Move to Jagran APP

यहां हर बिटिया बनना चाहती है फुटबॉलर

अमेरिकी युवक ग्रामीण बच्चियों को सिखा रहा फुटबॉल और अंग्रेजी...

By Srishti VermaEdited By: Published: Fri, 22 Dec 2017 10:29 AM (IST)Updated: Fri, 22 Dec 2017 10:29 AM (IST)
यहां हर बिटिया बनना चाहती है फुटबॉलर

रांची (सौरभ सुमन)। रांची के ओरमांझी प्रखंड में गांव-गांव में फुटबॉल का क्रेज चरम पर है। लेकिन लड़कों में नहीं बल्कि लड़कियों में। पांच-छह साल की छोटी सी बच्ची भी बहुत बड़ी फुटबॉलर बनने का सपना संजोती है। गांवों के गरीब परिवारों की ये छोटी-छोटी बच्चियां गजब की फुटबॉल तो खेलती ही हैं, साथ में फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोलती हैं। वो भी अमेरिकन लहजे में। खेल के साथ पढ़ाई में भी इनकी खासी दिलचस्पी है। यह सब कुछ संभव हुआ है एक छोटे से सपने से। जिसे रांची में नहीं बल्कि अमेरिका के मिनोसोटा में रहने वाले एक सुशिक्षित युवक ने देखा था। हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पढ़े-लिखे फ्रेंज गैसलर इस सपने को साकार करने भारत आए। पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों की बच्चियों को फुटबॉल के बहाने सुशिक्षित और सशक्त बनाने के लिए उन्होंने टीम युवा की स्थापना की। आज यह टीम देश-विदेश में नाम कमा रही है।

loksabha election banner

धमाल मचा रही टीम : ओरमांझी प्रखंड के लगभग हर गांव में बेटियां आज बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी बनकर उभर रही हैं। युवा संस्था की ओर से रांची से सटे रूक्का के पास हुटूप गांव में स्थापित गल्र्स फुटबॉल अकादमी उन्हें निशुल्क प्रशिक्षण दे रही है। युवा गल्र्स फुटबॉल टीम ने 2013 में स्पेन में आयोजित अंडर-14 फुटबॉल चैंपियनशिप गास्टिज कप में तीसरा स्थान हासिल किया था। देश-विदेश में जमकर नाम हुआ। तब से तो अब इलाके की हर बेटी का सपना इस टीम का हिस्सा बनना मात्र है। आज ओरमांझी प्रखंड की 300 से भी अधिक बेटियां अकादमी में ट्रेनिंग ले रही हैं। ये सभी बच्चियां गरीब आदिवासी परिवारों से हैं।

2009 से शुरू हुई मुहिम : अमेरिका के मिनेसोटा से फ्रेंज गैसलर 2009 में रांची आए। हार्वर्ड विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने वाले गैसलर ने राजधानी से सटे ओरमांझी का चयन किया। बड़ी मुश्किल से कुछ आदिवासी परिवारों की लड़कियों को जोड़कर अंडर-13 फुटबॉल टीम बनाई। लड़कियों को ट्रेनिंग देना शुरू किया। उन्हें पढ़ाई में भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। गैसलर उन्हें अंग्रेजी बोलना सिखाने लगे। लड़कियों में जागे आत्मविश्वास को देख धीरे-धीरे आसपास के लोग भी जागरूक हुए। देखते ही देखते युवा गल्र्स फुटबॉल टीम ने सफलता की नई कहानी लिखना शुरू कर दिया।

ऐसे गढ़ रहे लड़कियों का भविष्य : युवा संस्थान की ओर से हर दिन सुबह 4.30 बजे बसें विभिन्न गांवों में पहुंचती हैं। बसों के जरिए खिलाड़ियों को मैदान तक लाया जाता है। यहां 18 टीमें अलग अलग 18 स्थानों पर ट्रेनिंग लेती हैं। सात बजे तक ट्रेनिंग सेशन चलता है। उसके बाद सभी को स्कूल के लिए रवाना किया जाता है। शाम में भी एक घंटा प्रैक्टिस की जाती है।

अमेरिका में भी मिली ट्रेनिंग : लड़कियों की टीम ट्रेनिंग के लिए अमेरिका भी जा चुकी है। पिछले साल वाशिंगटन डीसी में आयोजित ट्रेनिंग कैंप में उसने भाग लिया था। जहां मशहूर अमेरिकी फुटबॉलर जोएना लोहमैन और इंग्लैंड की लीयेन सैंडरसन ने इन्हें ट्रेनिंग दी।

मुश्किल भरा रहा सफर : गैसलर का सफर आसान नहीं था। अभिभावकों को लगा कि यह भी धर्म परिवर्तन का तरीका है। मां-बाप ने बेटियों को फुटबॉल खेलने की इजाजत नहीं दी। गैसलर पर शक बना रहा। लेकिन धीरे-धीरे सच्चाई खुद ब खुद सामने आई और लोगों का शक दूर हो गया।

-रांची के ओरमांझी प्रखंड में आदिवासी परिवारों की 300 लड़कियां खेल रहीं फुटबॉल
-पांच वर्ष की उम्र से शुरू हो जाती है ट्रेनिंग
-स्पेन में अंडर-14 गास्टिज कप में तीसरे स्थान पर रही थी टीम

युवा गल्र्स टीम ने पहचान पूरे विश्व में बना ली है। यह उनके बुलंद हौसले की कहानी है। आदिवासी समाज की लड़कियां आज तेजी से विश्व पटल पर आगे बढ़ रही हैं। उनकी मेहनत और उसके समर्पण से ही यह सब संभव हुआ है। मेरी छोटी सी कोशिश इतने बड़े स्तर तक पहुंच जाएगी मुझे खुद भरोसा नहीं था। - फ्रेंज गैसलर, संस्थापक, युवा संस्थान

यह भी पढ़ें : अब मैं आजाद हूं... मैंने सीख लिया पति को ‘न’ कहना


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.