कांग्रेस-सपा गठबंधन तय, रालोद पर फंसी पेंच
सपा और कांग्रेस की शीर्ष नेतृत्व से एक-दो दिनों में गठबंधन हो जाने का दावा किया जा रहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। साइकिल पर विवाद खत्म होते ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेता महागठबंधन को अमली जामा पहनाने की तैयारियों में जुट गए हैं। सपा और कांग्रेस की शीर्ष नेतृत्व से एक-दो दिनों में गठबंधन हो जाने का दावा किया जा रहा है। लेकिन असली चुनौती रालोद जैसे छोटे दलों को इसमें शामिल कर इसे महागठबंधन के रूप में पेश करने में आ रही है।
परिवार की लड़ाई में विजयी होने के बाद बड़े नेता के रूप में उभरे अखिलेश यादव गठबंधन के लिए अधिक सीटें छोड़कर सपा को कमजोर करने के पक्ष में नहीं हैं। वहीं कांग्रेस भाजपा के विजयी रथ को रोकने के लिए अधिकतम दलों को साथ जोड़ने के पक्ष में है। अगर सबकुछ सटीक बैठा तो अखिलेश-राहुल और जयंत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संयुक्त रैली से इसका आगाज कर सकते हैं।
कांग्रेस-सपा गठबंधन का एलान करते हुए उत्तरप्रदेश के प्रभारी महासचिव गुलाम नबी आजाद ने राज्य में अगली सरकार बनने का दावा किया। उन्होंने कहा कि गठबंधन की तैयारियां शुरु हो गई हैं और अगले एक-दो दिनों में इसके सभी पहलुओं पर फैसला कर लिया जाएगा।
पहले फेज में होने वाले चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाने के कारण गठबंधन को जल्द-से-जल्द मूर्त देना जरूरी हो गया है। वहीं गठबंधन का रास्ता साफ करते हुए उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की मुख्यमंत्री उम्मीदार शीला दीक्षित ने अपनी दावेदारी वापस लेने का संकेत दे दिया है। शीला दीक्षित ने साफ कर दिया है कि गठबंधन होने की स्थिति में वे मुख्यमंत्री पद के दौड़ से बाहर हो जाएंगी और अखिलेश यादव के नेतृत्व में एकजुट गठबंधन ही मैदान में होगा।
कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन तय होने के बावजूद इसे महागठबंधन का स्वरूप देना आसान नहीं होगा। अखिलेश यादव के पीछे एकजुट सपा अब गठबंधन दलों के लिए लगभग सौ सीटों से अधिक छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। इनमें अकेले कांग्रेस के लिए 75-80 सीटें हैं। वहीं कांग्रेस खुद के लिए सीटों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ रालोद और जैसी छोटी पार्टियों के लिए भी सीटें छोड़ने का दवाब बना रही है।
कांग्रेस का मानना है कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश में रालोद का साथ लिए बगैर भाजपा को रोकना संभव नहीं होगा। इसके साथ ही कांग्रेस राज्य में जदयू जैसी छोटी पार्टियों को भी चंद सीटों के साथ गठबंधन में शामिल करना चाहती है। ताकि इसे बिहार की तर्ज पर महागठबंधन के रूप में पेश किया जा सके। बिहार में महागठबंधन भाजपा को हराने में सफल रहा था।
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