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धमाकों के बीच हुंकार से हिली तीसरी ताकत

पटना में बम धमाकों के बाद भी नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली से तीसरी ताकत हिल गई है। साथ ही इसने गैर कांग्रेस-गैर भाजपा दलों की चिंता और चुनौती भी बढ़ा दी है। खासतौर से उन दलों की जो सांप्रदायिकता के खिलाफ एकजुट होकर बुधवार को साझा लड़ाई का एलान करने जा रहे हैं। देश में खुद को तीसरी ताकत मा

By Edited By: Published: Wed, 30 Oct 2013 05:13 AM (IST)Updated: Wed, 30 Oct 2013 05:13 AM (IST)
धमाकों के बीच हुंकार से हिली तीसरी ताकत

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। पटना में बम धमाकों के बाद भी नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली से तीसरी ताकत हिल गई है। साथ ही इसने गैर कांग्रेस-गैर भाजपा दलों की चिंता और चुनौती भी बढ़ा दी है। खासतौर से उन दलों की जो सांप्रदायिकता के खिलाफ एकजुट होकर बुधवार को साझा लड़ाई का एलान करने जा रहे हैं। देश में खुद को तीसरी ताकत मानने वाले इन दलों को चुनावी मौसम में सांप्रदायिकता का खतरा और बढ़ता नजर आ रहा है।

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दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में बुधवार को माकपा समेत बाकी वामदलों के साथ ही सपा, जद , जदयू, झारखंड विकास मोर्चा, अन्ना द्रमुक जैसे दल और कुछ गैर राजनीतिक धर्मनिरपेक्ष संगठन सांप्रदायिक ताकतों से साथ लड़ने का एलान करने जा रहे हैं। वैसे तो इसकी अगुआई माकपा कर रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बाद समाजवादी पार्टी इसकज् ज्यादा जरूरत महसूस कर रही थी। इस बीच, मुजफ्फरनगर दंगों ने तीसरी ताकत के दलों को जल्द एकजुट होने को मजबूर कर दिया। तभी तो माकपा ने जिन दलों व संगठनों को 30 अक्टूबर के सम्मेलन का न्योता भेजा है, उसमें मुजफ्फरनगर के दंगों से बढ़े सांप्रदायिकता के खतरे का हवाला भी दिया है।

सूत्रों के मुताबिक, तीसरी ताकत के इन दलों के लिए मोदी की रैली में हुए धमाकों ने चिंता बढ़ा दी है। सपा के एक शीर्ष नेता कहा भी, 'पटना के बम धमाके सभी राजनीतिक दलों के लिए खतरनाक संकेत हैं। चुनाव नजदीक आ रहे हैं। सभी दल रैलियां व जनसभाएं करेंगे। ऐसे में इस तरह की आतंकी कार्रवाइयों से सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई पर असर पड़ेगा, लिहाजा एकजुट हो रहे गैर कांग्रेस-गैर भाजपा दलों को अपनी लड़ाई पर औरज् ज्यादा फोकस करना पड़ेगा'।

इस घटक में शामिल एक अन्य बड़े नेता ने अपनी चिंता कुछ यूं जताई, 'बम धमाकों की और घटनाएं इसी तरह हुई तो गैरजरूरी रूप से वोटों के ध्रुवीकरण को भी नहीं रोका जा सकता। उस स्थिति में भी सांप्रदायिक ताकतों को ही फायदा पहुंचेगा, जो धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई को कमजोर करेगा'। बताते हैं कि तीसरी ताकत के इन दलों के बीच चुनावी तालमेल के लिए कोई बात नहीं हुई है, लेकिन पटना की घटना के बाद एकजुटता और मजबूत करने पर नए सिरे से विचार-विमर्श की जरूरत महसूस की गई है।

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