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आजम खां ने मंत्रियों को भेजा पत्र और झाड़ू

शब्दों की बाजीगरी से हमेशा रहस्य रचने वाले नगर विकास मंत्री मोहम्मद आजम खां ने नया शिगूफा छोड़ा है। अब उन्होंने राज्य सरकार के मंत्रियों को अटैची में खत और झाड़ू भेजी है। इधर मंत्री खत की भाषा बूझने में उलझे हैं जबकि विश्लेषक इसे आजम द्वारा अपनी ही सरकार

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Sun, 29 Mar 2015 12:46 AM (IST)Updated: Sun, 29 Mar 2015 06:54 AM (IST)
आजम खां ने मंत्रियों को भेजा पत्र और झाड़ू

लखनऊ, राज्य ब्यूरो। शब्दों की बाजीगरी से हमेशा रहस्य रचने वाले नगर विकास मंत्री मोहम्मद आजम खां ने नया शिगूफा छोड़ा है। अब उन्होंने राज्य सरकार के मंत्रियों को अटैची में खत और झाड़ू भेजी है। इधर मंत्री खत की भाषा बूझने में उलझे हैं जबकि विश्लेषक इसे आजम द्वारा अपनी ही सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास मान रहे हैं। ध्यान रहे, चंद दिनों पहले सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने सार्वजनिक रूप से अपने पुराने साथी अमर सिंह की कुछ मामलों में प्रशंसा की थी।

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आजम खां द्वारा भेजी गई अटैची कुछ मंत्रियों को शुक्रवार शाम को मिली। मंत्रियों ने जब अटैची खोली तो उसमें रखा सामान देख आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि उससे एक खत और एक झाड़ू निकली। 'दैनिक जागरण' के पास मौजूद आजम का तंजिया खत यूं है- 'एक बार फिर आपके साथ चलने वाले बोझ की व्यवस्था करने का सौभाग्य मुझे मिल रहा है।' खत का मजमून रिश्तों नातों से होता हुआ दिल की आवाज तक पहुंचता है। आखिरी जुमला है, 'आपके समक्ष दो उपहार और हैं। तय कर लें इनमें से कौन सा उपहार समाज के कोढ़ को दूर कर सकता है... और कौन आपको याद दिलाता है कि फकत नारे बीमार समाज का इलाज नहीं कर सकते।' अब मंत्री यह समझने की कोशिश में हैं कि वे झाड़ू को उपहार मानें या अटैची को!

आजम की चिट्ठी

प्रिय साथी,

एक बार फिर आपके साथ चलने वाले बोझ की व्यवस्था करने का सौभाग्य मुझे मिल रहा है।

आपके साथ एक लंबा साथ रहा है और हर साल मैं अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाने की कोशिश भी करता हूं ताकि यादों की परछाई पर गर्द न आ जाये। मुझे आपने देखा भी है, परखा भी है। मैं वो नहीं हूं जो फिजाएं कहती हैं, मैं वो हूं जो आपका धड़कता हुआ दिल कहता है। मुझे मालूम है आप सच्चे हैं और सच की परख आपको खूब है।

पत्र के अंत में एक नज्म है-

'मंजिल पे ना पहुंचे उसे रास्ता नहीं कहते।

दो चार कदम चलने को चलना नहीं कहते।।

एक हम हैं कि गैरों को भी कह देते हैं अपना।

एक वो हैं जो अपनों को भी अपना नहीं कहते।।

माना कि मियां हम तो बुरों से भी बुरे हैं।

कुछ लोग तो अच्छों को भी अच्छा नहीं कहते।।'

आपकी यादों में,

आपका अपना

(मोहम्मद आजम खां) आजम

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