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जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के विकल्प के खिलाफ कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी का कहना है कि केन्द्र का अलगाववादियों से संवाद तो दूर घाटी के आम लोगों से भी किसी तरह की बातचीत नहीं हो रही है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Tue, 25 Apr 2017 04:44 AM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2017 07:14 AM (IST)
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के विकल्प के खिलाफ कांग्रेस

संजय मिश्र, नई दिल्ली। केन्द्र सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति पर लगातार सवाल उठाने के बावजूद कांग्रेस सूबे में राष्ट्रपति शासन लागू करने के पक्ष में नहीं है। पार्टी का मानना है कि घाटी के बेहद गंभीर और संवेदनशील हालात में चुनी हुई सरकार के सहारे संवाद का सबसे सशक्त जरिया बंद नहीं होना चाहिए। पार्टी की नजर में सूबे की सरकार केन्द्र के लिए रणनीतिक बफर की तरह है और मौजूदा नाजुक दौर में इस बफर को खत्म करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक होगा।

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घाटी की बिगड़ती स्थिति की वजह से पीडीपी-भाजपा गठबंधन में तनाव के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन की लगाई जा रही अटकलों पर कांग्रेस नेताओं ने अनौपचारिक तौर पर यह राय जाहिर की। पार्टी का कहना है कि केन्द्र का अलगाववादियों से संवाद तो दूर घाटी के आम लोगों से भी किसी तरह की बातचीत नहीं हो रही है। ऐसे में चाहे महबूबा सरकार घाटी के हालात संभालने के अधिकांश पैमाने पर विफल रही है। मगर इसमें एक सकारात्मक पहलू यह है कि सरकार कम से कम उनलोगों के बीच से चुनी गई है। इसकी एक लोकतांत्रिक मर्यादा तो है ही साथ ही केन्द्र के लिए बहुत बड़ा बफर।

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कांग्रेस के मुताबिक श्रीनगर लोकसभा उपचुनाव में केवल 7 फीसद मतदान और कुछ पोलिंग बूथ पर पुर्नमतदान में 2 फीसद वोटिंग को देखते हुए राष्ट्रपति शासन के बारे में सोचने की जल्दबाजी दिखाना तो और भी बड़ी भूल होगी। राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद देर-सबेर चुनाव कराना ही होगा और ऐसे में वोटिंग प्रतिशत कुछ ऐसा ही रहा तो फिर कश्मीर पर दुनिया की नजर में हमारा पक्ष कमजोर होगा। इसलिए उनलोगों के बीच से ही चुनी हुई राज्य सरकार के इस बफर रुपी कवच को गंवाने का केन्द्र को जोखिम नहीं उठाना चाहिए। वैसे केन्द्र सरकार की कश्मीर नीति की विफलता को लेकर पार्टी की ओर से सवाल दागते हुए कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने श्रीनगर उपचुनाव में कम मतदान का जिक्र किया।

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उनका कहना था कि कश्मीर में आतंकवाद के चरम दौर 1989-1996 के समय 96 में हुए चुनाव में 55 फीसद वोट पड़े। वाजेपयी की एनडीए सरकार के समय 2002 के चुनाव में 43 फीसद से ज्यादा मतदान हुआ। यूपीए के समय 2008 में 61 फीसद का आंकड़ा पार कर गया और फिर मौजूदा एनडीए के शासन में आने के बाद 2014 में वोटिंग पहले से भी अधिक 65 फीसद हुआ। तिवारी ने कहा कि ऐसे में सरकार को यह जवाब तो देना ही होगा कि तीन साल के भीतर हालात इतने कैसे खराब हो गए कि अनंतनाग में चुनाव स्थगित करने पड़ रहे तो श्रीनगर में सात फीसद वोट डाले जाते हैं।

कांग्रेस ने यह भी कहा कि केन्द्र की कश्मीर पर कोई स्पष्ट नीति ही नहीं है इसका सबसे बड़ा प्रमाण मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद यह कह कर दे दिया कि शुरूआत वहां से करनी है जहां पूर्व पीएम वाजपेयी ने छोड़ा था। मनीष तिवारी ने कहा कि इस बयान ने साबित कर दिया है कि एनडीए सरकार की कश्मीर को लेकर कोई नीति ही नहीं है और देश की सुरक्षा और अखंड़ता से खिलवाड़ है। उन्होंने कहा कि चूंकि कश्मीर का मसला बेहद संवेदनशील है इसलिए राजनीतिक मांग करने की बजाय पार्टी केन्द्र से आग्रह करती है कि वह जल्द कश्मीर के हालात से निपटने की स्पष्ट नीति बनाए।


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