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चिंपांजी इंसान या जानवर, अमेरिकी अदालत तय करेगी

चिंपांजी इंसान हैं या जानवर? इस बात पर बहस एक बार और तेज होने की संभावना पैदा हो गई है। अमेरिका में न्यूयॉर्क स्टेट सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट यूनिवर्सिटी के खिलाफ दायर उस याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें पशु अधिकार समूह ने कहा है कि विश्वविद्यालय में बंदी बना

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2015 12:30 AM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2015 04:54 PM (IST)
चिंपांजी इंसान या जानवर, अमेरिकी अदालत तय करेगी

न्यूयॉर्क। चिंपांजी इंसान हैं या जानवर? इस बात पर बहस एक बार और तेज होने की संभावना पैदा हो गई है। अमेरिका में न्यूयॉर्क स्टेट सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट यूनिवर्सिटी के खिलाफ दायर उस याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें पशु अधिकार समूह ने कहा है कि विश्वविद्यालय में बंदी बना कर रखे गए दो चिंपांजी को आजाद कर दिया जाए, क्योंकि वे स्वतंत्र मेधावी जीव हैं। न्यूयॉर्क स्टेट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर अगले महीने के पहले सप्ताह में सुनवाई की तारीख तय की गई है।

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न्यूयार्क यूनिवर्सिटी को देना पड़ेगा जवाब

मैनहट्टन में स्टेट सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बारबारा जैफे ने सोमवार को जारी आदेश में कहा है कि दायर की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तहत न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के सामने इस जीव को बलशाली नरवानर में रखने संबंधी अपने अधिकार को परिभाषित करना जरूरी हो गया है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तहत किसी व्यक्ति को गैरकानूनी कैद से रिहा करना अनिवार्य है।

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दुनिया का यह पहला मामला

एक नजर में यह दुनिया में इस तरह का पहला मामला है, जिसमें आज तक वन्य पशु के तहत वर्गीकृत किए गए जीव को 'आदि मनुष्य' मानने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया गया है।

चिंपांजी को बंदी बनाए रखना गैरकानूनी

इसके लिए याचिका दायर करने वाले समूह नॉनह्यूमन राइट प्रोजेक्ट का दावा है कि चिंपांजी चूंकि स्वतंत्र, मेधावी जीव होते हैं। इसलिए उन्हें बंदी बनाए रखना, कानून में उल्लिखित गैरकानूनी तरीके से कैद में रखने जैसा है। याचिका दायर करने वाले समूह की इच्छा है कि यूनिवर्सिटी में शारीरिक गतिशीलता पर अनुसंधान के लिए रखे गए चिंपाजी जोड़े को फ्लोरिडा अभयारण्य भेज दिया जाए।

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कानूनी पेंच

कानून के तहत इस तरह का आदेश केवल 'वैध व्यक्तियों' को ही दिया जा सकता है। ऐसे में जैफे के सामने 'केवल मनुष्यों के लिए आरक्षित सीमित परंपरागत अधिकार चिंपांजियों को भी हासिल हैं' इसे प्रमाणित करने की जरूरत पड़ेगी। सोमवार को जारी किए गए अपने आदेश को जहां जैफे परिभाषित नहीं कर पाए तो वहीं दूसरी तरफ इस आदेश पर मंगलवार तक यूनिवर्सिटी अदालती आदेश पर मांगी गई टिप्पणी के आग्रह का जवाब नहीं दे पाया।

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6 मई को सुनवाई

इस मामले की सुनवाई 6 मई को होगी। सुनवाई में यूनिवर्सिटी की ओर से न्यूयार्क स्टेट अटार्नी जनरल पैरवी करेंगे। ध्यान रहे कि इससे पहले दिसंबर महीने में परंपरागत पशु कल्याण मामले में अर्जेटीना के एक जज ने कहा था चिडि़याघर में रहने वाले वनमानुष को स्वतंत्र किया जा सकता है और उसे अभयारण्य में भेजा जा सकता है।

दूसरे पशुओं के लिए खुलेगा रास्ता

एक अलग मामले में बोस्टन अटार्नी एवं अन्य पशु अधिकार कार्यकर्ता स्टेवन वाइज द्वारा स्थापित समूह ने कहा है कि यदि इस मामले में जीत मिलती है कि इसी तरह के मामले हाथी, डॉल्फिन, व्हेल और अन्य बुद्धिमान पशुओं की ओर से दायर किए जाएंगे।


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