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अमित शाह का दावा, 'हमने तो किया काम, उनके पास सिर्फ बयान'

लोकसभा चुनाव के पहले से ही चला भाजपा के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा अब दिल्ली में है। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद नए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा का विजय रथ अभी तक सभी चुनौतियों से पार पाते हुए बढ़ रहा है। महाराष्ट्र व

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Sun, 01 Feb 2015 09:27 AM (IST)Updated: Sun, 01 Feb 2015 01:02 PM (IST)

लोकसभा चुनाव के पहले से ही चला भाजपा के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा अब दिल्ली में है। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद नए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा का विजय रथ अभी तक सभी चुनौतियों से पार पाते हुए बढ़ रहा है। महाराष्ट्र व हरियाणा से लेकर झारखंड और जम्मू-कश्मीर तक में प्रदर्शन के बाद अभी तक उनका ट्रैक रिकार्ड सौ फीसद नतीजे देने का रहा है। चुनावी माइक्रो मैनेजमेंट के माहिर शाह का मानना है कि केंद्र में मोदी सरकार के कामकाज से फिजां जिस तरह बदली है उसके बाद पचास फीसद से ज्यादा जनसमर्थन भाजपा के साथ है। लड़ाई सीधी हो या त्रिकोणीय-चतुष्कोणीय, भाजपा का विजय रथ रुकने वाला नहीं है। दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख राजकिशोर और उप ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से विभिन्न मुद्दों पर हुई चर्चा का एक अंश:

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पिछले कुछ चुनावों से भाजपा को जीत की आदत हो गई लेकिन क्या दिल्ली दूसरों से अलग और मुश्किल नहीं हैं?

मुश्किल कोई हालात नहीं हैं। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद से देश में भाजपा के लिए जो माहौल बना है उसने सब कुछ बदल दिया है। चार अलग राज्यों में इसका असर दिख चुका है। भाजपा को बड़ा जनसमर्थन मिला है। महंगाई कम हुई है। देश के हर परिवार के खर्चे में डेढ़ हजार से साढ़े चार हजार रुपये तक की कटौती हुई है। रोजगार के लिए मेक इन इंडिया, महिला सुरक्षा को लेकर प्रयास हो रहे है, स्वच्छता अभियान ने देश को जागरुक किया है। आठ महीने में भारत को हमने विश्व के तीन- चार मुल्कों में शामिल कर दिया है। जनता से पूछिए कि क्या हमें वैश्विक मंच पर वैसा गौरव मिला या नहीं जो 125 करोड़ की जनता वाले देश को मिलना चाहिए। पर यह अब तक नहीं मिल रहा था। हमने जनता के सामने एक माडल पेश किया है और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा जा रहा है। जनता हमसे जुड़ी है और लगातार जुड़ती जा रही है। फिर दिल्ली चुनाव में परेशानी क्यों होगी। हम पर्याप्त बहुमत को लेकर आश्वस्त हैं।

राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही मोदी सरकार का डंका बज रहा हो, लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी बिजली-पानी जैसे स्थानीय मुद्दे लेकर मैदान में है। उसकी काट क्या है?

देखिए, आम आदमी पार्टी की कलई खुल चुकी है। उन्होंने जो कुछ कहा था उसका उलटा किया। केजरीवाल जी ने कहा था हम राजनीतिक पार्टी नहीं बनाएं लेकिन बनाई। कहा था कांग्रेस से समर्थन नहीं लेंगे लेकिन लिया। दरअसल उन्होंने हर वह काम किया जो नहीं करने की बात कही थी। उन्होंने अनाधिकृत कालोनियों को नियमित करने की बात कही थी लेकिन नहीं किया... वह काम हमने किया है। ऐसी पचासों बातें हैं। हम रोज पांच सवाल पूछ रहे है लेकिन केजरीवाल जी ने आज तक जवाब नहीं दिया। वे वचन देकर मुकरने वाले लोग हैं। हमारी रीति-नीति अलग है और जनता यह जानती है। दिल्ली उनको पहले भी देख चुकी है।

अब तक के राज्यों में बहुकोणीय चुनाव थे। पहली बार सीधा मुकाबला होगा। कोई खास रणनीति अपनाई है?

(सवाल पूरा होने से पहले ही) यह बात सही है कि 'रनर अप' आप बनेगी। लेकिन कांग्रेस का भी अस्तित्व है। उसका अपना वोट बैंक है चाहे छोटा ही सही। मैं 15 साल की उम्र से चुनाव देख रहा हूं... चुनाव चाहे बहुकोणीय हो या सीधा, वोट उसी अनुपात में बंटता है। गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल जैसे कई राज्य हैं जहां हमारा सीधा मुकाबला होता है। बहुमत जिसके साथ होता है वह जीतता है और दिल्ली में भी बहुमत जनता हमारे साथ है। वह भाजपा की सरकार चाहती है।

बेदी का फायदा होगा


बेदी से हटकर भाजपा फिर से मोदी पर लौट आई है। क्या लगता है कि मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा जल्दबाजी में हुई और उसका विपरीत असर होगा?

किरण बेदी को पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया और हर पहलू को सोचकर बनाया। विपरीत परिणाम की तो कोई बात ही नहीं है। किरण बेदी की छवि एक प्रामाणिक समाजसेवी, प्रशासक और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाली की है और पार्टी को इसका फायदा होगा।

सवाल इसलिए उठता है क्योंकि बेदी के आने से आपके पुराने कार्यकर्ता निराश और उदासीन हैं?

आपके कार्यालय में भी कोई नया कर्मचारी आए तो थोड़ी खलबली होगी। यह स्वाभाविक है। लेकिन अब जबकि नेतृत्व ने फैसला कर लिया है और चुनाव बढ़ चुका है तो पूरी पार्टी एकजुट होकर काम कर रही है। हर कार्यकर्ता डटा है। वह किसी अफवाह से भ्रमित होने वाला नहीं है।


लेकिन जिस तरह से किरण बेदी का प्रवेश हुआ, क्या यह संकेत नहीं है जिस राच्य में सर्वस्वीकार्य नेता नहीं होगा वहां भी बेदी फार्मूला अपनाया जा सकता है?

नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। हर चुनाव की रणनीति अलग होती है। कुछ राज्यों में हम मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए बगैर चुनाव लड़े थे लेकिन दिल्ली में किया। रणनीति बदलती रहती है।

आप हमेशा लक्ष्य लेकर चलते हैं, दिल्ली के लिए क्या लक्ष्य है?

दिल्ली में हमें पर्याप्त बहुमत मिलेगा। हम आश्वस्त हैं। हम दो तिहाई बहुमत के लिए परिश्रम कर रहे हैं।

वोटरों को घर से निकालना चुनौती

इस लक्ष्य में चुनौती क्या है... वोटरों को घर से बाहर निकालना या उदासीन नेताओं को साथ लाना?

भाजपा का कोई नेता उदासीन नहीं है। हां, वोटरों को जागरुक करना और उसे घर से निकालकर बूथ तक लाना हमेशा चुनौती होती है। भाजपा का संगठन पूरी मुस्तैदी से इसमें लगा हुआ है और मेरा तो मानना है कि जनता भी उत्साहित है।


अरविंद केजरीवाल को गणतंत्र दिवस परेड में आमंत्रित नहीं किया गया। इसे भी मुद्दा बनाया जा रहा है। क्या सरकार से चूक हो गई...?

(व्यंगात्मक मुस्कान के साथ) सरकार की ओर से तो हर जनता आमंत्रित होती है। इसका विज्ञापन दिया जाता है। केजरीवाल जी इसे मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे है। लेकिन वह तो वीआइपी कल्चर के विरोधी हैं। फिर वीआइपी पास की अपेक्षा क्यों कर रहे थे। अगर परेड में उनकी श्रद्धा थी तो फिर आम आदमी के साथ बैठकर देखना चाहिए था। लेकिन मैंने पहले ही कहा कि वह जो बोलते हैं उसके विपरीत करने की इच्छा रखते हैं और उलटा ही करते हैं।

पूर्ण राज्य चुनावी मुद्दा नहीं

क्या दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर भाजपा फंस गई है? कहा जा रहा है कि इसीलिए घोषणापत्र के बजाय विजन डाक्यूमेंट लाया जा रहा है?

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की बात विजन डाक्यूमेंट में भी आ सकती है। लेकिन एक जिम्मेदार पार्टी के रूप में भाजपा जिम्मेदार व्यवहार कर रही है। स्टेटहुड संवेदनशील मुद्दा है और भाजपा इसे चुनाव से अलग रख रही है। जब चुनावी गतिविधि खत्म हों तो राज्य के सभी पक्षों को बैठकर विचार करना चाहिए।

बराक ओबामा के दिल्ली दौरे को भी चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है...?

(हंसते हुए) गणतंत्र दिवस हमने तो तय नहीं किया और न ही चुनाव की तिथि हमने घोषित की है। वह हमारे अधिकार क्षेत्र में ही नही है।

लेकिन क्या लगता है ओबामा दौरे का असर चुनाव पर होगा?

दौरे की बात नहीं उपलब्धियों की बात कहें। देश मे जो भी अच्छा होगा उसका असर तो होता है। हमारी सरकार के समय अच्छा हो रहा है तो जाहिर तौर पर भाजपा को उसका लाभ मिलेगा। जनता देख रही है कि मोदी सरकार ने हर क्षेत्र में नए प्रतिमान बनाए हैं तो लोगों का विश्वास लगातार बढ़ रहा है।


शुरू हो गई डिलीवरी


केंद्र में सरकार के आठ-नौ महीने हो गए हैं। वादों पर डिलीवरी कब तक शुरू होगी?

वह तो शुरू हो गया है। जब हमने शासन संभाला तो थोक महंगाई 6-7 फीसद पर थी। अभी शून्य से डेढ़ के बीच है। जो ग्रोथ रेट है उसको पहली तिमाही में हमने 4.6 से 5.7 तक पहुंचा दिया। यह डिलीवरी नहीं है क्या? रोजगार को बढ़ावा देने के लिए मेक इन इंडिया पर काम शुरू हो गया है, 11 करोड़ लोगों को जन धन के माध्यम से खाता खुला, सीमा पर सुरक्षा ज्यादा चुस्त हुई है, कूटनीतिक स्तर पर भारत की स्थिति बहुत मजबूत हुई है, यह सबकुछ तो डिलीवरी का ही अंग है।

लेकिन पेट्रोल की कीमत जिस तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरी उस अनुपात में हमारे बाजार में कीमत कम नहीं हुई। कांग्रेस का कहना है आज के दिन वह 38 रुपये में पेट्रोल देती?

इसका तकनीकी पहलू है और वह कांग्रेस भी जानती है और आप भी जानते होंगे। लेकिन बेवजह मुद्दा बना रहे हैं। पेट्रोल डीजल की आपूर्ति तीन महीने पहले हो जाती हैै। अगले तीन महीने तक पुराने दाम में ही आता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तेवर कुछ ठीक नहीं है। मेक इन इंडिया, भूमि अधिग्रहण, श्रम सुधार जैसे की मुद्दों पर संघ के संगठनों में आवाजें उठने लगी है?

सरकार के किसी भी फैसले या नीति पर प्रतिक्रिया देने का अधिकार हर किसी को है। संघ के अनुषांगिक संगठनों का तो विशेष अधिकार है, हम उनके साथ बैठेंगे, चर्चा करेंगे। मुझे नहीं लगता है कि कोई विशेष परेशानी आएगी।


मोदी सरकार की उपलब्धियां


मोदी सरकार के आने के बाद से अब तक कई उपलब्धियां गिनाई गई हैं लेकिन आपकी नजर में कुछ सबसे अहम क्या है?

सबसे बड़ी उपलब्धि तो देश की जनता का सरकार में विश्वास होना है। कांग्रेस काल में जो विश्वास खत्म हो गया था मोदी सरकार ने उसे वापस स्थापित कर दिया है। आर्थिक मोर्चे पर चारों क्षेत्रों में (महंगाई कम करना, विकास दर में वृद्धि, व्यापार घाटा कम करना और बजटीय घाटा कम करना) बड़ी उपलब्धि है। कूटनीतिक क्षेत्र में वैश्विक मानचित्र पर भारत की भूमिका प्रामाणिक तौर पर सुनिश्चित हुई है। और सेना के तीनों अंगों की जरूरतोंं को ध्यान में रखते हुए दस साल का रोडमैप तैयार किया गया है। आठ महीने के अल्पकाल में ये चार उपलब्धियां बहुत महत्वपूर्ण हैं।

आठ महीनों में सरकारी अध्यादेश भी चर्चा में रहा। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अध्यादेश को संविधान की भावना के अनुरूप नहीं माना है। क्या कहेंगे?

मैं राष्ट्रपति जी से सहमत हूं लेकिन उनके वक्तव्य को टुकड़ों में मत देखिए। उनका संदेश तो विपक्ष के लिए है। उन्होंने कहा है कि मुद्दों पर चर्चा कीजिए ...लेकिन विपक्ष तो चर्चा तक के लिए तैयार नहीं है। वह संसद को स्टाल करना चाहते हैं। तो फिर सरकार के पास क्या चारा बचता है। क्या विपक्ष की राजनीति में विकास के एजेंडे को छोड़ा जा सकता है। राष्ट्रपति जी ने जो कुछ कहा है उसे विपक्ष को गंभीरता से सुनना चाहिए। संंसद बहस का मंच है लेकिन वह बहस भी नहीं होने देना चाहते हैं।

कांग्रेस के लंबे शासनकाल के बाद आपातकाल की स्थिति में उसके खिलाफ एक धुरी बनी थी। लेकिन भाजपा के खिलाफ तो आठ महीने में ही राजनीति दल एकजुट होने लगे हैं। आप चिंतित है?

(उलटा सवाल पूछते हुए) कहां बनी है भाजपा के खिलाफ धुरी। बिहार में क्या हुआ? दिल्ली में क्या हो रहा है? (हंसते हुए) कोई धुरी नहीं है। भाजपा 50 फीसद से ज्यादा लोगों को समर्थन पाना चाहती है और पाएगी। बाकी के सभी दल एक ब्रैकेट में होंगे।

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