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लातूर में बोरवेल की खुदाई के लिए अनुमान लगाने वालों पर टिकी निगाहें

महाराष्ट्र का मराठवाड़ा इलाका गंभीर सूखे की चपेट में है। लोग बोरवेल की खुदाई के लिए सरकारी एजेंसियों की जगह जल के बारे में अनुमान लगाने वालों पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sun, 08 May 2016 01:03 PM (IST)Updated: Sun, 08 May 2016 02:01 PM (IST)

लातूर। मराठवाड़ा इस समय सूखे की चपेट में है। सरकार की तरफ से लोगों की प्यास बुझाने के लिए वाटर ट्रेन को भेजा जा रहा है। इन सबके बीच पानी के बारे में अनुमान करने वाले शख्स चनप्पा मिठकरी की डिमांड पूरे लातूर में बढ़ गयी है। लोगों का कहना है कि बोरवेल के बारे में चनप्पा सटीक अनुमान लगाते हैं। जबकि सरकारी एजेंसियां पीछे रह जाती है। चनप्पा ने लातूर में पिछले एक महीने में 600 जगहों की पहचान की है। जहां से पानी निकलने की उम्मीद है। कॉपर के बने खास यंत्र से वो जमीन की परख करते हैं। और बोरवेल खोदे जाने का सुझाव देते हैं।

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अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक लातूर में 50 हजार से ज्यादा बोरवेल हैं और इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है। मराठवाड़ा में लोग सरकारी एजेंसी ग्राउंडवाटर सर्वे डेवलपमेंट एजेंसी की जगह चनप्पा पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि उनके पास कुछ खास औजार है। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि उनके पास दैवीय शक्तियां हैं।

चनप्पा पिछले 27 सालों से वी- शेप वाले यंत्र से जमीन के नीचे पानी के भंडार के बारे में पता लगा रहे हैं। वो कहते हैं वो आसानी से बता सकते हैं कि पानी कहां हो सकता है। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि उनकी खोज कितनी सफल होती है। तो वो अप्वाइंटमेंट की बात कह कर आगे बढ़ जाते हैं। हर एक साल में 1000 बोरवेल की खुदाई के लिए जगह बताते हैें। जिसकी फीस पांच हजार से लेकर 10 हजार रुपए तक होती है। वहीं सरकारी विभाग की फीस 1000 रुपए होती है। लेकिन लोग चनप्पा पर ज्यादा भरोसा करते हैं।

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जीएसडीए के एडिश्नल डॉयरेक्टर का कहना है कि ये बात सही है कि लोग उन पर ज्यादा भरोसा करते हैं। लेकिन उनके द्वारा बतायी गयी जगहों पर पानी की मात्रा ज्यादा नहीं होती है। वैज्ञानिक तौर पर बोरवेल की खुदाई में हम उन सतहों तक जाते हैं जहां पानी की मात्रा भरपूर होती है। उन्होंने कहा कि जीएसडीए हाइड्रोलॉजिकल सेंसिंग के जरिए जमीन के नीचे पानी का अनुमान लगाता है।

उस्मानाबाद जिला परिषद संचालित शैक्षणिक संस्थान से जुड़े एक शिक्षक का कहना है कि जीएसडीए द्वारा अपनाई जा रही पद्धति बेदम है। वहीं राजभाऊ जाधव का कहना है कि जमीन के ऊपर घासों की दिशा से ये बता पाना आसान है कि पानी का स्तर कितना होगा। यही नहीं सरकारी महकमों के लोग भी उनसे सलाह मशविरा के लिए आते हैं।

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