जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी प्रतिक्रिया
जस्टिस दीपक मिश्रा और रोहिंग्टन नरीमन की पीठ ने मंगलवार को जल्लीकट्टू मामले में तमिलनाडु की ओर से पेश वकील की दलील पर यह प्रतिक्रिया दी।
नई दिल्ली, प्रेट्र। जल्लीकट्टू पर रोक के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कोर्ट ने कहा कि सदियों पुरानी परंपरा होने का मतलब कानून सम्मत होना नहीं होता है। इस आधार पर इसे सही नहीं ठहराया जा सकता है।
जस्टिस दीपक मिश्रा और रोहिंग्टन नरीमन की पीठ ने मंगलवार को जल्लीकट्टू मामले में तमिलनाडु की ओर से पेश वकील की दलील पर यह प्रतिक्रिया दी। पीठ ने कहा कि यदि पक्षकार कोर्ट के पूर्व के फैसले को गलत साबित करने में सफल रहे तो मामले को बड़ी पीठ के हवाले किया जाएगा। कोर्ट ने जल्लीकट्टू की संवैधानिक वैधता तय करने के लिए अंतिम सुनवाई की तिथि 30 अगस्त मुकर्रर की है। पीठ ने स्पष्ट किया कि मामले की अंतिम सुनवाई शुरू होने पर उसे स्थगित नहीं किया जाएगा।
गौरतलब है कि जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए तमिलनाडु की ओर से याचिका दायर की गई है। इसे सदियों पुरानी परंपरा होने की दलील पर कोर्ट ने कहा, 'सिर्फ इस आधार पर कि जल्लीकट्टू सदियों पुरानी परंपरा है, इसे कानून सम्मत नहीं माना जा सकता है। शताब्दियों से 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की शादी होती रही है तो क्या इसका मतलब यह है कि बाल विवाह कानूनी है?
'सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू, बैलगाड़ी दौड़ और बैलों को काबू करने पर प्रतिबंध लगाने वाले वर्ष 2014 के फैसले की समीक्षा करने से 21 जनवरी को इन्कार कर दिया था। इससे पहले तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने 8 जनवरी को प्रतिबंध खत्म करने को लेकर अधिसूचना जारी कर दी थी। गैरसरकारी संस्थाओं की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना पर ही रोक लगा दी थी। तमिलनाडु में पोंगल पर जल्लीकट्टू का आयोजन किया जाता है।
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