भारत के चंद्रयान-दो का प्रक्षेपण 2017 तक
अपने पहले चंद्र अभियान चंद्रयान-1 की सफलता से उत्साहित भारत अगले दो-तीन वर्षो में अपने दूसरा चंद्र अभियान शुरू करेगा। चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगाकर उसकी सतह का बारीकी से अध्ययन किया था। चंद्रयान-दो उसकी सतह पर उतरेगा। चंद्रयान-दो स्वदेशी होगा और यह जियो-साइंक्रोनस लांच व्हिकल (जीएसएलवी) से चां
नई दिल्ली। अपने पहले चंद्र अभियान चंद्रयान-1 की सफलता से उत्साहित भारत अगले दो-तीन वर्षो में अपने दूसरा चंद्र अभियान शुरू करेगा। चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगाकर उसकी सतह का बारीकी से अध्ययन किया था। चंद्रयान-दो उसकी सतह पर उतरेगा।
चंद्रयान-दो स्वदेशी होगा और यह जियो-साइंक्रोनस लांच व्हिकल (जीएसएलवी) से चांद की सतह पर उतरेगा। अंतरिक्ष सचिव के राधाकृष्णन ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि चंद्रयान-दो एक ऐसा अभियान है जिसमें हमें परीक्षण करने के लिए अनिवार्य रूप से चंद्रमा की सतह पर उतरने की जरूरत पड़ेगी। हम जीएसएलवी के जरिये एक स्वदेशी रोवर और लैंडर को वर्ष 2016 या 2017 तक प्रक्षेपित करेंगे।
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चंद्रयान-1 भारत का पहला चंद्र अभियान था जिसे वर्ष 2008 में 22 अक्टूबर को श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया था। इसने चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगाकर उसकी रासायनिक, खनिज संबंधी और भू-वैज्ञानिक मानचित्र तैयार किया था। चंद्रयान-दो के बारे में राधाकृष्णन ने बताया कि स्वदेशी लैंडर और रोवर विकसित किया जा सकता है या नहीं इसके लिए एक अध्ययन किया गया तो सकारात्मक परिणाम मिला, जिसके बाद इसरो ने इस परियोजना पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया। पिछले वर्ष मई में हमने चांद पर उतरने वाला लैंडर बनाने की संभाव्यता का अध्ययन किया जो अब पूरा हो चुका है। हमने पाया कि हम भारत में लैंडर बनाने में समर्थ होंगे। इसके लिए हमें दो-तीन साल का वक्त चाहिए। इसमें कुछ तकनीकी तत्व हैं जिन्हें विकसित करना होगा। हमें लैंडर की गति कम करनी होगी जिससे वह आसानी से सॉफ्ट लैंडिंग कर सके। किसी लैंडर की यांत्रिक संरचना होती है उसे बनाना होगा। तस्वीर लेकर यह तय करना कि कहां उतारा जाए और लैंडर को फिर उस जगह ले जाया जाए जहां उतारना है। पहले रूस के साथ संयुक्त अभियान के रूप में यह परियोजना चलनी थी लेकिन रूसी अंतरिक्ष एजेंसी का अभियान नाकाम होने जाने के बाद भारत ने खुद ही लैंडर और रोवर विकसित करने का निर्णय लिया।
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