नक्सली चाहते हैं राजनीतिक दल के रूप में मान्यता
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नक्सलियों ने सरकार से बातचीत की पेशकश की है, लेकिन गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि हिंसा का रास्ता छोड़ने और लोकसभा चुनावों के बायकाट का एलान वापस लिए बिना बातचीत संभव नहीं है। साथ ही गृह मंत्रालय ने एक दशक में लगभग 4
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नक्सलियों ने सरकार से बातचीत की पेशकश की है, लेकिन गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि हिंसा का रास्ता छोड़ने और लोकसभा चुनावों के बायकाट का एलान वापस लिए बिना बातचीत संभव नहीं है। साथ ही गृह मंत्रालय ने एक दशक में लगभग 4800 बेगुनाह आदिवासियों की हत्या के लिए माफी मांगने की शर्त भी लगा दी है।
गौरतलब है कि एक तरफ नक्सली खुद को राजनीतिक दल के तौर पर मान्यता दिलाना चाहते हैं और दूसरी तरफ उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए मतदान के पहले ही दिन बिहार के औरंगाबाद में बारूदी सुरंग से धमाका किया। इसमें सीआरपीएफ के तीन जवान मारे गए हैं। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सली हमले में सीआरपीएफ का उप-निरीक्षक घायल हो गया है।
हाल में एक वेबपोर्टल को दिए साक्षात्कार में नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी के सदस्य और प्रवक्ता अभय ने सरकार से बातचीत की पेशकश की थी। इसके लिए अभय ने नक्सलियों को राजनीतिक दल के तौर पर स्वीकार करने, अर्द्धसैनिक बलों की कार्रवाई रोकने, जेल में बंद नक्सली नेताओं को रिहा करने और अपने नेता आजाद को मुठभेड़ में मारने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की शर्त रखी है।
नक्सलियों की बातचीत की पेशकश पर गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राजनीतिक दल के रूप में मान्यता की मांग के पहले नक्सलियों को हिंसा पर अपने विचार साफ करने चाहिए। हिंसा और राजनीति दोनों एकसाथ नहीं चल सकते। उन्होंने नक्सलियों से बेकसूर आदिवासियों की हत्या के लिए माफी मांगने और चुनाव बहिष्कार की अपील वापस लेने की शर्त रखी है। साथ ही कहा है कि नक्सलियों को मीडिया के जरिये हथियार डालने पर अपनी स्थिति साफ करनी होगी, ताकि उनकी पेशकश पर गंभीरता से विचार किया जा सके। गौरतलब है कि 2009 में गृह मंत्री बनने के बाद पी. चिदंबरम ने नक्सलियों से बातचीत की जरूरत बताई थी। उन्होंने भी साफ कर दिया था कि हिंसा का रास्ता छोड़े बिना बातचीत नहीं हो सकती है।