कर्मचारियों को बंधक बनाने आए थे आतंकी
अफगानिस्तान के हेरात स्थित भारतीय वाणिज्यिक दूतावास पर हमला करने वाले आतंकी दूतावास के कर्मचारियों और अधिकारियों की बंधक बनाना चाहते थे। मारे गए आतंकियों के पास मिले असलहों और खाने-पीने के सामान से इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दूतावास की सुरक्षा संभाल रहे आइटीबीपी के महानिदेशक सुभाष गोस्वाम
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अफगानिस्तान के हेरात स्थित भारतीय वाणिज्यिक दूतावास पर हमला करने वाले आतंकी दूतावास के कर्मचारियों और अधिकारियों की बंधक बनाना चाहते थे। मारे गए आतंकियों के पास मिले असलहों और खाने-पीने के सामान से इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। दूतावास की सुरक्षा संभाल रहे आइटीबीपी के महानिदेशक सुभाष गोस्वामी ने कहा कि सभी आतंकी घातक हथियारों से पूरी तरह लैस थे और उन्हें कमांडो ट्रेनिंग भी दी गई थी।
गोस्वामी के अनुसार, अफगानिस्तान में भारतीय ठिकानों पर आतंकी हमले की आशंका संबंधी रिपोर्ट काफी समय से मिल रही थी। इसी के आधार पर सुरक्षा इंतजाम बढ़ाए भी गए थे और जवानों को सतर्क रहने का निर्देश भी दिया गया था। यही कारण है कि आइटीबीपी जवानों ने दूतावास में घुसते ही एक आतंकी को मार गिराया, जबकि तीन अन्य आतंकी अफगानिस्तान पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए।
गोस्वामी ने बताया कि दूतावास परिसर में मारे गए आतंकी के पास से एके-47 राइफल और उसकी 200 गोलियों के साथ-साथ 17 राकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड, चार हैंड ग्रेनेड और ड्राईफ्रूट से भरा एक पैकेट भी मिला है।
इससे साफ है कि आतंकी सिर्फ हमला करने नहीं, बल्कि दूतावास के स्टाफ को बंधक बनाने के उद्देश्य से आए थे। इतने सामान के साथ जिस तरह से आतंकियों ने दूतावास की 12 फीट ऊंची दीवार लांघी, उससे साफ है कि उन्हें कमांडो ट्रेनिंग दी गई होगी।
गोस्वामी ने कहा कि हेरात पर हमले के बाद काबुल स्थित भारतीय दूतावास और जलालाबाद, मजार-ए-शरीफ व कांधार स्थित वाणिज्य दूतावासों की सुरक्षा की समीक्षा की गई है और वहां तैनात जवानों को अलर्ट कर दिया गया है। इसके साथ ही दूसरे भारतीय ठिकानों पर भी सुरक्षा बंदोबस्त कड़े कर दिए गए हैं।
सबसे सुरक्षित माना जाता है हेरात
नई दिल्ली, जागरण न्यूज नेटवर्क। हेरात में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर आतंकी हमले ने अफगानिस्तान में भारतीय ठिकानों पर हुए हमलों की याद ताजा कर दी है। यह हमला इसलिए आश्चर्यजनक है, क्योंकि हेरात का इलाका अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है। हेरात शहर को तो अफगानिस्तान का सबसे सुरक्षित शहर कहा जाता है। हेरात काबुल से करीब आठ सौ किलोमीटर दूर और ईरान सीमा के निकट है।
2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर सबसे भीषण हमला हुआ था, जिसमें भारतीय सैन्य अधिकारी रवि दत्त मेहता समेत 58 लोग मारे गए थे और 140 घायल हुए थे। इस हमले के पीछे आइएसआइ का हाथ होने की बात अमेरिका ने भी कही थी। इसके बाद 2009 में इसी दूतावास पर कार बम से हमला किया गया। इस हमले में 17 लोग मारे गए थे। इस हमले के लिए भी आइएसआइ को जिम्मेदार माना गया था। 2010 में काबुल में एक गेस्टहाउस में आतंकी हमले में छह भारतीयों समेत 18 लोग मारे गए थे। इसके बाद 2013 में जलालाबाद स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास आत्मघाती आतंकी हमले का शिकार हुआ। इस हमले में 9 स्कूली बच्चों समेत 12 लोग मारे गए थे। अफगानिस्तान में भारतीय ठिकानों और भारतीयों पर हमले के पीछे अलकायदा के सहयोगी संगठन हक्कानी नेटवर्क को जिम्मेदार माना जाता है। इस नेटवर्क के आइएसआइ से गहरे रिश्ते हैं। पाकिस्तान आधारित संगठन लश्कर ए तैयबा को भी हक्कानी नेटवर्क का करीबी माना जाता है। एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी यहां तक कह चुके हैं कि तालिबान का हक्कानी गुट वस्तुत: आइएसआइ की ही इकाई है। इस गुट के आतंकियों की ओर से भारतीय बार्डर रोड संगठन के कर्मचारियों और इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस के जवानों पर भी हमले किए जाते रहे हैं।