बाहुबली फिल्म तो आपने भी देखी है, क्या यह प्रश्न आपके जेहन में भी उठा?
पिछले कुछ सालों में तमाम छोटे-बड़े शहरों में मल्टीप्लेक्स की बाढ़ सी आ गई है और सिंगल स्क्रीन थिएटरों की संख्या सिमटती जा रही है।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। हाल में बहुप्रतीक्षित फिल्म बाहुबली-2 रिलीज हुई तो कई दिनों तक हाउसफुल रहने के कारण लोगों को टिकट ही नहीं मिल पायी। हर कोई जानने को उत्सुक दिखा कि आखिर 'कटप्पा न बाहुबली को क्यों मारा।' फिल्म देखकर तमाम लोगों ने इस प्रश्न का उत्तर तो हासिल कर लिया। लेकिन यह उत्तर जानने की लालसा जेब पर खासी भारी पड़ी। दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में तो सप्ताहंत में टिकटों के दाम 600 रुपये तक थे और लोगों ने यह कीमत चुकाई भी। फिल्म ने सिनेमाघरों के मालिकों को अंधाधुंध कमाई करने का मौका दिया।
मेरा बाहुबली औरों से महंगा क्यों?
इतनी महंगी टिकट के दाम चुकाना हर किसी के बस की बात नहीं है। ऐसे में 'कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा' से ज्यादा बड़ा प्रश्न है, 'मेरा बाहुबली इतना महंगा क्यों?' सवाल सिर्फ बाहुबली को लेकर नहीं, बल्कि मल्टीप्लेक्सों की महंगी टिकटों को लेकर है। यह सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि पिछले कुछ सालों से सिनेमाघरों में टिकटों के दाम लगातार बढ़े हैं। ऐसे में आपके दिल में उठे इस प्रश्न का उत्तर आपकी तरफ से जागरण डाट काम ने खोजने की कोशिश की। हमारी पड़ताल में पता चला कि लोगों ने बाहुबली-2 फिल्म देखने के लिए 2400 रुपये तक के टिकट खरीदे थे।
कर्नाटक में सिनेमा टिकट की कीमत तय
कर्नाटक सरकार ने हाल ही में सिनेमाघरों की टिकटों के अधिकतम दाम तय कर दिए। सरकार का यह फैसला यहां स्थानीय लोगों के लिए राहत की तरह आया। सरकार ने 3 मई को यह फैसला लिया और यह वही समय था जब बाहुबली-2 सिनेमाघरों में धूम मचा रही थी। कर्नाटक सरकार ने राज्यभर में टिकटों का अधिकतम मूल्य 200 रुपये निर्धारित किया है। सिनेमाघर चाहें तो 200 रुपये से कम में अपने दर्शकों को फिल्म दिखा सकते हैं, लेकिन इससे ज्यादा नहीं वसूल सकते।
कहां बड़े महानगरों में 600 रुपये की टिकट और कहां 200 अधिकतम दाम तय। जाहिर है सिने प्रेमियों को सरकार का यह कदम रास आया है। अब सवाल यह है कि अगर कर्नाटक सरकार टिकट का अधिकतम दाम तय कर सकती है तो तो अन्य सरकारें क्यों नहीं? क्या सरकार को ऐसा करना चाहिए? सिनेमा कारोबार से जुड़े लोग इस बारे में क्या सोचते हैं? इन सब सवालों से भी बढ़कर एक सवाल यह है कि आखिर पिछले कुछ सालों में सिनेमा के टिकटों के दाम बेतहाशा बढ़ने का कारण क्या है?
मल्टीप्लेक्स कल्चर के कारण बढ़े दाम!
पिछले कुछ सालों में तमाम छोटे-बड़े शहरों में मल्टीप्लेक्स की बाढ़ सी आ गई है और सिंगल स्क्रीन थिएटरों की संख्या सिमटती जा रही है। इसी दौरान सिनेमा के टिकटों के दाम भी दोगुने-तिगुने और चौगुने तक बढ़ गए हैं। मल्टीप्लेक्स कल्चर के समर्थक इसके समर्थन में कई तरह की अच्छी-अच्छी बातें बताते हैं। बता दें कि अब भी देश में काफी संख्या में सिंगल स्क्रीन थिएटर बचे हैं। नीचे टेबल में आप साफ देख सकते हैं कि सिंगल स्क्रीन थिएटर और मल्टीप्लेक्स के टिकटों के दामों में कितना अंतर है।
सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स के टिकटों के दामों में इस अंतर को देखने के बाद तो आप समझ ही गए होंगे कि आपका बाहुबली कुछ दूसरे लोगों के बाहुबली से ज्यादा महंगा क्यों था।
टिकटों के अधिकतम दाम तय करने पर क्या कहते हैं जानकार
जागरण के एंटरटेनमेंट एडिटर पराग छापेकर का कहना है कि मल्टीप्लेक्सों में टिकटों के दाम तय करना या सरकार का किसी तरह का हस्तक्षेप करना फिल्म निर्माताओं के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है। फिल्म की लागत के हिसाब से मल्टीप्लेक्स में टिकटों के दाम क्या होंगे, यह निर्माता और फिल्म वितरक तय करते हैं। इसमें सरकारी हस्तक्षेप फिल्म इंडस्ट्री के लिए निश्चित तौर पर घातक साबित हो सकता है।
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लोग पैसा देने को तैयार हैं इसलिए चार्ज करते हैं...
मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि ऐसा करने से राज्यों में निवेश प्रभावित हो सकता है। साथ ही बाजार को रेग्यूलेट करना सरकारों के लिए सही नहीं है। इसके अलावा तकनीक समेत और भी कई नुकसान होंगे। एसोसिएशन का यह भी कहना है कि मल्टीप्लेक्स में कोई अलग से चार्ज नहीं होता। अगर टिकटों के दाम बढ़े हुए लगेंगे तो दर्शक अपने आप फिल्म देखने नहीं आएंगे। हम इसलिए चार्ज करते हैं, क्योंकि लोग पैसा देने के लिए तैयार हैं। कुल मिलाकर बात यह है कि अगर फिल्म का बजट ज्यादा है तो उसकी भरपाई तो आपको ही करनी पड़ेगी। अगर आप फिल्म देखना चाहते हैं तो ज्यादा पैसा चुकाइए वरना कुछ समय बाद उसके टीवी पर प्रसारण होने का इंतजार कीजिए।
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