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नेता प्रतिपक्ष बगैर ही नियुक्तियां करेगी सरकार

केंद्र सरकार ने लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष के बिना ही केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी), राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और लोकपाल जैसी विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियां करने का निर्णय लिया है। लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष इनकी चयन समिति का सदस्य होता है लेकिन इनके कानूनों में उसके होने की अनिवार्य

By Edited By: Published: Sun, 07 Sep 2014 10:34 PM (IST)Updated: Sun, 07 Sep 2014 10:34 PM (IST)

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष के बिना ही केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी), राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और लोकपाल जैसी विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियां करने का निर्णय लिया है। लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष इनकी चयन समिति का सदस्य होता है लेकिन इनके कानूनों में उसके होने की अनिवार्यता नहीं है। इस तरह कांग्रेस को लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष पद नहीं मिलने से नियुक्तियां नहीं लटकेंगी।

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आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इस संदर्भ में लोकसभा सचिवालय से जानकारी प्राप्त करने के बाद यह कदम उठाया जा रहा है। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर जानकारी देने के लिए लोकसभा को लिखा था। उनका कहना है कि लोकपाल, सीवीसी, सतर्कता आयुक्त (वीसी), एनएचआरसी के अध्यक्ष और उसके सदस्यों की नियुक्ति के लिए चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष का रहना अनिवार्य नहीं है। केंद्रीय सतर्कता कानून, 2003 के मुताबिक सीवीसी और वीसी की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली गृह मंत्री और लोकसभा के विपक्ष के नेता की सदस्यता वाली चयन समिति की संस्तुति पर राष्ट्रपति करते हैं। इस कानून में यह भी प्रावधान है कि जब कोई मान्य नेता प्रतिपक्ष नहीं हो तो चयन समिति लोकसभा के विपक्ष की सबसे अधिक सदस्यों वाली पार्टी के नेता को इसमें शामिल कर सकती है। इस कानून में कहा गया है कि सीवीसी या वीसी की कोई भी नियुक्ति मात्र इस वजह से अवैध नहीं घोषित होगी कि चयन समिति में पद खाली है।

इसी तरह एनएचआरसी के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति मानवाधिकार संरक्षण कानून,1993 के तहत राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित लोकसभा अध्यक्ष और गृह मंत्रालय के प्रभारी मंत्री, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष, राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष और राज्यसभा के उपसभापति की सदस्यता वाली समिति की सिफारिश पर करते हैं। इस कानून में भी कहा गया है कि चयन समिति में कोई पद खाली रहने की वजह से कोई भी नियुक्ति अवैध नहीं होगी। इसी तरह लोकपाल और लोकायुक्त कानून, 2013 में भी कहा गया है कि चयन समिति में कोई पद खाली रहने से इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति अवैध नहीं होगी। प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली इसकी चयन समिति में में सदस्य के रूप में लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा मनोनीत सुप्रीम कोर्ट का कोई न्यायाधीश और एक नामचीन विधिवेत्ता रहते हैं।

सरकार केंद्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के बारे में फैसला लेने के तरीकों के बारे में सोच रही है। इनकी नियुक्ति भी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति करती है। इसमें लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री सदस्य होता है। इस बारे में शंका दूर करने के लिए सूचना के अधिकार कानून, 2005 में कहा गया है कि नेता विपक्ष नहीं हो तो लोकसभा के विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को इसका सदस्य बनाया जा सकता है और सदन में विपक्ष के नेता को नेता प्रतिपक्ष माना जा सकता है। सचिवालय ने सूचना दी कि लोकसभा में कोई मान्य नेता प्रतिपक्ष नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने की कांग्रेस की मांग खारिज कर दी थी। 543 सदस्यीय लोकसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 44 है और वह 282 सदस्यों वाली भाजपा के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। इसके बावजूद उसके पास नेता प्रतिपक्ष पद पर दावा करने के लिए जरूरी 55 सदस्यों की संख्या में 11 कम हैं।

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