की कमान संभालने वाले अमित शाह की अगुवाई में आज देश के अठारह राज्यों में भाजपा या भाजपा समर्थित सरकार है। इनमें से तेरह राज्यों में पार्टी की अपनी बदौलत सरकार है। उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि रही यूपी में भाजपा की शानदार जीत।

राहुल के हाथ लगातार लगी नाकामी

राहुल गांधी नेहरू परिवार से आते हैं और संसद के निचले सदन में यूपी के अमेठी का प्रतिनिधित्व करते हैं। साल 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत का सारा श्रेय राहुल गांधी को दिया गया था। उन्होंने राजनीतिक रणनीतियों में जमीनी स्तर की सक्रियता को बल देना, गांव के लोगों तक गहरे संवाद स्थापित करना और कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करने की कोशिश की थी।

लेकिन, आज जिस तरह पार्टी की कई राज्यों में करारी हार हुई है उसके बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और राहुल की कार्य क्षमता पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं। खुद कांग्रेस के बड़े और कद्दावर चेहरे एक के बाद एक कर पार्टी का हाथ छोड़कर जा रहे हैं। लेकिन, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के तौर पर राहुल कोई भी बड़ा कदम नहीं उठा पा रहे हैं।

यूपी में अमित शाह ने भाजपा को किया अपराजेय
सोलहवीं लोकसभा चुनाव के करीब 10 महीने पूर्व यानि 12 जून 2013 को अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया। उस वक्त यूपी में भाजपा की मात्र 10 सीटें ही थी। अमित शाह के संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता का अंदाजा उस वक्त लगा जब 16 मई 2014 को लोकसभा चुनाव का परिणाम आया। भाजपा ने यूपी की 71 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। ये पहला ऐसा मौका था जब भाजपा को इतनी बड़ी जीत मिली हो। इस करिश्माई जीत से शिल्पकार अमित शाह का कद इतना बढ़ गया कि उन्हें भाजपा अध्यक्ष के रूप में सबसे माकूल चेहरे के तौर पर पाया गया।




यूपी में राहुल की कार्यशैली पर उठा सवाल
2012 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से राहुल गांधी ने पार्टी प्रचार की कमान अपने हाथों में लेकर धुआंधार रैलियां की और तत्कालीन राज्य की सत्ताधारी बीएसपी पार्टी की सुप्रीमो मायावती पर हमला बोला उसके बाद ऐसा लगा का कांग्रेस यूपी में कुछ करिश्मा कर सकती है। लेकिन, 2012 के विधानसभा चुनाव में राहुल की रैलियों के बावजूद जनता ने कांग्रेस को नकार दिया और पार्टी 28 सीटों पर सिमट कर रह गई।

उसके बाद राहुल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में पार्टी को जीत दिलाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। लेकिन, जनता ने राहुल के इस सियासी रणनीति को भी नकार दिया। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को लोकसभा की सिर्फ 2 सीटें ही हाथ लग पाई। फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल ने यूपी की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। कांग्रेस-सपा गठबंधन सिर्फ 105 सीट पर सिमट गई। यहां पर राहुल की रणनीति भी काम नहीं आयी। 

अमित शाह ने तीन साल में हर मोर्चे पर हासिल की फतह
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के खाते में पार्टी की वह तमाम उपलब्धियां है, जिसमें से एक पार्टी को विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी का गौरव दिलाना भी है। इस सालों में पार्टी ने अमित शाह ने नेतृत्व में जहां राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जीत हासिल की, वहीं 18 राज्यों में भाजपा या सहयोगी दलों की सरकार बनाकर एक बड़ी कामयाबी हासिल की। इनमें से तेरह राज्यों में पार्टी की अकेले सरकार है। इस सब के बीच उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में मिली जीत को पार्टी और उनकी रणनीति की एक बडी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है।

वहीं इन तीन सालों में पार्टी को देश के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाने वाले अमित शाह अब खुद भी देश के उच्च सदन यानि राज्यसभा में पहुंच चुके है। राज्यसभा में वह गुजरात से चुन कर पहुंचे। इसके अलावा शाह ने देश में स्वच्छ और काम करने वालों को राजनीति में प्राथमिकता देने की नई परिपाटी शुरु की। जिसके बेहतर परिणाम भी देखने को मिल रहे है। वहीं उनके नेतृत्व में भाजपा शासित राज्यों की सरकारें गरीबों के कल्याण के लिए एक नई-नई योजनाओं पर काम कर रही है।

शाह ने भाजपा को तीन साल में बनाया 'अजेय'

इस सब के साथ ही पिछले तीन सालों में भाजपा संगठन को भी उन्होंने देश के कोने-कोने में पहुंचाया। मौजूदा समय में शाह की अगुवाई में पार्टी और संगठन को मजबूत करने के लिए 110 दिनों का विस्तृत प्रवास कार्यक्रम शुरु किया है। इसके साथ ही उनके नेतृत्व में संगठन को मजबूती देने के लिए देश भर में अभियान चलाया जा रहा है। जिसके तहत बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। औसतन रोजाना 541 किमी की यात्रा इन तीन सालों में अमित शाह कभी बैठे नहीं। पार्टी के मुताबिक उन्होने इन सालों में औसतन प्रतिदिन 541 किमी यात्रा की। इस दौरान उन्होंने अंडमान निकोबार से लेकर गुवाहाटी तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्राएं की। इसके अलावा इन सालों में उन्होने लगभग रैलियां भी की।

जाहिर तौर पर अमित शाह और राहुल गांधी के काम करने के अपने तरीके है। आक्रामक अंदाज, चुनावी रैलियों में भीड़ को खींचने की क्षमता। लेकिन, जिस तरह का राहुल ने प्रदर्शन पिछले कुछ वर्षों के दौरान किया है वह किसी भी मायने में संतोषजनक नहीं रहा। 

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