महिला आयोग के पास निचली अदालत के समान अधिकार नहीं : हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने वैवाहिक विवाद के मामले में फैसला सुनाने के दौरान की टिप्पणी..
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राष्ट्रीय महिला आयोग के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह स्वयं निचली अदालत की तरह किसी मामले में अंतिम नतीजे तक पहुंचे और अदालत की तरह फैसला दे। वैवाहिक विवाद के एक मामले में हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की है।
मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी व न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की खंडपीठ ने कहा कि आयोग वैवाहिक विवाद के मामले में पति के नियोक्ता (कंपनी) को किसी भी प्रकार का आदेश या एडवाइजरी जारी नहीं कर सकता। खंडपीठ ने आयोग व देविका सिंह की याचिका खारिज करते हुए मामले में एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा है। खंडपीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आयोग को महिलाओं के हित में मिली शिकायत या फिर स्वयं संज्ञान लेने का अधिकार है, लेकिन विधायिका ने आयोग को ऐसे अधिकार नहीं दिए हैं कि वह स्वयं आदेश पारित कर दे।
यह है मामला
देविका सिंह महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय शक्तीकरण मिशन में सलाहकार थीं। सिंगापुर की कंपनी में मरीन इंजीनियर कुणाल चौहान से 11 फरवरी 2008 को उनका विवाह हुआ था। वर्ष 2013 में उनका एक बच्चा हुआ था। इसके बाद मतभेद होने पर देविका ने आयोग के समक्ष पति के खिलाफ शिकायत की। आयोग ने 14 जून 2013 को भारतीय उच्चायोग को इस मुद्दे पर पत्र लिखा और उसकी प्रति सिंगापुर स्थित कंपनी के कार्यालय में भेज दी। कंपनी ने 24 जून को कुणाल को नौकरी से निकाल दिया। कुणाल ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आयोग को अपनी एडवाइजरी वापस लेने व 75 लाख 49 हजार 958 रुपये का मुआवजा दिलाने का आग्रह किया था।
यह था एकल पीठ का फैसला
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ ने 31 मार्च 2016 को फैसले में कहा था कि महिला आयोग किसी केस में एक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सकता है, न ही वह किसी को राहत प्रदान कर सकता है। आयोग का काम महिलाओं की आर्थिक, स्वास्थ्य व शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन करना है, जिससे कि उनके समग्र विकास में मदद मिल सके। आयोग का काम महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का आंकड़ा एकत्रित करना है। अदालत ने आयोग पर 30 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। महिला आयोग व देविका ने इस फैसले को दो सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी।
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