गंगा जागरण यात्रा: गंगोत्री से गंगासागर तक भगीरथ आंदोलन
निर्मल, अविरल गंगा की आस और प्यास लिए गंगोत्री से शुरू हुई 'गंगा जागरण यात्रा' 3000 किमी की दूरी तय कर गंगासागर तक पहुंची और इसके साथ ही इस अभियान का पहला चरण पूरा हो गया। सभी के सक्रिय सहयोग से दैनिक जागरण का यह अभियान अब एक आंदोलन में तब्दील हो चुका है। गंगा के प्रेरक प्रवाह के साथ एक महीने तक चलने वाली इस यात्रा में हर दिन तटीय क्षेत्रों के सभी वर्गो का स्वत:स्फूर्त समर्थन मिला।
नई दिल्ली [प्रशांत मिश्र]। निर्मल, अविरल गंगा की आस और प्यास लिए गंगोत्री से शुरू हुई 'गंगा जागरण यात्रा' 3000 किमी की दूरी तय कर गंगासागर तक पहुंची और इसके साथ ही इस अभियान का पहला चरण पूरा हो गया। सभी के सक्रिय सहयोग से दैनिक जागरण का यह अभियान अब एक आंदोलन में तब्दील हो चुका है। गंगा के प्रेरक प्रवाह के साथ एक महीने तक चलने वाली इस यात्रा में हर दिन तटीय क्षेत्रों के सभी वर्गो का स्वत:स्फूर्त समर्थन मिला।
लाखों की संख्या में मिले संकल्प पत्र इस सहभागिता के साक्ष्य हैं। इस भागीदारी ने हमारा भरोसा बढ़ा दिया है। गंगा हर हिंदुस्तानी के हृदय में है। वह पवित्रता का पर्याय और हमारी भारतीयता का प्रतीक तो है ही, कइयों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी का संबल भी है। यूं तो दैनिक जागरण को 'गंगा जागरण यात्रा' की सफलता में कभी संदेह नहीं था, फिर भी हम यह साफ करना चाहते हैं कि हमने सफलता की संभावना से अभियान का आरंभ नहीं किया था।
अभियान का लक्ष्य तो यह था कि जीवनदायिनी गंगा के लिए सबके मन में मौजूद सहज सम्मान और आस्था को समेटकर एक सुव्यवस्थित तथा सुस्पष्ट शक्ल दी जाए, ताकि समस्या को समझने व समाधान का रास्ता निकालने में हम कुछ कदम आगे बढ़ें।
गंगा की अविरलता और निर्मलता को वापस लाने की चिंता सबको है। इस कोशिश में आर्थिक संसाधनों की कभी कमी नहीं रही। बावजूद इसके गंगा की स्थिति में शायद ही कोई सुधार हुआ हो। इस असफलता का कारण यह है कि गंगा के लिए किए गए आम जन और सरकारों के प्रयास हमेशा बिखरे-बिखरे रहे। एक साझा प्रयास की कोशिश नहीं हुई। देश के 120 करोड़ लोगों खासकर गंगा के आसपास रहने वाले लगभग 50 करोड़ लोगों को जोड़े बिना गंगा के लिए कोई भी कदम सफल होना संभव नहीं है। अपने-अपने हिस्से की गंगा को जनभागीदारी से कभी जोड़ा नहीं गया। समस्याओं को समझने के लिए अलग-अलग समूहों का ध्यान बंटा रहा। इसलिए समस्या को समग्रता में समझने और इसे सरकार के साथ सामूहिक स्वर देने की आवश्यकता है। केवल इसी तरीके से गंगा के लिए हम सबकी निजी निष्ठा सार्थक हो पाएगी, वरना निष्ठावान लोग भी अनजाने में गंगा को प्रदूषित करते रहे हैं। सामूहिक समझदारी से ही सरकार की योजनाओं का सही तरह से क्रियान्वयन हो सकेगा।
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के 50 से ज्यादा शहरों से होकर गुजरी 'गंगा जागरण यात्रा' में हमने आम लोगों की भावना परखी है। अपने स्वार्थ के लिए गंगा में डाली जा रही गंदगी को लेकर उनके मन में टीस भी देखी है और गंगा को निर्मल बनाने की ललक भी। यात्रा के दौरान सांसदों-विधायकों के साथ ही लगभग 22 लाख लोगों ने गंगा को स्वच्छ करने और रखने का संकल्प लिया है। दैनिक जागरण के माध्यम से इन अनुभवों और नतीजों को व्यवस्थित रूप में आपके सामने रखा जाएगा। इस जनभावना को ठोस रूप देने का दैनिक जागरण पूरा प्रयास करेगा। इतना साफ है कि अविरल व निर्मल गंगा के लिए हम सबको और सरकार को अपनी सोच में बुनियादी बदलाव लाना पड़ेगा। गंगा सिर्फ एक संसाधन नहीं है। वह जल विद्युत परियोजना, खेती, पर्यटन, सिंचाई, जलमार्ग, बालू आदि के लिए भी उपयोगी है, लेकिन उसकी एक सीमा है। फल खाने के लालच में हमें पूरा बगीचा नष्ट नहीं करना चाहिए। गंगा का प्रवाह औद्योगिक और शहरी कचरे के लिए नहीं है। गंगा की शुद्धता का स्थान व्यावसायिकता से बहुत ऊपर है। गंगोत्री का पवित्र जल लेकर दैनिक जागरण गंगा सागर तक पहुंचा, लेकिन पूरी गंगा अपनी पवित्रता और निर्मलता के साथ गंगा सागर पहुंचे इसके लिए देश के सभी नागरिकों को संकल्प लेना होगा।