मांझी प्रकरण पर कुछ आशान्वित, कुछ आशंकित भाजपा
एक पखवाड़े से चल रहे हाईवोल्टेज राजनीतिक घटनाक्रम के बाद बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इस्तीफा तो दे दिया लेकिन साथ खड़ी भाजपा को पूरा पुरस्कार नहीं मिला। समीक्षा में जुटी भाजपा को इसका तो संतोष है कि अब अगले छह महीने त
नई दिल्ली, [आशुतोष झा]। एक पखवाड़े से चल रहे हाईवोल्टेज राजनीतिक घटनाक्रम के बाद बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इस्तीफा तो दे दिया लेकिन साथ खड़ी भाजपा को पूरा पुरस्कार नहीं मिला। समीक्षा में जुटी भाजपा को इसका तो संतोष है कि अब अगले छह महीने तक जनता के मुद्दों पर मुखर रहने की आजादी होगी। लेकिन यह कसक रह गई कि ठीक उसी दिन मुखर मांझी ने चुप्पी साध ली जब पूरे राज्य की नजर उन पर थी।
संभावना जताई जा रही थी कि वह खुलकर जदयू और नीतीश कुमार के खिलाफ बोलेंगे। दिल्ली के बाद बिहार ही भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती है। एक मायने में लोकसभा चुनाव के बाद से जितने भी राज्यों में चुनाव हुए उनमें बिहार भाजपा के लिए सबसे अहम होगा। दरअसल बिहार कुछ मायनों में नाक की भी लड़ाई है। ऐसे में मांझी प्रकरण का अंत भाजपा के लिए आशा और आशंका दोनों लेकर आया है। नीतीश के महादलित वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश सफल हो गई है।
भाजपा ने यह फैसला किया था कि विश्वासमत के दौरान भाजपा विधायक मांझी का समर्थन करेंगे। जाहिर है कि अगले छह महीने में होने वाले चुनाव में इसका लाभ उठाने की कोशिश होगी। मांझी ने खुद ही इस्तीफा दे दिया, यह भाजपा के लिए और बड़ी राहत है। क्योंकि भाजपा कभी नहीं चाहती कि उनके समर्थन को मांझी सरकार के कामकाज पर मुहर के रूप में देखा जाए। मांझी सरकार बचती तो बड़ी आफत हो सकती थी। परोक्ष रूप से सरकार में न रहते हुए भी चुनाव के वक्त भाजपा के खिलाफ भी सत्ताविरोधी लहर हो सकती थी और इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि उसमें भाजपा का अपना वोटबैंक भी कुछ बिखर सकता था।
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