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दलित एजेंडे पर संघ और सरकार, सामाजिक समरसता पर होगा जोर

विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल राम मंदिर और घर वापसी जैसे मुद्दे पर आस्तीन चढ़ा रहे हों, लेकिन आरएसएस और सरकार अब सामाजिक समरसता के एजेंडे आगे बढ़ चुकी है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Fri, 18 Mar 2016 08:44 PM (IST)Updated: Sat, 19 Mar 2016 12:30 AM (IST)
दलित एजेंडे पर संघ  और सरकार, सामाजिक समरसता पर होगा जोर

राजकिशोर, नई दिल्ली। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल राम मंदिर और घर वापसी जैसे मुद्दे पर आस्तीन चढ़ा रहे हों, लेकिन आरएसएस और सरकार अब सामाजिक समरसता के एजेंडे आगे बढ़ चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत के दलित मिशन पर तात्कालिक नतीजों की चिंता किए बगैर पूरी ताकत से संघ परिवार और सरकार जुटी रहेगी।

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सरकार जहां दलितों का आर्थिक स्तर उठाने के लिए योजनाओं की बारिश करने जा रही है, वहीं संघ अस्पृश्यता के खिलाफ सबसे बड़ा सामाजिक अभियान चलाने जा रहा है। इसके लिए संघ के स्वयंसेवकों की फौज गली-मोहल्लों और पंचायतों तक पूरी शिद्दत से जुटेगी। मोदी 14 अप्रैल को बाबा साहब अंबेडकर के जन्मदिन पर कमजोर तबकों के लिए बड़ी घोषणा भी कर सकते हैं।

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छुआछूत से कलंकित 1800 स्थान

हालांकि, अभी सबसे पहले उसके एजेंडे छुआछूत हटाना है। संघ ने अपने सर्वेक्षण में पाया है कि देश में करीब 1800 ऐसे गांव या स्थान है, जहां जाति के आधार पर सामाजिक भेदभाव हो रहा है। मंदिर, श्मसान, पानी के हैंडपंप या कुएं जैसे सार्वजनिक स्थलों पर जाति के आधार पर भेद को पूरी तरह खत्म करने के लिए संघ ने अपने रसूखवाले, संयमी और समझदार स्वयंसेवकों को तैयार किया है।

दलितों-सवर्णो के बीच इस तरह के छुआछूत को रोकने के लिए 'सभी प्राणियों में एक ही तत्व या ईश्वर है' इस विराट हिंदू दर्शन पर जागरुकता फैलाई जाएगी। नागौर में संघ की प्रतिनिधि सभा में किसी को जाति के आधार पर बेहतर और कमतर आंकने वाली सामाजिक कुरीति को मानवता पर कलंक बताते हुए इसे देश के पतन का कारण बताते हुए एक प्रस्ताव भी पारित किया है।

खास बात है कि इस दौरान मंच पर पूर्व सरसंघचालक की उक्ति 'यदि छुआछूत अपराध नहीं है तो फिर कुछ भी अपराध नहीं है.' को मुख्य मंच पर प्रमुखता से हाइलाइट किया गया था।

आरक्षण पर भी सामाजिक चेतना

संघ की सोच है छुआछूत की घटनाएं रोकने के लिए सिर्फ राजनीतिक और प्रशासनिक जरिया नहीं हो सकता। इससे तनाव बढ़ने का खतरा ज्यादा रहा है। इसलिए, ऐसी जगहों पर स्वयंसेवक पंचायत बुलाकर या प्रभावशाली लोगों को बुलाकर समाज को घुलने-मिलने का अवसर प्रदान करेंगे। संघ का थिंकटैंक मानता है कि सामाजिक समरसता में वोटबैंक की राजनीति आडे़ आती है। जातिगत आरक्षण से वह इसी विभाजनकारी वोटबैंक की सियासत को आगे बढ़ता देख रहा है। इसीलिए सही पात्रों को आरक्षण पहुंचाने के लिए वह समाज के बीच ही जागरुकता अभियान फैलाएगा।

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संघ के एक शीर्ष पदाधिकारी के मुताबिक, वैसे तो संघ संस्थापक डा. हेडगेवार अंतरजातीय विवाह को जातिवाद दूर करने का सबसे प्रभावी अस्त्र मानते थे। मगर चूंकि विवाह व्यक्तिगत मामला है, लिहाजा इसे अभियान की तरह तो नहीं चला सकते, लेकिन हिंदू समाज को एकात्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह के लिए भी चेतना जगाई जाएगी।

सरकार का दलित एजेंडा

संघ परिवार की इस सोच का असर सरकार और भाजपा पर भी साफ दिख रहा है। संघ की बैठक के बाद दो दिन पहले भाजपा के सभी दलित सांसदों की बैठक सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत के घर हुई। दलितों के बीच जाकर उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए प्रेरित करने और असल समस्याओं पर खुलकर चर्चा कर उन्हें दूर करने पर चर्चा हुई।

इससे पहले बजट में दलित उद्यमियों को आगे बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने 500 करोड़ रुपये का बजट और समरसता के लिए 100 करोड़ का अलग बजट रख केंद्र ने अपनी सोच जाहिर ही कर दी थी। अब 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती पर सरकार दलितों के बीच बड़ी घोषणाएं करेगी। इससे पहले संसद में संविधान दिवस पर बहस करा डा. अंबेडकर के प्रति मोदी सम्मान जता चुके हैं और उनके नाम पर बहुत बड़े स्मारक का भी निर्माण हो रहा है। 21 मार्च को विज्ञान भवन में सामाजिक न्याय पर सम्मेलन में भी पीएम होंगे।

वेमुला मुद्दा समाज तोड़ने के लिए

हैदराबाद में रोहित वेमुला की आत्महत्या मामले को दलित उत्पीड़न से जोड़ने को संघ पूरी तरह सियासी और समाज तोड़ने की साजिश के रूप में देख रहा है। संघ के शीर्ष पदाधिकारी के मुताबिक, असली मुद्दा यह था कि अफजल गुरु के पक्ष में प्रदर्शन कर रहे वेमुला व उनके साथियों ने एबीवीपी के जिस कार्यकर्ता को मारा था, वह दलित था। मगर इस तरह से भाजपा या एबीवीपी ने इसे दलित मुद्दा नहीं बनाया।

मगर एक छात्र की दुखद आत्महत्या को वोटबैंक की सियासत में संघ विरोधियों ने दूसरा ही रंग दे दिया। ऐसे मुद्दे जो हिंदू समाज की एकता को तोड़ने और उनके बीच वैमनस्य फैलाने की कोशिश करते हैं, इसलिए भी दलित उत्थान और अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन की तरह संघ लंबी सोच के साथ चलाता रहेगा।


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