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विरोधियों को गडकरी की चुनौती, 'दिखाएं किसान विरोधी प्रावधान'

भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पेश करने के दूसरे दिन से ही इसे पारित कराने की कवायद तेज हो गई है। इसके लिए सरकार ने दो मोर्चों पर काम शुरू कर दिया है। एक तरफ, जहां किसान विरोधी छवि बनाए जाने की विपक्ष की कोशिशों पर पलटवार किया। वहीं दूसरी

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Thu, 26 Feb 2015 03:11 AM (IST)Updated: Thu, 26 Feb 2015 07:43 AM (IST)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पेश करने के दूसरे दिन से ही इसे पारित कराने की कवायद तेज हो गई है। इसके लिए सरकार ने दो मोर्चों पर काम शुरू कर दिया है। एक तरफ, जहां किसान विरोधी छवि बनाए जाने की विपक्ष की कोशिशों पर पलटवार किया। वहीं दूसरी तरफ, संघ से लेकर विपक्षी दलों और किसान संगठनों से बातचीत शुरू कर दी है।

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सरकार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोधियों को सीधी चुनौती देते हुए कहा है कि अध्यादेश के बहाने वे जनता को भरमाने की राजनीति बंद करें। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने आगाह किया कि हर दल और हर राज्य सरकार का नजरिया लिखित रूप में उनके पास है। बुधवार को मीडिया से बातचीत करते हुए गडकरी ने कहा कि बंद दरवाजे के पीछे वे अध्यादेश की वकालत करते हैं और बाहर सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप मढ़ते हैं। उन्होंने चुनौती दी कि अध्यादेश में ऐसा एक भी प्रावधान बताएं जो किसान विरोधी हो। उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने दोगुना दाम देने का प्रस्ताव दिया था, जबकि अभी यह चार गुना दिया जा रहा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा इस संबंध में बृहस्पतिवार को राज्य सभा में बयान देने की संभावना है।

विचार-विमर्श की प्रक्रिया तेज

सड़क से लेकर संसद तक गरम हो रही भूमि अधिग्रहण की सियासत से सतर्क सरकार ने भी रुख में थोड़ा बदलाव कर लिया है। संवाद की प्रक्रिया तेज हो गई है। संसद के गलियारों में भी भाजपा नेता अन्य दलों के नेताओं से बातचीत करते देखे गए। सूत्रों की मानें तो भाजपा की पहली नजर सपा और बसपा पर है। संभव है कि राज्यसभा में समर्थन की बात आई तो दोनों दल प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर से सरकार की मदद कर सकते हैं। राजग के सहयोगी दलों को भी विधेयक का मसौदा पढऩे की सलाह दी जा रही है।

किसान संगठनों से बातचीत

किसानों से बात कर रही भाजपा की समिति किसान संगठनों की शिकायतों और आशंकाओं से रू-ब-रू होती रही। सत्यपाल मलिक की समिति ने बुधवार को राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत कुछ अन्य स्थानों के किसान संगठनों की शिकायतें सुनीं। जबकि समिति के एक सदस्य गोपाल अग्रवाल ने संघ के अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ के साथ बात की। समिति शुक्रवार तक अपनी रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को सौंप देगी। लिहाजा मशविरा का दायरा वहीं तक रखने की कोशिश की गई थी जहां तक वर्तमान सरकार ने बदलाव किया है। सूत्रों की मानें तो संगठन हर मुद्दे पर सवाल लेकर आए थे।

तमाम बिंदुओं पर आशंकाएं

सामाजिक प्रभाव आकलन का प्रावधान हटाए जाने को लेकर हर किसान संगठन के मन में आशंका है। औद्योगिक गलियारा बनाए जाने के लिए भूमि अधिग्रहण पर भी इन संगठनों ने संदेह जताया। किसान संघ ने कुछ मुद्दों पर तो थोड़ी नरमी दिखाई, लेकिन उनकी मुख्य मांग जमीन अधिग्रहण की बजाय लीज पर जमीन दिए जाने को लेकर है। किसान जमीन का अधिग्रहण उन हिस्सों में करने की पैरवी कर रहे हैैं जो खेती योग्य नहीं है। उनका मानना है कि अधिकतर समस्या इसी से खत्म हो सकती है।

सुझावों पर विचार को तैयार

सरकार राजनीतिक तौर पर यह संदेश नहीं जाने देना चाहती है कि वह किसी से मशविरा भी नहीं कर रही है। लिहाजा लोकसभा में संसदीय कार्यमंत्री मंत्री वेंकैया नायडू तो बाहर गडकरी ने हर किसी से सुझाव मांगा। इन नेताओं ने कहा कि अगर कोई सुझाव किसानों के हित में हुआ तो उस पर भी विचार किया जाएगा। सूत्रों की मानें तो सरकार कुछ छोटे संशोधनों पर विचार कर सकती है।

अध्यादेश के कुछ प्रावधानों से लोजपा चिंतित

राजग सहयोगी लोजपा ने भी भूमि अधिग्रहण विधेयक के कुछ प्रावधानों पर चिंता जताई है। सांसद चिराग पासवान ने कहा, उनकी पार्टी किसानों की बिना मंजूरी अधिग्रहित किए जाने जैसे अध्यादेश के कुछ प्रावधानों को लेकर चिंतित है।

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