किसानों की कर्ज माफी के चलते होगा करीब 45 लाख करोड़ का राजकोषीय घाटा
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक देश के सभी राज्यों का राजकोषीय घाटा 2015-16 में 493360 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
नितिन प्रधान, नई दिल्ली। राजकोषीय संतुलन को लेकर राज्यों की प्रवृत्ति केंद्र के लिए चिंता पैदा कर रही है। देश के आर्थिक विकास में राज्यों को साथ लेकर चलने की पैरोकार केंद्र सरकार के लिए इन राज्यों की राजकोषीय नीति सिरदर्द साबित हो रही है। राज्यों, खासतौर पर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों का राजकोषीय घाटा साल दर साल बढ़ रहा है। जबकि इसके ठीक विपरीत बेहतर राजकोषीय प्रबंधन के चलते केंद्र का राजकोषीय घाटा लगातार कम हो रहा है।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक देश के सभी राज्यों का राजकोषीय घाटा 2015-16 में 493360 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। 1990-91 में यह मात्र 18790 करोड़ रुपये था। हालांकि रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि 2016-17 में यह कम होकर 449520 करोड़ रुपये पर आ जाएगा। लेकिन जानकारों का मानना है कि जिस तरह के उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब ने किसानों की कर्ज माफी का फैसला किया है उससे राजकोषीय घाटे के फिर से बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। राज्यों की इस प्रवृत्ति को लेकर खुद रिजर्व बैंक ने भी चिंता व्यक्त की है और इस तरह के कदमों को अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक संकेत बताया है।
हालांकि राज्यों और केंद्र के राजकोषीय घाटे का तुलनात्मक अध्ययन करें तो रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि तीन साल पहले तक राज्य केंद्र के मुकाबले बेहतर स्थिति में थे। लेकिन 2012-13 के बाद केंद्र की तरफ से अपनायी गई कड़ी राजकोषीय नीति के चलते इसके घाटे में लगातार कमी आ रही है। जबकि राज्यों का घाटा उसके बाद से निरंतर बढ़ रहा है। नतीजा यह हुआ है कि केंद्र का राजकोषीय घाटा 3.5 फीसद तक नीचे आ गया है जबकि राज्यों का घाटा बढ़ते हुए 3.6 फीसद तक पहुंच गया है। इसके चलते केंद्र और राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा सात फीसद के खतरनाक स्तर को छूने की स्थिति में पहुंच गया है।
साल 2015-16 में अकेले उत्तर प्रदेश का राजकोषीय घाटा 64320 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जबकि महाराष्ट्र का राजकोषीय घाटा 37950 करोड़ रुपये का है। इन दोनों ही राज्यों ने इस साल किसानों की कर्ज माफी का ऐलान किया है जिसके चलते उत्तर प्रदेश को 36000 करोड़ रुपये और महाराष्ट्र को 34000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ वहन करना होगा। यह स्थिति न केवल इन राज्यों के राजकोषीय घाटे में इजाफा करेगी बल्कि राज्यों के कुल राजकोषीय घाटे को भी बढ़ाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार प्रारंभ से ही देश के आर्थिक विकास को रफ्तार देने के लिए राज्यों को साथ लेकर चलने के पक्ष में है। चूंकि केंद्र का राजकोषीय प्रबंधन अब लगभग पटरी पर आ चुका है लिहाजा केंद्र सरकार की पहल पर अब राज्यों की राजकोषीय स्थिति को सुधारने पर काम शुरू हुआ है। उदय स्कीम के जरिए राज्यों के बिजली बोर्डो को खस्ता आर्थिक हालत से बाहर निकालने के तौर पर देखा जा सकता है। साथ ही नीति आयोग ने भी उत्तर प्रदेश और फिर राजस्थान के विकास की योजना बनाने के लिए राज्य सरकारों को प्रस्ताव दिये हैं। लेकिन जानकार बताते हैं कि यह तभी संभव होगा जब राज्य कर्ज माफी जैसे लोकलुभावन फैसले लेने में सावधानी बरतें। राज्य अगर राजकोषीय प्रबंधन की राह पर नहीं चलेंगे तो ये बाजार से कर्ज जुटाने की राह से बाहर होते जाएंगे।
केंद्र व राज्यों का राजकोषीय घाटा
(जीडीपी का प्रतिशत)
वर्ष केंद्र राज्य
2012-13 4.9 2.0
2013-14 4.5 2.2
2014-15 4.1 2.5
2015-16 3.9 3.6
2016-17 3.5 3.4
प्रमुख राज्यों का राजकोषीय घाटा
(अरब रुपये में)
राज्य 2014-15 2015-16
बिहार 111.8 285.1
गुजरात 183.2 221.7
हरियाणा 125.9 304
झारखंड 65.6 112.9
कर्नाटक 195.8 205.6
पंजाब 108.4 122.3
राजस्थान 190 673.5
उत्तर प्रदेश 325.1 643.2
महाराष्ट्र 318.3 379.5
स्त्रोत : रिजर्व बैंक
यह भी पढ़ें: गडकरी के ड्रीम प्रोजेक्ट को लगी विरोधियों की नजर, एक्सप्रेसवे का काम पिछड़ा
यह भी पढ़ें: जानिए, 'मेड इन चाइना' को किस तरह चुनौती दे रही हैं ये कश्मीरी लड़कियां