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    पश्चिम महाराष्ट्र: गुल खिला सकते हैं भाजपा के नए समीकरण

    By manoj yadavEdited By:
    Updated: Mon, 06 Oct 2014 10:08 AM (IST)

    मराठा छत्रप शरद पवार का मजबूत किला समझे जानेवाले पश्चिम महाराष्ट्र में भाजपा के नए समीकरण गुल खिलाने की तैयारी में हैं । 58 विधानसभा सीटों वाला यह क्षेत्र ही तय करेगा कि महाराष्ट्र में अगली सरकार किसकी बनेगी। गन्ने की खेती और सहकारी चीनी मिलों वाला पश्चिम महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। 1

    पुणे [ओमप्रकाश तिवारी]। मराठा छत्रप शरद पवार का मजबूत किला समझे जानेवाले पश्चिम महाराष्ट्र में भाजपा के नए समीकरण गुल खिलाने की तैयारी में हैं । 58 विधानसभा सीटों वाला यह क्षेत्र ही तय करेगा कि महाराष्ट्र में अगली सरकार किसकी बनेगी।

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    गन्ने की खेती और सहकारी चीनी मिलों वाला पश्चिम महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। 1999 में कांग्रेस से अलग होने के बाद शरद पवार ने तो इस गढ़ में बंटवारा कर लिया, लेकिन किसी और दल की दाल यहां मुश्किल से ही गलती रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रबल मोदी लहर के बावजूद पवार की राकांपा इस क्षेत्र की नौ में से चार सीटें बचाने में सफल रही थी। बल्कि कांग्रेस को अपनी नाक बचाने के लिए मराठवाड़ा भागना पड़ा था। अब विधानसभा चुनाव में यही क्षेत्र निर्णायक भूमिका निभाने की तैयारी में है। क्योंकि एक ओर यह क्षेत्र जहां शरद पवार और पृथ्वीराज चह्वाण सहित कई दिग्गज नेताओं का गढ़ है, वहीं भाजपा के तीन नए साथियों स्वाभिमानी शेतकरी संगठन, राष्ट्रीय समाज पक्ष एवं शिव संग्राम संगठन का भी यहां अच्छा प्रभाव है।

    भाजपा के स्वर्गीय नेता गोपीनाथ मुंडे ने बड़ी चतुराई से इस क्षेत्र के इन तीन संगठनों को अपने साथ जोड़ा था। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक मोरेश्वर जोशी मानते हैं कि अकेले-अकेले लड़ने पर इन छोटे दलों की ताकत एक-दो विधानसभा सीटें जीतने से ज्यादा नहीं है। लेकिन भाजपा जैसी बड़ी पार्टी के साथ एकजुट होने से ये एक बड़ी ताकत बन सकते हैं। 288 सीटों वाली विधानसभा में किसी एक क्षेत्र में 58 सीटें होना मायने रखता है। 2009 में इनमें से राकांपा ने 20 एवं कांग्रेस ने 12 सीटें जीतकर आधे से अधिक पर कब्जा किया था। भाजपा को नौ और शिवसेना को पांच सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।

    लेकिन ये नतीजे गठबंधन युग के थे। अब ये चारों दल अलग-अलग ताकत आजमा रहे हैं। राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को भी जोड़ लें तो ज्यादातर सीटों पर लड़ाई पंचकोणीय है। ऐसे चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों की भी लॉटरी बड़े पैमाने पर लगती है, जो त्रिशंकु विधानसभा होने पर निर्णायक भूमिका निभाते है। 2009 में भी यहां से सात निर्दलीय जीते थे। इस बार यह संख्या और ज्यादा हो सकती है। लेकिन कसौटी पर भाजपा के नए समीकरण ही होंगे। शिवसेना को छोड़कर जिन तीन दलों को उसने साथ रखा है, यदि उनका वोट बैंक भाजपा पर भरोसा कर सके तो ये नए समीकरण एक और एक ग्यारह जैसे परिणाम दे सकते हैं।

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