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देश के गरीबों को समर्पित है यह सरकार: मोदी

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संसदीय दल की बैठक में सर्वसम्मति से नेता चुने जाने के दौरान नरेंद्र मोदी पहले तो भाषण देते समय भावुक हो उठे और फिर उन्होंने दिल को छूने वाला भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं की भी झलक दिखाई। यहां पेश है उनके संबोधन का संपादित अंश। आप सबका बहुत आभारी हूं।

By Edited By: Published: Wed, 21 May 2014 06:32 AM (IST)Updated: Wed, 21 May 2014 06:15 PM (IST)

जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संसदीय दल की बैठक में सर्वसम्मति से नेता चुने जाने के दौरान नरेंद्र मोदी पहले तो भाषण देते समय भावुक हो उठे और फिर उन्होंने दिल को छूने वाला भाषण दिया। इस भाषण में उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं की भी झलक दिखाई। यहां पेश है उनके संबोधन का संपादित अंश।

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आप सबका बहुत आभारी हूं। आपने सर्वसम्मति से मुझे एक नया दायित्व दिया है। मैं विशेष रूप से आडवाणी जी और राजनाथ जी का आभारी हूं। मैं सोच रहा था कि अटल जी का स्वास्थ अच्छा होता और आज वह यहां होते तो सोने पर सुहागा होता। उनका आशीर्वाद सदा हम पर बना रहेगा। यह लोकतंत्र का मंदिर है। हम यहां बैठकर पूरी पवित्रता के साथ पद के लिए नहीं सवा सौ करोड़ देशवासियों की आशाओं को समेटकर बैठे हैं। इसलिए पदभार जीवन में बहुत बड़ी बात होती है, ऐसा मैंने कभी माना नहीं, कार्यभार-जिम्मेवारी ये सबसे बड़ी बात होती है। हमें उसे परिपूर्ण करने के लिए अपने आपको समर्पित करना होगा।

13 सितंबर को मेरे लिए जिम्मेदारी तय हुई। 15 सितंबर से मैंने अपना काम शुरू किया। पार्टी के दायित्व को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए, ये संस्कार मिले हैं मुझे। 10 मई को जब प्रचार खत्म हुआ तो मैंने अध्यक्ष जी को फोन कर कहा अहमदाबाद जाने से पहले दिल्ली आकर आपसे मिलना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि थके नहीं हो अभी। मैंने कहा कि मेरे अध्यक्ष ने मुझे जो काम दिया है उसके बारे में बताना है, वह संकोच कर रहे थे। हंस भी पड़े। पूर्वी उत्तर प्रदेश में था। वहां से दिल्ली पहुंचा और एक अनुशासित सिपाही की तरह अध्यक्ष को मैंने रिपोर्ट किया। 13 सितंबर से 10 मई तक जो काम मिला वह भलीभांति करने की कोशिश की, लेकिन 9 मई को सिर्फ एक कार्यक्रम कैंसिल करना पड़ा-घोसी का। जहां पर हमारे जिलाध्यक्ष सुशील राय की अकस्मात मृत्यु हो गई थी। आपमें से कुछ लोग होंगे, जिनकी अपेक्षा होगी, मगर मैं पहुंच नहीं पाया। न पहुंचने का फैसला सही था, क्योंकि भरोसा था कि आप यहां पहुंचेंगे। मैं भी पहली बार यहां (संसद के सेंट्रल हाल) आया हूं। मैंने मुख्यमंत्री बनने के बाद ही सीएम का चैंबर व विधानसभा गृह देखा था। आज भी ऐसा ही अवसर आया है। आज मैं देश के सभी महापुरुषों-संविधान निर्माताओं को प्रणाम करता हूं। उन्हीं की बदौलत दुनिया को लोकतंत्र की ताकत का परिचय मिल रहा है। इन दिनों जब विदेश के महानुभावों से बात होती है कि 550 मिलियन वोटर तो उन्हें आश्चर्य होता है। यह संविधान की ताकत है। एक गरीब परिवार का व्यक्ति आज यहां खड़ा हुआ है। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जय, किसी की पराजय-ये अलग विषय है। चुनाव में भारत का सामान्य से सामान्य से नागरिक एक नए आत्मविश्वास के साथ उठ खड़ा हुआ कि यही एक व्यवस्था है, जो हमारे सपनों को पूरा कर सकती है। लोकतंत्र के प्रति उसकी आस्था बढ़ी है। ये किसी भी राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी ताकत होती है। आखिरकर सरकार किसके लिए? सरकार वो हो, जो गरीबों के लिए सोचे, गरीबों की सुने, गरीबों के लिए जिए और इसलिए नई सरकार देश के गरीबों को समर्पित है। देश के कोटि-कोटि युवकों को समर्पित है और मान-सम्मान के लिए तरसती हमारी मां-बहनों को समर्पित है। गांव हो, गरीब हो, पीड़ित हो, वंचित हो, ये सरकार उनके लिए है। हमें गरीब से गरीब आदमी ने यहां भेजा है। मैंने हिंदुस्तान के एक नए रूप को देखा है, चुनाव प्रचार अभियान में, रैलियों में भी। ऐसे लोग, जिनके शरीर पर एक ही कपड़ा था, फिर भी कंधे पर भाजपा का झंडा देख रहा था। ये तबका कितनी आशाओं के साथ हमारे पास आया है। इसलिए हमें उनके सपने सच करने हैं। आडवाणी जी ने एक शब्द प्रयोग किया, मैं आडवाणी जी से प्रार्थना कर रहा हूं कि वह इस शब्द का उपयोग न करें। उन्होंने कहा, नरेंद्र भाई ने कृपा की। (मोदी भावुक हो गए और आंसू थामने की कोशिश करते दिखे) क्या मातृ सेवा कभी कृपा हो सकती है। कतई नहीं हो सकती। जैसे भारत मेरी मां है, वैसे ही भाजपा भी मेरी मां है। बेटा कभी मां पर कृपा नहीं कर सकता, बेटा सिर्फ समर्पित भाव से मां की सेवा कर सकता है। देश आजाद हुआ। जितनी भी सरकारें आई, सबने अपनी अपनी तरह से देश को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। जो अच्छा हुआ उसके लिए वे सरकारें और उनका नेतृत्व करने वाले बधाई के पात्र हैं। हमारा दायित्व है, अच्छाई को लेकर आगे बढ़ें और अच्छा करने का प्रयास करें। ये भाव रहा तो देशवासियों को निराश होने की नौबत नहीं आएगी। मैं ज्यादा टीवी व अखबार नहीं देख पाता। लोग चुनाव का अलग-अलग ढंग से मूल्यांकन करेंगे। अगर देशवासियों ने हंग (त्रिशंकु) पार्लियामेंट बनाई होती तो कह सकते थे कि सरकार के प्रति सिर्फ गुस्सा था, लेकिन भाजपा को संपूर्ण बहुमत देने का मतलब होता है कि लोगों ने आशा और विश्वास का मतदान किया है। यह पूरा जनादेश उम्मीद से है।

जब 2013 में तालकटोरा स्टेडियम में हमारी राष्ट्रीय परिषद मिली थी, तब मैंने कहा था कि हम चलें या न चलें, देश चल पड़ा है। आज जब इतनी बड़ी संख्या में सेंट्रल हॉल भाजपा के समर्पित सेनानियों से भरा पड़ा है तो साफ है कि देश चल पड़ा है, हम चलें या न चलें। यह उमंग, यह उत्साह चलता रहेगा। जिम्मेदारी का युग शुरू होता है। इस सभागृह में मेरी तरह बहुत से लोग होंगे जो आजाद हिंदुस्तान में पैदा हुए। पहली बार आजाद हिंदुस्तान में पैदा हुए शख्स के नेतृत्व में सरकार बनेगी। हम देश की आजादी के लिए जूझ नहीं पाए, मगर अब हमें देश के लिए जीने का सौभाग्य मिला है। मैं स्वभाव से आशावादी व्यक्ति हूं। डीएनए में लिखा है। पता नहीं निराशा क्या होती है। एक कॉलेज में भाषण हुआ था तो एक बात कही थी। उसे फिर कह रहा हूं। यह गिलास (हाथ में गिलास लेकर) आधा पानी और आधा हवा से भरा है। सकारात्मक मार्ग के लिए आशावादी होना बहुत बड़ी आवश्यकता है। आशावादी व्यक्ति ही देश में आशा का संचार कर सकते हैं। संकट आते हैं, किस पर नहीं आए जीवन में। 2001 में गुजरात में भयंकर भूकंप आया। पूरा विश्व मानता था कि अब गुजरात खत्म। देखते ही देखते वह खड़ा हो गया और दौड़ पड़ा। मैं देश को बताना चाहता हूं कि पुराने अनुभव कितने ही बुरे क्यों न हों, निराशा छोड़नी होगी। दुनिया का इतना बड़ा व जागरूक लोकतंत्र, ये अगर फैसला करे तो कहां से कहां पहुंच सकता है। सवा सौ करोड़ देशवासी एक कदम चलें तो हम सवा सौ करोड़ कदम आगे बढ़ जाएंगे। कहां हैं छह ऋतुएं, कहां है इतनी विविधता? हमें सिर्फ मौका देना है। शक्ति भरी पड़ी है लोगों में। इस चुनाव में हम लोगों ने दो बातों पर बहुत बल दिया और उन्हें ही आगे बढ़ाना है। सबका साथ, सबका विकास। हम सबका विकास चाहते हैं, लेकिन सबका साथ उतना ही अनिवार्य है। इसी मंत्र को लेकर हम आगे बढ़ना चाहते हैं। आज मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि 2019 में मैं फिर अपना रिपोर्ट कार्ड दूंगा। देश के लिए जिऊंगा। हम गरीबों के लिए कुछ करने के इरादे से बैठे हुए हैं। 2015-2016, हम सबके जीवन में एक महत्वपूर्ण अवसर आ रहा है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शताब्दी वर्ष आ रहा है। चरैवेति चरैवेति का मंत्र, जिससे त्याग तपस्या की व्यवस्था विकसित हुई। पंडित दीनदयाल जी के शताब्दी पर्व के लिए पार्टी सोचे, सरकार सोचे, दरिद्र नारायण की सेवा, अंत्योदय-ये पंडित जी ने हमें दिए हुए हैं। दीनदयाल जी के शताब्दी वर्ष में सरकार उनका सपना सच करेगी।

वैश्विक परिवेश में भारत के इस चुनाव नतीजे को सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है। विश्व में भारत का रुतबा पैदा हो रहा है। देश के कोटि कोटि जनों ने यह जनादेश देकर देश का मान ऊंचा कर दिया। ये वे नतीजे हैं, जो विश्व को भारत की लोकतांत्रिक साम‌र्थ्य की तरफ आकर्षित करते हैं। इस नतीजे से विश्व की मानवतावादी शक्तियों में हिम्मत बढ़ी है। ये जो मोदी आपको दिख रहा है, इसलिए नहीं कि बहुत बड़ा है, इसलिए दिख रहा है कि मेरी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मुझे अपने कंधे पर बैठाया है। आज हमने जो भी पाया है, पांच पांच पीढ़ी के तप के बाद पाया है। जब जनसंघ लोगों को समझ नहीं आता था कि ये कौन हैं। धार्मिक हैं कि सामाजिक? दीवारों पर दिया जलाने में खपे परिवार। मैं आज उन सभी पीढि़यों को नतमस्तक होकर नमन करता हूं। हम भी न भूलें, हम आज अपने कारण यहां नहीं है। उनकी तपस्या के कारण हैं। अगर यह मन में हमेशा बना रहा तो हमें कभी भी समाज के लिए दल के लिए साथियों के लिए नीचा नहीं होना पड़ेगा। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपकी अपेक्षाओं पर कभी भी नीचा देखने का अवसर नहीं आएगा।

मोदी दिल से..

हमारा दायित्व है, अच्छाई को लेकर आगे बढ़ें और अच्छा करने का प्रयास करें। यह भाव रहा तो देशवासियों को निराश होने की नौबत नहीं आएगी।

हम देश की आजादी के लिए जूझ नहीं पाए, मगर हमें देश के लिए जीने का सौभाग्य मिला है।

मैं देश को बताना चाहता हूं कि पुराने अनुभव कितने ही बुरे क्यों न हों, निराशा छोड़नी होगी।

हम सबका विकास चाहते हैं, लेकिन सबका साथ उतना ही अनिवार्य है। इसी मंत्र को लेकर हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

पढ़ें: भावुक मोदी से रूबरू हुआ भारत


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