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    नौ साल बाद भी आतंकी खतरे से पूरी तरह महफूज नहीं है देश

    By Manish NegiEdited By:
    Updated: Sat, 25 Nov 2017 10:42 PM (IST)

    सरकार ने सुरक्षा को चाकचौबंद करने के लिए कई अहम कदमों की घोषणा की, जिनमें चंद को ही अमली जामा पहनाया जा सका है। ...और पढ़ें

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    नौ साल बाद भी आतंकी खतरे से पूरी तरह महफूज नहीं है देश

    नीलू रंजन, नई दिल्ली। मुंबई हमले के बाद धीरे-धीरे देश में आंतरिक सुक्षा का ढांचा तो मजबूत हुआ है, लेकिन उसे चाक-चौबंद करने के लिए अब भी बहुत कुछ करना बाकी है। हमले के बाद जागी सरकार ने सुरक्षा को चाकचौबंद करने के लिए कई अहम कदमों की घोषणा की, जिनमें चंद को ही अमली जामा पहनाया जा सका है। पठानकोट और उरी जैसे हमले इसके सबूत हैं।

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    मुंबई हमले के बाद सरकार एनएसजी के चार केंद्र खोलने, आतंकी हमलों की जांच के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) के गठन, आतंकियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय आतंकरोधी केंद्र खोलने, समुद्री व स्थलीय सीमाओं की पुख्ता निगरानी प्रणाली विकसित करने और सामरिक व आर्थिक महत्व के संस्थानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने से लेकर स्थानीय पुलिस तंत्र को मजबूत करने जैसे कई घोषणाएं की। जिनमें एनएसजी के चार नए केंद्र खोलने और एनआइए के गठन को छोड़ दें, तो अन्य घोषणाओं को लागू करने का काम अब भी अधूरा है।

    संप्रग सरकार में एनसीटीसी बनाने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन राज्यों के विरोध के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। समुद्री और स्थलीय सीमाओं की सुरक्षा भले ही बेहतर हुई है, लेकिन उसे चाक-चौबंद करने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। पंजाब में सीमा पार घुसपैठ कर पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला इन तैयारियों की पोल खोलता है। इसके साथ ही इसने यह भी दिखा दिया कि सामरिक व आर्थिक महत्व के प्रतिष्ठानों को अब भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं किया जा सका है।

    मुंबई हमले के बाद घोषित सुरक्षा उपायों पर भले ही पूरी तरह अमल नहीं हो पाया हो, लेकिन सरकार पिछले कुछ सालों में देश में आंतरिक सुरक्षा के हालत बेहतर करने में जरूर सफल रही है। एनसीटीसी को ठंडे बस्ते में डालकर भी सरकार ने खुफिया ब्यूरो के तहत मल्टी एजेंसी सेंटर (मैक) को मजबूत कर इसकी कमी को काफी हद पूरी कर दी। मैक के तहत सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय का ही परिणाम है कि मुंबई हमले के पांच साल के भीतर इंडियन मुजाहिदीन को पूरी तरह खत्म किया जा सका।

    यही नहीं, आइएसआइएस और अलकायदा के पैर जमाने की कोशिशों को भी सफल नहीं होने दिया। नक्सलियों की कमर तोड़ी जा चुकी है। इस साल अभी तक 1200 से अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। वहीं कश्मीर में भी आतंकियों के हौसले पस्त हैं। पूर्वोत्तर भारत में आतंकी हिंसा अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। जाहिर है इस बीच आतंकी ढूंढ निकालने और उन्हें खत्म करने में सुरक्षा एजेंसियों की क्षमता में काफी इजाफा हुआ है। जबकि 2008 के पहले इंडियन मुजाहिदीन खुलेआम ऐलान कर बम धमाके करता था। 

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