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रावत सरकार के लिए आसान नहीं फैसला बदलना

गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक लगभग चार हजार वर्ग किमी में फैले गंगा के जल समेट क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) को इको सेंसिटिव जोन घोषित करने के फैसले को वापस लेने के लिए राज्य सरकार भले ही केंद्र का दरवाजा खटखटाने जा रही हो, लेकिन ऐसा होना खासा मुश्किल है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 29 Dec 2014 09:57 AM (IST)Updated: Mon, 29 Dec 2014 10:02 AM (IST)
रावत सरकार के लिए आसान नहीं फैसला बदलना

केदार दत्त, देहरादून। गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक लगभग चार हजार वर्ग किमी में फैले गंगा के जल समेट क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) को इको सेंसिटिव जोन घोषित करने के फैसले को वापस लेने के लिए राज्य सरकार भले ही केंद्र का दरवाजा खटखटाने जा रही हो, लेकिन ऐसा होना खासा मुश्किल है। केंद्र की तत्कालीन संप्रग सरकार ने दो साल पहले इस संबंध में जो अधिसूचना जारी की, अब वह कानून का रूप ले चुकी है। इसमें बदलाव को संसद में संशोधन विधेयक लाना होगा और पिछले वर्ष उत्तराखंड में हुई केदारनाथ त्रासदी के बाद बदली परिस्थितियां इसकी इजाजत नहीं देतीं। संप्रग सरकार ने 18 दिसंबर 2012 को अधिसूचना जारी कर गोमुख से उत्तरकाशी तक के क्षेत्र के इको सेंसिटिव जोन घोषित किया। अधिसूचना में राज्य सरकार को दो साल के भीतर इस क्षेत्र में विकास संबंधी गतिविधियों के मद्देनजर जोनल मास्टर प्लान तैयार करने को कहा और इसके लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी भी गठित की गई। असल में इको सेंसिटिव जोन में कुछ गतिविधियां प्रतिबंधित होती हैं, जबकि कुछ के लिए अनुमति लेनी होती है। कुछ गतिविधियां ऐसी भी होती हैं, जिनके लिए इजाजत की आवश्यकता नहीं है। इन सबके मद्देनजर ही जोनल मास्टर प्लान तैयार होना है। हालांकि, अधिसूचना जारी होने के बाद इसका जनता ने विरोध किया। लोगों का कहना था कि आखिर पर्यावरण संरक्षण के नाम उन्हें ही क्यों मोहरा बनाया जा रहा है और क्यों इको सेंसिटिव जोन के नाम पर उनके अधिकारों पर कुठाराघात किया जा रहा है। इस पर राज्य की तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार ने केंद्र को पत्र भेजकर इसके मानकों को शिथिल करने का आग्रह किया। बाद में तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयंती नटराजन ने भी इस मामले को देखने की बात कही थी। इस बीच पिछले साल 16-17 जून की केदारनाथ त्रसदी ने परिस्थितियां ही बदल दीं। जो केंद्र सरकार इको सेंसिटिव जोन में शिथिलता पर विचार की बात कर रही थी, उसने चुप्पी साध ली और केंद्र में सत्ता परिवर्तन होने के बाद भी यह बरकरार है। इस बीच 18 दिसंबर 2014 को दो साल पूरे होने के साथ ही इसके लिए मास्टर प्लान तैयार करने की तय समयावधि भी बीत गई। पर्यावरण संरक्षण संरक्षण अधिनियम-1986 की धारा तीन और इसकी उपधारा तीन के तहत घोषित इस इको सेंसेटिव जोन ने कानून का रूप भी ले लिया। सवाल, यह भी है कि केदारनाथ में आई आपदा को देखते हुए क्या ऐसे क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए। फिर मौजूदा केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय नदी गंगा पर विशेष फोकस किया है। ऐसे में गंगा के उद्गम माने जाने वाले गोमुख से लेकर उत्तरकाशी तक गंगा के जलसमेट क्षेत्र की वह कैसे अनदेखी कर सकती है। यही नहीं, अदालत भी गंगा को लेकर खासी गंभीर है। इसके मद्देनजर फैसला वापस लेने की राह कांटों भरी है।

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