अब 'जन्नत' देख कांप उठती है रूह, भूखे-प्यासों की शरणस्थली बने मंदिर
जिस जन्नत को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों सैलानियों का तांता लगा रहता था, अब उसकी हालत देखकर ही रूह कांप उठती है। चारों ओर तबाही का मंजर, पानी में तैरती लाशें और बाढ़ में फंसे लोगों की मदद के लिए चीख-पुकार। मंजर बेहद खौफनाक और हृदय विदारक है। पूरी कश्मीर घाटी को बाढ़
श्रीनगर, [रोहित जंडियाल]। जिस जन्नत को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों सैलानियों का तांता लगा रहता था, अब उसकी हालत देखकर ही रूह कांप उठती है। चारों ओर तबाही का मंजर, पानी में तैरती लाशें और बाढ़ में फंसे लोगों की मदद के लिए चीख-पुकार। मंजर बेहद खौफनाक और हृदय विदारक है। पूरी कश्मीर घाटी को बाढ़ की नजर लग चुकी है, यहां दोबारा कब गुल खिलेंगे-कहना मुश्किल है।
हमेशा पर्यटकों से गुलजार रहने वाली डल झील अब खुद अपनी हालत को देखकर आंसू बहा रही है। झील की सुंदरता पर सिल्ट कब्जा जमा चुकी है और पानी में चलने वाले हाउट बोट और नाव बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। अपनी आंखों के सामने कश्मीर को उजड़ता देख चुके आम लोग अब डल और झेलम के पानी से भी डरने लगे हैं। डल में शिकारा चलाने वाला यूसुफ बेहद दुखी है। यूसुफ ने कहा कि अब पता नहीं कब फिर से यहां रौनक लौटेगी।
कश्मीर की शान कहे जाने वाला रायल स्प्रिंग गोल्फ कोर्स बाढ़ के पानी व मिट्टी में डूबा हुआ है। यहां अक्सर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला सहित कई विदेशी मेहमान भी कई बार गोल्फ खेलते हुए देखे जाते थे, अब यहां मरघट सा सन्नाटा पसरा हुआ है। यही स्थिति नेहरू पार्क की है। यहां पर लोग तो अभी भी हैं, लेकिन सहमे और भूखे-प्यासे। वायु सेना के विमान यहां से लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर ले जा रहे हैं। डल के किनारे स्थित हारबन, निशात, शालीमार पार्को का भी हाल बुरा है।
शंकराचार्य मंदिर जहां दर्शनों के लिए पर्यटकों की भीड़ रहती थी, अब वहां जान बचाने के लिए लोग भूखे-प्यासे शरण लिए हुए हैं। हर कोई आसमान की ओर वायु सेना के हेलीकाप्टरों के आने की प्रतीक्षा करता दिखता है। वहीं ज्योष्ठा देवी मंदिर जहां घंटियों की आवाज दिल को सुकून देती थी, अब वहां पर जान बचाने के लिए लोगों की गुहार सुनाई दे रही है। झेलम के किनारे जहां लोग सुबह और शाम को सैर करते थे, उसी के पानी ने तबाही का ऐसा तांडव मचाया है कि वर्षो इसे कोई भूल नहीं पाएगा।
कश्मीर को फिर जन्नत बनाना सबसे बड़ी चुनौती
जम्मू, [ललित कुमार]। भीषण बाढ़ से 'जहन्नुम' बन चुकी कश्मीर को फिर 'जन्नत' बनाने के लिए केंद्र व राज्य सरकार को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। साफ-सफाई से लेकर निर्माण कार्यो के लिए पूर्ण रूप से बाहरी राज्यों के कारीगरों व श्रमिकों पर निर्भर कश्मीर से हजारों श्रमिकों की वापसी सरकार के लिए भी चिंता का विषय बन गया है।
कश्मीर में आई प्राकृतिक आपदा के बीच बाहरी राज्यों के श्रमिक लगातार घाटी छोड़ कर जम्मू या फिर अन्य राज्यों में पहुंच रहे हैं। पिछले एक सप्ताह में वायु सेना करीब बीस हजार श्रमिकों को हवाई मार्ग से जम्मू व पठानकोट पहुंचा चुकी है। इस समय भी करीब पंद्रह हजार श्रमिक श्रीनगर के विभिन्न शिविरों में घर वापसी की उम्मीद लेकर बैठे हैं। एक अनुमान के अनुसार, कश्मीर में उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, ओडीशा व अन्य राज्यों के पचास हजार से अधिक कारीगर व श्रमिक हैं। कश्मीर में साफ-सफाई से लेकर लगभग हर तरह के निर्माण में इनकी भागेदारी है। ऐसे में इन श्रमिकों की अनुपस्थिति में साफ-सफाई व निर्माण कार्यो में बड़ी दिक्कत आने वाली है।
इस चुनौती की गंभीरता श्रीनगर के कुछ इलाकों में दिखना भी शुरू हो गई है। जिन इलाकों में जलस्तर कम हो चुका है, वहां कई-कई फुट बाढ़ की मिट्टी फैली है, लेकिन निकालने वाला कोई नहीं मिल रहा। लोगों के घरों व सरकारी कार्यालयों में पाइपें बंद हो चुकी है लेकिन इनकी मरम्मत करने के लिए पलंबर नहीं मिल रहे। आने वाले दिनों में जब सरकार पुननिर्माण कार्य शुरू करेगी तो ठेकेदारों को न तो मिस्त्री मिलेंगे, न रेत-बजरी उठाने वाले मजदूर और न ही लकड़ी का काम करने वाले कारीगर। ऐसे में घाटी में कारीगरों व श्रमिकों की कमी सरकार व लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर उबरने वाली है।
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