हरियाणा की चुनावी हांडी में बासमती खिचड़ी पकाने की कोशिश
हरियाणा में बासमती धान का मसला चुनावी हो गया है। मंडियों में धान के दाम घटने को लेकर किसानों की नाराजगी पर राजनीतिक दल अपनी चुनावी रोटियां सेंकने में जुट गए हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बारे में चिट्ठी लिखकर भरपाई की मांग की है। इससे स्थितियां स्पष्ट होने के बजा
नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। हरियाणा में बासमती धान का मसला चुनावी हो गया है। मंडियों में धान के दाम घटने को लेकर किसानों की नाराजगी पर राजनीतिक दल अपनी चुनावी रोटियां सेंकने में जुट गए हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बारे में चिट्ठी लिखकर भरपाई की मांग की है। इससे स्थितियां स्पष्ट होने के बजाए भ्रम और गहरा गया है। हालांकि, केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि बासमती चावल के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री डाक्टर संजीव बालियान ने कहा कि बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगने की अफवाह फैला कर कुछ राजनीतिक दल चुनावी लाभ लेने की फिराक में हैं। उनकी इस नापाक हरकत से धान उत्पादक किसानों का नुकसान हो सकता है। बालियान ने स्पष्ट किया कि बासमती चावल के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं है। बासमती चावल का निर्यात निर्बाध गति से हो रहा है। आश्चर्य जताते हुए बालियान ने कहा कि पिछले साल के मुकाबले निर्यात वाले चावल का मूल्य अधिक मिल रहा है। अप्रैल से अब तक कुल 15.21 लाख टन बासमती चावल के निर्यात सौदे हो चुके हैं। निर्यात वाले चावल का मूल्य पिछले साल के 75 हजार रुपये प्रति टन के मुकाबले 85 हजार रुपये मिल रहा है। ऐसे में बासमती धान की कीमत में गिरावट के दावे का कोई आधार नहीं है। राज्य सरकार को इसकी जांच करानी चाहिए।
एक सवाल के जवाब में बालियान ने कहा कि ईरान में जुलाई से नवंबर के बीच वहां की घरेलू फसल बाजार में आती है, जिससे इस दौरान निर्यात पर मामूली असर पड़ता है। लेकिन इसका कोई असर बासमती चावल के निर्यात पर नहीं है। घरेलू बाजार में धान मूल्य में कमी के बारे में बताया कि हरियाणा की मंडियों में फिलहाल 1509 प्रजाति का धान बिकने के लिए आ रहा है। अगर आढ़ती अथवा खरीद करने वाली निजी कंपनियां जानबूझकर ऐसी हरकत कर रही हैं तो राज्य सरकार को हाथ पर हाथ धरे नहीं रहना चाहिए।
मुख्यमंत्री हुड्डा ने प्रधानमंत्री को दो दिन पहले एक पत्र लिखकर बासमती धान के किसानों को हो रहे नुकसान का जिक्र किया है। इसमें उन्होंने 1509 और 1121 किस्म के धान के मूल्य में आई अचानक गिरावट पर चिंता प्रकट की है। पिछले साल के मुकाबले कीमतों में एक हजार रुपये प्रति क्विंटल की कमी आने से किसानों की हालत पतली हो गई है।